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जीरो बजट प्राकृतिक खेती के फसल सुरक्षा सूत्र
जीरो बजट प्राकृतिक खेती के फसल सुरक्षा सूत्र; नीमास्त्र; अग्नि-अस्त्र; ब्रह्मास्त्र; दशपर्णी अर्क; नीम मलहम; थ्रिप्सरोधी; फफूंदनाशक; सप्त-धान्यांकुर अर्क
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पौधे कीटों के लिए भोजन, आश्रय और जनन के माध्यम हैं जबकि कीट चालन क्रियाओं से पौधों में परागण सम्पन्न करते हैं। ये कीट पराग व पुन: उगने वाले पौधों के भागों को दूसरे स्थान तक पहुंचाते हैं। कीट मुख्यतय: दो प्रकार के - शत्रु व मित्र कीट होते हैं। मित्र कीट फसल को नुकसान नहीं पहुंचाते लेकिन शत्रु कीट फसल को खाकर हानि पहुंचाते हैं। अत: फसल की अच्छी पैदावार लेने के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि शत्रु कीटों को नियंत्रण में रखा जाए।
फसलों को नष्ट करने वाले कीटों (pests) को नियन्त्रित करने के लिए उनके प्राकृतिक शत्रुओं अर्थात् फसल के मित्र कीटों को प्रयोग में लाना जैव नियन्त्रण (Biological control) कहलाता है। कृषि फसलों में दो प्रकार के कीट पाए जाते हैं, एक वो कीट जो फसल को खाकर हानि पहुंचाते हैं उनको शाकाहारी कीट कहते हैं दूसरे मांसाहारी कीट जो शाकाहारी कीटों को खाते हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है जो शाकाहार कीट फसल को खाते हैं व उसको नष्ट करते हैं, उनको शत्रु कीट भी कहा जा सकता है, लेकिन जो कीट इन शाकाहारी कीटों को खाकर जीवित रहते हैं उनको मित्र कीट कहा जाता है। मित्र कीटों को कीटाहारी कीट (Insectivorous / entomophage) भी कहा जाता है।
आधुनिक कृषि पद्धति में अत्याधिक रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग के कारण आज मित्र कीटों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। अन्धाधुन्ध रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग से कीट सन्तुलन का प्रकोप बढ़ गया है। इससे सबसे ज्यादा नुकसान मित्र कीटों को हुआ है। शत्रु कीटों में धीरे-धीरे आनुवंशिक उत्परिवर्तन (Genetic mutation) से रासायन प्रतिरोध क्षमता बढ़ती जा रही है। इस कारण उनकी संख्या बढ़ने से व मित्र कीटों की संख्या कम होने से कृषि को बहुत हानि हो रही है। इतना ही नहीं कीटनाशकों के अत्याधिक उपयोग के कारण कीटनाशकों के अवशेष भी हमारी भोजन श्रृंखला में पहुंचकर जन हानि पहुंचा रहे हैं।
प्राकृतिक कीट नियंत्रण का उद्देश्य, पर्यावरण के मौजूदा स्वरूप के पारिस्थितिक संतुलन को कम-से-कम हानि पहुंचाते हुए कीटों को समाप्त करना होता है। शत्रु कीटों को नियन्त्रित करने के लिए दो प्रकार के मित्र कीट जैसे कि परजीवी (Parasitoids) एवं परभक्षी (Predators) कीट होते हैं। परजीवी कीट अपना जीवन चक्र दूसरे कीड़ो के शरीर में पूरा करते है जिसके परिणाम स्वरूप् दूसरे कीड़े मर जाते हैं। यह परजीवी कई प्रकार के होते है जैसे: अण्ड परजीवी, प्यूपा परजीवी, अण्ड सुण्डी परजीवी, व्यस्क परजीवी आदि। इनके उदहारण हैं: ट्रायकोग्रामा, ब्रेकान, काटेशिया, किलोनस, एन्कारश्यिा इत्यादि। परभक्षी अपने भोजन के रूप में दूसरे कीडों का शिकार करते हैं। यह फसल नाशी कीटों को खा जाते हैं। इनके उदहारण हैं: लेडीबर्ड, मकड़ी, ड्रेगनफलाई, डेमसफलाई, कोकसीनेलिड बीटल, प्रेइंगमेन्टिस, क्राइसोपरला, सिरफिड, इअरविग, ततैया, चींटियाँ, चिड़िया, पक्षी, छिपकली इत्यादि।
फसल को शत्रु कीटों से बचाने के लिए विभिन्न प्रकार की पद्धतियों जैसे कि व्यवहारिक नियन्त्रण, यांत्रिक नियन्त्रण, अनुवांशिक नियन्त्रण, संगरोध नियन्त्रण व रासायनिक नियन्त्रण, का सहारा लिया जाता रहा है। इन सभी प्रचलित पद्धतियों का शत्रु कीटों पर कोई खास असर दिखायी नहीं दे रहा है। रासायनिक कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से इन शत्रु कीटों में रासायन प्रतिरोध क्षमता बढ़ती जा रही है और मित्र कीट इनके उपयोग से समाप्त हो रहे हैं। ये रासायन भोजन के माध्यम से मानवों को हानि पहुंचा रहे हैं। अत: मानवहित के लिए मित्र कीटों को पुनर्जीवित (Revive) करना आवश्यक हो जाता है ताकि ये मित्र कीट शत्रु कीटों को खाकर नियंत्रित करते रहें और रासायनों के उपयोग की आवश्यकता ही न रहे। इसके साथ यह भी आवश्यक हो जाता है कि हम अपने परिवेश में शत्रु और मित्र कीटों की पहचान करें। इसकी पहचान करने का कार्य दिवंगत श्री सुरेन्द्र दलाल जी (कृषि विकास अधिकारी) ने हरियाणा राज्य में जींद जिला के निडाना गाँव से सुव्यवस्थित तरीके से की थी जो अब कीट नियंत्रण की निडाना मॉडल के रूप में स्थापित हो चुकी है। श्री सुरेन्द्र दलाल जी ने किसानों को इस प्रकार पढ़ाया कि आज किसान अपने खेतों में विभिन्न प्रकार के कीटों की पहचान स्वयं कर उनको नियंत्रित कर लेता है।
मित्र कीटों की सहायता से शत्रु कीटों को नियंत्रण में रखने की पद्धति को प्राकृतिक नियंत्रण कीट कहा जाता है। इस पद्धति में यह आवश्यक हो जाता है कि किसान अपनी कृषि में मौजूद कीटों की पहचान कर सके कि इन में से कौन से कीट ‘मित्र’ अथवा ‘शत्रु’ हैं। यही पहचान की कला ही शत्रु कीट नियंत्रण कर रासायनिक कीटनाशकों को हमारी भोजन श्रृंखला से दूर कर सकती है।
ज्यादातर किसान अपने कीटों की समस्याओं को नियंत्रित करने के लिए रासायनिक विधियों का उपयोग करते है, इस पद्धति के कई नुकसान हैं:
1. रसायन गैर-विशिष्ट (Non specific) हो सकते हैं और शत्रु कीटों के साथ-साथ मित्र कीटों को भी मार देते हैं।
2. कीटों में कीटनाशक प्रतिरोध का विकास हो सकता है।
3. कीटनाशक खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर जीवों को नुकसान पहुंचाते हैं।
4. रासायनिक अवशेष मनुष्यों को नुकसान पहुंचाते हैं।
प्राकृतिक नियंत्रण के ज्ञान के बाद जिन भी कृषि क्षेत्रों में कीटनाशकों का उपयोग नही किया गया, उन कृषि क्षेत्रों में अच्छी फसल नहीं बल्कि ज्यादा पैदावार होती देखी गई है। कभी-कभी कीटनाशकों के छिड़काव के दौरान जन या पशुधन हानि या स्वास्थ्य हानि भी देखने को मिलती है। कीटनाशकों के उपयोग से कृषि उत्पादन लागत बढ़ती है, जिस कारण किसान पर बेवजह कर्ज का बोझ बढ़ जाता है व किसान आत्महत्या के लिए विवश हो जाता है। इस प्रकार यह देखने में आता है कि अत्यधिक व अन्धाधुंध कीटनाशकों के उपयोग से किसान व उसका परिवार बर्बाद हो जाता है। अत: किसानों की इन समस्याओं को देखते हुए बड़े पैमाने पर प्राकृतिक नियंत्रण (Natural control) या प्राकृतिक उत्पादों के माध्यम से नियन्त्रित होने वाले उपचारों का प्रचार-प्रसार होना चाहिए।
कीट नियंत्रण में यह आवश्यक हो जाता है कि किसानों को विभिन्न प्रकार के शत्रु व मित्र कीटों के बारे में ज्ञान हासिल हो ताकि वे कीटनाशकों के उपयोग से बच सकें व शत्रु व मित्र कीटों के संतुलन को बनाए रख सकें और उचित कृषि लाभ अर्जित कर सकें। इस संतुलन को बनाए रखने में जीरो बजट प्राकृतिक खेती सहायता कर सकती है। इस पद्धति के अंतर्गत उपयोग की जाने वाली घरेलु औषधियाँ कारगर हो सकती हैं। ये औषधियाँ कीटों को समाप्त तो नहीं करतीं बल्कि उनको दूर भगाने का कार्य करती हैं। इस प्रकार शत्रु कीटों से होने वाले नुकसान से फसल को बचाया जा सकता है व किसान लाभान्वित हो सकते हैं।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती में कीटनाशकों का उपयोग नहीं करते बल्कि इनके स्थान पर कीटरोधी उपचार करते हैं जिनको घर या खेत पर ही तैयार किया जाता है। इसलिए यदि कहा जाए कि जीरो बजट प्राकृतिक खेती में कीटों से हारकर भी जीता जाता है। जीवन का मूल्य अनन्त है। हम यह न भूलें कि जिस तरह हमें अपनी जान प्यारी होती है, उसी तरह सभी जीवों को अपनी जान प्यारी होती है। अच्छा होगा कि हम भी जीयें व अन्य को भी जीने दें।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती में कीटों को मारा नहीं जाता बल्कि उनको फसल नुकसान करने के उद्देश्य से भगाया जाता है अर्थात् उनको फसल नुकसान से नियन्त्रित किया जाता है। इस प्रकार जीरो बजट प्राकृतिक खेती ‘जियो और जीने दो’ के सिद्धान्त को पूर्ण करती है।
"जीत की आदत अच्छी होती है
मगर
कुछ रिस्तों में हार जाना बेहतर होता है।”
जीरो बजट प्राकृतिक खेती
कीट प्रबन्धन हार कर भी जीत है
अच्छा होगा कि हम भी जीयें व अन्य को भी जीने दें।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती में घर या खेत पर तैयार किये जाने वाले कीटरोधी इस प्रकार हैं:
इन कीटरोधियों के अलावा निम्नलिखित घटकों को फफूंद नियन्त्रण के लिए उसयोग किया जाता है।
फफूंदनाशक
उपर्युक्त कीटरोधियों एवं फफंद नियन्त्रण के लिए उपयोग के अलावा फसल में देशी शक्तिवर्द्धक का भी उपयोग किया जाता है।
सप्त-धान्यांकुर अर्क (Seven Grain Distillate)
जीरो बजट प्राकृतिक खेती में उपर्युक्त प्राकृतिक वनस्पतियाँ व अन्य प्राकृतिक सामग्रियाँ दैनिक जीवन में बहुत उपयोगी हैं। ये खाद्य आहार में प्रयुक्त सामग्रीयाँ शरीर में उत्पन्न बीमारीयों को ठीक करने के साथ-साथ उनसे लड़ने की शक्ति भी प्रदान करती हैं। देशी गाय के उत्सर्जित उत्पादों (जैसे कि दूध, दही, गोबर, मूत्र) से सभी चिरपरिचित हैं जिनका मानव सदियों उपभोग करता आ रहा है। नीम प्राकृतिक कीटरोधी के रूप में सबसे ज्यादा उपयोग की जाने वाली वनस्पति है।
अधिक जानकारी के लिए जीरो बजट प्राकृतिक खेती के प्रणेता पद्धमश्री कृषि संत श्री सुभाष पालेकर जी का साहित्य पढ़ें। [Web Reference]
फसल सुरक्षा सूत्र में उपयुक्त
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