Home | पशु पालन | पशुओं की प्राथमिक चिकित्सा

Sections

Newsletter
Email:
Poll: Like Our New Look?
Do you like our new look & feel?

पशुओं की प्राथमिक चिकित्सा

Font size: Decrease font Enlarge font

प्राथमिक चिकित्सा वह सहायता है जो कि पशु को दुर्घटना या अनायास उत्पन्न परिस्थिती के समय दी जाती है, जिससे पशु चिकित्सक के आने अथवा पशु को चिकित्सालय ले जाने तक उसकी दशा ज्यादा खराब न हो तथा पशु की जिन्दगी भी सुरक्षित रहे। यह सहायता रक्त स्त्राव को रोकने तथा कृत्रिम श्वसन द्वारा पशु के जीवन को बचाने के रूप में की जाती है।

प्रमुख परिस्थितीयों या रोगों में प्राथमिक चिकित्सा लाभकारी होती है:

खरोंच एवं घाव

घाव कांटेदार तारों, अन्य पशुओं द्वारा सींग मारने, टक्कर लगने, फर्श पर फिसलने से हो सकते हैं। खरोंच लगने पर तुरन्त फेनाईल या लाल दवाई के घोल में रूई डुबो भिगो कर पशु के घावों को साफ करें। इसके लाल दवाई (पोटाशियम परमैगनेट 0.1 प्रतिशत) का घोल बनाएं। घाव से बहते खून को रोकने के लिए टिंक्चर बेंजॉइन या टिंक्चर आयोडीन में रूई और पट्टी भिगोकर घाव पर कसकर दवाएं। घाव पर एर्कीफ्लेविन, मरक्यूराक्रोम, जेन्शन वायोलेट, नीम का तेल आदि लगाएं। यदि घाव में कीड़े पैदा हो गये हैं तो रूई को फेनाइल तारपीन के तेल में भिगोकर घाव में भर दें। चिमटी से कीड़े निकाल कर घाव पर कीटाणुनाशक दवा लगाकर पट्टी बांध दें।

खुरों का जख्म

पशुओं को गीली व गंदी जगह पर बांधने से खुरों में दर्द होने लगता है। कभी-कभी पत्थर-कंकड़, कांटा आदि चुभने से भी यह रोग हो जाता है। उपचार के लिए प्रभावित पैर से सारी गंदगी साफ करके 1.0 प्रतिशत नीले थोथे के हल्के गर्म घोल में आधे घण्टे तक डुबों दें, बाद में उसे सुखाकर टिंक्चर आयोडीन लगाकर पट्टी बांध दें। यदि रक्त स्राव हो तो फिटकरी के हल्के घोल से धोना चाहिए व टिंक्चर बेंजॉइन लगानी चाहिए।

जलना व फफोले

पशु के शरीर पर आग से झुलसने या गर्म पानी लगने के कारण फफोले पड़ जाते हैं। ऐसी दशा में दर्द दूर करने के लिए चूने के पानी और अलसी के तेल को बराबर मात्रा में मिलाकर लगाएं। इसके लिए दूध, शीरा, लिक्विड पैराफिन या कच्चे आलुओं की पट्टी भी काम में लाई जा सकती है। मैग्नीशियम सल्फेट या नमक के घोल या 25 प्रतिशत टैनिक एसिड के घोल का भी प्रयोग कर सकते हैं।

सींग टूटना

पूरा सींग टूट जाने पर लोहे से दाग कर खून का बहना रोक सकते हैं और टिंक्चर आयोडिन की पट्टी बांधने से भी खून बहना बन्द हो जाता है।

मोच आना

आवश्यकता से अधिक दबाव पड़ने, पाँव फिसलने या गहरी चोट लगने के कारण मोच आ जाती है। मोच खाया अंग गर्म हो जाता है, उसमें सूजन आ जाती है। दर्द होने से पशु लंगड़ा हो जाता है। हल्की मोच आने पर उस भाग को ठण्डे पानी में भिगोने या ठण्डे पानी की पट्टी बांधकर पशु को पूरा आराम करने दें। दिन में 2 या 3 बार अमोनिया, कैम्फर (कपूर), टरपेंटाइन लिनिमेंट से मालिश करें। आयोडिन का मल्हम धीरे-धीरे बाहर से मालिश करें। चोट लगे भाग को मैग्नीशियम सल्फेट या नमक मिले गुनगुने पानी से सिकाई करें।

हड्डी टूटना

जब हड्डी में केवल दरार पड़ें तो वह चोट साधारण होती है, लेकिन जब टूटी हुई हड्डी चमड़ी फाड़ कर बाहर निकल आए तो यह गम्भरी चोट कहलाती है। हड्डी के टूटे हुए दोनों भागों को ठीक तरह से जोड़कर चारों ओर से बाँस की खपच्चियां लगाकर उन्हे बांध कर कस दें और पशु को आराम करने दें।

आँख की चोट

किसी प्रकार की चोट लगने या आँख में धूल के कण, अनाज के छोटे-छोटे टुकड़े, कीड़े या बाल गिर जाने से पशुओं की आँखें दुखने लगती हैं, पलके सूज जाती हैं और आँखों से पानी जैसा तरल या गाढ़ा द्रव्य निकलने लगता है। आँख को दो दिन में 3-4 बार बोरिक एसिड के हल्के गर्म लोशन से धोएं। यदि आँख में कोई तिनका आदि हो तो उसे निकाल दें। रोगी पशु को ठण्डे और छायादार स्थान पर बांधें।

नाक से खून बहना

नाक में चोट लगने या अन्य कारणों से नथुने से खून बह सकता है। खून रोकने के लिए 5 प्रतिशत फिटकरी का घोल या पानी में सिरका घोल कर रोगी पशु के नथुनों में डालें। पशु का सिर इस अवस्था में रखें कि घोल गले में पहुंचने पाए। नाक पर बर्फ या ठण्डी पट्टियां लगा कर पशु को ठण्डे स्थान आराम करने दें।

नाभि रोग 

यह रोग छोटे बाल पशुओं में कीटाणुओं के कारण होता है। इस रोग में नाभि में सूजन आ जाती है और उसमें से बदबूदार पानी रिसने लगता है। बुखार भी हो जाता है। नवजात बाल पशुओं की नाभि को टिंक्चर आयोडिन के साथ सील कर दें। नाल गिरने तक बाल पशुओं को साफ जगह पर रखें।

अफारा

अफारा रोग की गंभीर हालत में पशु चारा खाना छोड़ देता है, बेचैन दिखाई देता है और झुक कर खड़ा होता है। पेट तेजी से फूल जाता है और सांस लेने में कठिनाई होती है। पेट के रोगी भाग पर तारपीन के तेल से मालिश करें, पेट से गैस निकालने के लिए मुंह से जीभ बाहर खींचे और मुँह को खुला रखने के लिए जबड़ों के बीच कोई लकड़ी रखें। पशु को 50-60 मि.ली. तारपीन का तेल, 500 मि.ली. अलसी का तेल और 10 ग्राम हींग मिलाकर दें। कुछ देर बाद 200 ग्राम मैग्नीशियम सल्फेट और 200 ग्राम नमक मिलाकर दे सकते हैं।

लू लगना, हीट स्ट्रोक

पशु के सिर पर बर्फ या ठण्डा पानी डालें और ठण्डे वातावरण में रखें।

कब्ज, कांस्टीपेशन

200-300 मि.ली. अरण्डी के तेल को 100-200 मि.ली. साधारण तेल में मिलाकर पिलान चाहिए। आवश्यक हो तो साबुन के गुनगुने पानी का एनिमा देना चाहिए।

सर्प दंश

काटे हुए स्थान से थोड़ा खून बहाकर लाल दवा के कण भर कर दें तथा उस स्थान से थोड़ा ऊपर रस्सी या पट्टी से बांध दें व पशु चिकित्सक की राय लें।

श्वान, कुत्ता काटने पर

काटे हुए भाग को तेज प्रवाह के पानी से धोएं एवं साबुन/डिटर्जेंट पाउडर/चूना/लाल दवा/फेनाइल उस स्थान पर लगा दें एवं पशु चिकित्सक की राय लें।

Rate this article
0