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विविध कृषि पद्धतियाँ - जीरो बजट प्राकृतिक खेती
विविध कृषि पद्धतियाँ; प्राचीन भारतीय कृषि पद्धति; रासायनिक खेती; जैविक खेती; वैदिक खेती; यौगिक खेती; जीरो बजट प्राकृतिक खेती
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भूमि में इतनी क्षमता है कि वह सब की जरूरतों को पूरा कर सकती है, लेकिन किसी के लालच को पूरा करने में वह सक्षम नहीं है। जीरो बजट प्राकृतिक (आध्यात्मिक) खेती, एक ऐसी खेती की पद्धति है जिसमें कार्य पुराने हैं लेकिन आयाम नये हैं।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती देशी गाय के गोबर एवं गौमूत्र पर आधारित है। एक देशी गाय के गोबर एवं गौमूत्र से एक किसान तीस एकड़ जमीन पर जीरो बजट खेती कर सकता है। देशी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत तथा जामन बीजामृत बनाया जाता है। इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है। जीवामृत का महीने में एक अथवा दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है। जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है। इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है। फसलों की सिंचाई के लिये पानी एवं बिजली भी मौजूदा खेती-बाड़ी की तुलना में दस प्रतिशत ही खर्च होती है।
देशी गाय के गोबर में अनेक विशेषतायें हैं। इसके 1 ग्राम गोबर में 300-500 करोड़ सूक्ष्म जीवाणु होते हैं, जो 20 मिनट में बढ़कर 200 गुना, अर्थात न्यूनतम 60 हजार करोड़ हो जाते हैं, जो पौधे को आवश्यक खाद्य तत्व उपलब्ध कराते हैं, गोबर फफूँदी नाशक है, अतः फफूँद जन्य बीमारियों का रोधक तथा विषाणुरोधी होने के कारण हानिकारक विषाणुओं को रोकता है और बीज का जमाव अच्छा करता है।
जीरो बजट क्या है?
1. मुख्य फसल का लागत मूल्य, अन्तरवर्ती/सह-फसलों के उत्पादन से निकाल लेना एवं मुख्य फसल शुद्ध मुनाफे के रूप में लेना।
इस विधि में पौधों में आपसी प्रतिस्पर्धा नहीं होगी। आप वर्षा ऋतु में देखते हैं कि खाली खेतों, जंगलों में छोटे-बड़े पेड़-पौधे बढ़ने लगते हैं, सभी को फूल-लगते हैं। वहाँ कोई प्रतिस्पर्धा देखने को नहीं मिलती। जंगल में बड़े पेड़ के नीचे क्रमश: मध्यम पेड़, झाड़ी, पौधे, बेल ऊगते हैं। इसी प्रकार किसान भी अपने खेत में फसल उगा कर प्रतिस्पर्धा को नजरअन्दाज कर सकते हैं।
2. खेती के लिए आवश्यक कोई भी संसाधन जैसे कि बीज, खाद, कीट नियन्त्रक आदि, बाजार से खरीदकर खेतों में कुछ नही डालना।
3. खेती के लिए सभी आवश्यक संसाधनों का निमार्ण फैक्ट्री में नहीं करना, बल्कि अपने खेत या घर पर करना होता है।
4. संसाधन निर्माण के लिए आवश्यक कच्चा माल भी बाजार से नहीं खरीदना है, बल्कि इसको अपने गाँव-खेत में ही तैयार करना है।
5. जिस भी संसाधन का उपयोग करें तो वह जीव, जमीन, पानी और पर्यायवरण को नुकसान करने वाला नहीं होना चाहिए।
आध्यात्मिक खेती क्या है?
फसलों या पेड़-पौधों की वृद्धि के लिए और वाँच्छित उपज के लिए जिन भी संसाधनों की आवश्यकता होती है, उन सभी संसाधनों की आपूर्ति मानव नहीं करेगा, हम नहीं करेंगें, सरकार भी नहीं करेगी, उसको केवल ईश्वर (भूमि) करेगा।