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घरेलू मक्खी का जीवन चक्र (Life Cycle of Domestic Fly)
घरेलू व्यस्क मक्खी का जीवन ग्रीष्म ऋतु में 2 से 4 हफ्ते का होता है जो कि ठण्डे मौसम में थोड़ा ज्यादा हो सकता है। घरेलू मक्खी के एक पूर्ण जीवन चक्र में अण्डे, इल्ली, प्यूपा-कोष व व्यस्क मक्खी आदि अवस्थाएं होती हैं।
सर्दियों में ज्यादातर ये मक्खियाँ इल्ली या प्यूपा कोष अवस्था में ही रहती हैं। सर्दी में ये मक्खियाँ खाद के नीचे सुरक्षित जगह पर रहती हैं।
गर्मीयाँ इनकी विकास-वृद्धि के लिए बहुत अच्छी रहती हैं। गर्मीयों में ये 10 से 12 पीढ़ीयाँ पैदा कर देती हैं।
अण्डा: अण्डे की लम्बाई 1 से 1.2 मिलीमीटर होती है। मक्खी एक-एक करके एक समूह में 75 से 150 अण्डे देती है। 12 से 24 घण्टे में अण्डों में से सफेद, बिना टांगों के अर्ध-पारदर्शी कीड़े (मैगोट - maggots) निकलते हैं।घरेलू मक्खी गोबर व अन्य कचरे पर हर जीवन चक्र में 4 से 6 बार अण्डे देती है। इस प्रकार एक मक्खी का जोड़ा अपने जीवन में लगभग 500 अण्डे देती है। अण्डों की संख्या मादा के आकार पर निर्भर करती है।
इल्ली/डिभक: इसको मैगोट/लारवा भी कहते हैं। 12 से 24 घण्टे में अण्डों में से सफेद, बिना टांगों के अर्ध-पारदर्शी कीड़े (maggots) निकलते हैं। इनका आकार 3 से 9 मिलीमीटर बेलनाकार व टांग-रहित अर्ध-पारदर्शी होता है, जिनका अग्रभाग (सिर) पतला होता है। सिर में दो काँटे होते हैं। अण्डे से निकलने व खाने के बाद इनका आकार बढ़कर 1 ईंच तक हो जाता है। एक इल्ली 50 फीट तक खाने की तलाश में रेंघ कर जा सकती है। उच्च नमी वाली गली-सड़ी खाद इनके लिए बहुत अच्छी होती है।
कोषस्थ कीट: इसको प्यूपा/कोकून भी कहते हैं। 4 से 7 दिन में ये डिम्बे ½ से 1 ईंच तक बड़े होने के बाद गोबर या कचरे वाली जगह से दूर चले जाते हैं व कोष अवस्था में चले जाते हैं। इस दौरान वे गहरे भूरे रंग के कोकून में बदल जाते हैं। यदि मौसम ठण्डा होता है या भोजन की कमी होती है तो ये मैगोट 2 हफ्ते तक या ज्यादा समय तक इसी अवस्था में रहते हैं। कोष अवस्था में इनका आकार 6 मिलीमीटर तक होता है। प्यूपा 8 ईंच का हल्के भूरे रंग का होता है। कोषस्थ अवस्था इल्ली की चमड़ी से बनती है जिसका रंग अवस्थान्तरण के कारण पीला, लाल, भूरा व काला हो सकता है। 3 से 6 दिन के अन्तराल पर कोष में व्यस्क मक्खी पैदा होती है जो उड़ने के लिए तैयार होती है। ये मक्खियाँ अण्डे देने के लिए सही जगह की तलाष में ½ से 1 मील दूर तक चली जाती हैं। सर्दी के मौसम में कोष अवस्था कई हफ्ते या 5 महीने के लिए भी हो सकती है। इसके बाद 4 से 8 दिन के व्यस्क होने के बाद दोबारा फिर प्रजनन योग्य मक्खियाँ इस जीवन चक्र को शुरू कर देती हैं। गर्मियों में हर 8 से 14 दिन में मक्खियों की नई पीढ़ी तैयार हो जाती है।
जब घरेलू मक्खी भोजन के स्त्रोत पर खाना खाती है तो यह उसमें अपनी सूंड को डालती है व भोजन में लार छोड़ती है जिससे उस जगह का भोजन द्रव्य में बदल जाता है व मक्खी सूंड से उस भोजन को सूंड के माध्यम से चूस लेती है। आमतौर पर सूंड सिर के नीचे मुड़ा हुआ होता है लेकिन भोजन खाने के समय यह सूंड सीधा हो जाता है। घरेलू मक्खी की लगातार खाने की आदत है। एक में यह गले-सड़े यहाँ तक कि मानव मल पर बैठी होती है तो अगले ही पल यह मनुष्य के भोजन पर बैठी होती है। परिणामस्वरूप हानिकारक जीवाणु व प्रजीवी सूंड, पैरों और शरीर पर चिपक जाते हैं। ये जीवाणु मक्खी के छद्म श्वासनली एवं आहार नली में भी रहते हैं। इस प्रकार लगातार खाने की बदलती आदत के कारण मनुष्यों में बीमारीयाँ फैलाती है।