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रेबीज का हेतुविज्ञान एवं विकृतिविज्ञान

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रेबीज का हेतुविज्ञान एवं विकृतिविज्ञान 

 

डा. के.एल. दहिया*

*पशु चिकित्सक, राजकीय पशु हस्पताल, हमीदपुर (कुरूक्षेत्र) - हरियाणा

 

प्रश्न : रेबीज क्या है?

‌‌‌उत्तर : रेबीज एक ऐसी बीमारी है जो पशुओं से मनुष्यों में फैलती है जिसमें लक्षण दिखायी देने के बाद मौत निश्चित होती है। 

‌‌‌‌‌‌प्रश्न : रेबीज किस कारण होती है? 

‌‌‌उत्तर :  यह ‌‌‌लीसा वायरस (Lyssavirus) के कारण होता है जो रबडोविरिडी परिवार (Rhabdoviridae family) से सम्बन्ध रखता है। यह एक ऐसा विषाणु है जो तंत्रिका तंत्र पर प्रहार करता है। 

‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌प्रश्न : ‌‌‌लीसा वायरस के कितने जिनोटाईप होने का पता चला है? 

‌‌‌उत्तर : ‌‌‌लीसा वायरस के 11 जिनोटाईप का पता लगाया जा चुका है (Bourhy et al., 1993, OIE 2013, Freuling et al. 2014, Singh et al. 2017) जो इस प्रकार हैं:

1. क्लासिकल रेबीज वायरस (Classical rabies virus)

2. इरकुट वायरस (Irkut virus) 

3. वेस्टरन कौकेसियन वायरस (West Caucasian bat virus) 

4. लागोस बैट वायरस (Lagos bat virus)

5. मोकोला वायरस (Mokola virus)

6. डुवेनहेज वायरस (Duvenhage virus)

7. यूरोपियन बैट वायरस-1 (European bat lyssavirus 1)

8. यूरोपियन बैट वायरस-1 (European bat lyssavirus-2)

9. आस्ट्रेलियन बैट लिसावायरस (Australian bat lyssavirus).

10. आरवां वायरस (Aravan virus) 

11. खुजण्ड वायरस (Khujand virus)

12. शिमोनी बैट वायरस (Shimoni bat virus - SHIV) 

13. ईकोमा वायरस (Ikoma virus - IKOV) 

14. बोकेलोह बैट लिसावायरस (Bokeloh bat Lyssavirus - BBLV)

15. ललेडा बैट  लिसावायरस (Lleida bat lyssavirus - LBLV)

‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌प्रश्न : रेबीज वायरस की संरचनात्मकता कैसी होती है?

‌‌‌उत्तर : रेबीज वायरस एक छड़ीनुमा (rod) या बुलेट (Bullet) के आकार में 180 x 75 एन.एम. परिमाप का होता है।

यह विषाणु एक ओर से गोल या शंखनुमा व दूसरी ओर से समतल या अवतल होता है।

इस के दो प्रमुख संरचनात्मक घटक 1. रिबन्यूक्लोप्रोटीन कोर (Helical ribonucleoprotein core) एवं 2. बाहरी आवरण (Envelope) होते हैं।

रिबन्यूक्लोप्रोटीन कोर : विषाणु के केन्द्र में कुण्डलीदार जिनोम (Helical genome) को रिबन्यूक्लोप्रोटीन कोर कहते हैं। यह सिंगल स्ट्रैंडेड (Single stranded), एकघाती (linear), ऋणात्मक-भावना (Negative-sense), अनुभाग-रहित (Un-segmented) आर.एन.ए. (RNA) श्रेणी का विषाणु है।

बाहरी आवरण : यह विषाणु बाहरी आवरणयुक्त (Envelope) से ढका होता है (Rupprecht 1996, CDC, 2011)। बाहरी आवरण के ग्लाइकोप्रोटीन स्पाइक्स, लिपोप्रोटीन आवरण एवं झिल्ली - तीन मुख्य भाग होते हैं।

‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌प्रश्न : क्या रेबीज का विषाणु रक्त के माध्यम से भी फैलता है?

‌‌‌उत्तर : नहीं, हालांकि रेबीज से ग्रसित जानवर द्वारा काटे जाने से हुए घाव के माध्यम से विषाणुओं की कुछ संख्या रक्त में अवश्य प्रवेश करती है लेकिन यह विषाणु रक्त में प्रतिवलित (replicate) नहीं होता है (Mass. Gov. 2018)। इसलिए यह रक्त के माध्यम से संचरित नहीं होता है।

प्रश्न : रेबीज का विषाणु शरीर में किस तरह फैलता है?

‌‌‌उत्तर : रेबीज के विषाणु काटने या चाटने के बाद धीरे-धीरे अक्ष तन्तुओं के माध्यम से मष्तिस्क की ओर बढ़ते हैं और समय पर प्रतिरोधक टीकाकरण न हो पाने के कारण प्रभावित जानवर अथवा मनुष्य अकाल मृत्यु का ग्रास बन जाता है।

1. प्रवेश स्थल पर विषाणु गुणन: रेबीज से ग्रसित कुत्ते या अन्य पशु के काटने के बाद रेबीज के विषाणु घाव वाले स्थान पर चमड़ी एवं माँसपेशियों के ऊत्तकों में गुणात्तमक रूप से विकसित होता है (European Commission 2002, Jackson 2003A, Radostits et al. 2010, Mass. Gov., 2018) न्यूरोस्कुल्युलर जंक्शन के माध्यम से तन्त्रिका-तन्त्र में प्रवेश करता है।

2. तंत्रिका-माँसपेशिय सन्धिस्थान - न्यूरोमस्कुलर जंक्शन (Neuromuscular junction): यह सन्धिस्थान रेबीज वायरस के लिए तन्त्रिका-तन्त्र में प्रवेश की प्रमुख स्थान है (Lewis, Fu and Lentz 2000)। चमड़ी एवं माँसपेशियों के ऊत्तकों में गुणात्तमक रूप से विकसित होने के बाद रेबीज विषाणु न्युरोमस्कुलर जंक्शन पर निकोटीनिक एसिटाइलकोलीन रिसेप्टर्स मिलकर तन्त्रिका-तन्त्र में प्रवेश कर जाता है (Lentz et al. 1982, Jackson 2003A)। निकोटीनिक एसिटाइलकोलीन रिसेप्टर्स के अतिरिक्त रेबीज के विषाणु तंत्रिका कोशिका आसंजन अणु - Neural cell adhesion molecule (Thoulouze et al, 1998) एवं पी 75 न्यूरोट्रोपिक रिसेप्टर्स - p75 neurotrophic receptor (Tuffereau et al. 1998) के माध्यम से भी तन्त्रिका-तन्त्र में प्रवेश करता है।

लेकिन कृन्तकों (Rodents) पर हुए शोध यह भी दर्शाते हैं कि रेबीज माँसपेशिय ऊत्तकों में बिना गुणात्मक हुए, सीधेतौर पर तन्त्रिका तन्त्र की कोशिकाओं में प्रवेश कर जाते हैं व ऐसे रोगियों में रोगोद्भवन काल बहुत छोटा हो जाता है (Shankar, Dietzschold and Koprowski 1991, Jackson 2002)।

3. केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में रेबीज वायरस का परिवहन (Transport of rabies virus to the CNS): रेबीज वायरस परिधीय तंत्रिकाओं (Peripheral nerves) और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (Central nervous system) में अक्षतन्तुओं (Axons) के माध्यम से 12 से 100 मि.मी. प्रति दिन की दर से फैलता है (Kucera et al, 1985; Lycke and Tsiang, 1987; Tsiang et al, 1991)। वायरस के मष्तिस्क में पहुंचने के बाद व्यक्ति-विशेष के व्यवहार में परिवर्तन देखने को मिलता है।

4. तंत्रिकाकोशिकीय दुष्क्रिया एवं मृत्यु (Neuronal dysfunction and death): जैसे ही विषाणु मस्तिष्क में पहुंचता है, यह लार ग्रंथियों में अपना काम करता है जहां इसकी बहुतायत में प्रतिकृति (Replication) होती है और ग्रसित जानवर की लार में आता रहता है (Mass. Gov. 2018)। इस समय ग्रसित जानवर संक्रामक हो जाता है और काटने के माध्यम से रोग को अन्य जीवों में प्रसारित करता है। रोग से संक्रमिक होते हुए भी पहले तीन दिन तक पशु में रोग के लक्षण सपष्ट नहीं होते हैं लेकिन काटने या चाटने पर विषाणुओं को स्वस्थ जानवर में लार के माध्यम से संचारित कर सकता है।

5. मृत्यु: तीन दिन के बाद, यह विषाणु मस्तिष्क में ऊतकों को पर्याप्त रूप से संक्रमित कर देता है जिससे प्रभावित जानवर के व्यवहार में मस्तिष्क के तन्त्रिका कोशिकाओं की मृत्यु होने से (Iwasaki and Tobita 2002, Jackson 2002) अप्रत्याशित बदलाव दिखायी देने शुरू हो जाते हैं (Mass. Gov., 2018) और पीढ़ित पशु या मनुष्य की मृत्यु हो जाती है।

प्रश्न : रेबीज विषाणु के संग्राहक मेजबान जानवर कौन से हैं?

‌‌‌उत्तर : वैम्पायर चमगादढ़ों एवं स्कंक्स रेबीज रोग के संग्राहक मेजबान जानवर हैं (Mayer and Donnelly 2013)

प्रश्न : रोगी की मृत्यु के पश्चात रेबीज विषाणु उसमें कितने दिन तक जीवित रहते हैं?

‌‌‌उत्तर : रेबीज के विषाणु 20 डिग्री सेल्सियस पर शवों में 3 - 4 दिनों के लिए जीवित रहते हैं, और प्रशीतन (Refrigeration) के साथ लम्बे समय तक रह सकते हैं (Sykes and Chomel 2014)

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