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सूक्ष्म पर्यायवरण, Micro Climate
प्रकृति का पोषणशास्त्र; मृदा और इसका निर्माण; भूमि का गिरता स्वास्थ्य; भूमि अन्नपूर्णा है; खाद्य चक्र; केशाकर्षक शक्ति; चक्रवात; केंचुए - किसान के हलधर; सूक्ष्म पर्यावरण; जैविक व अजैविक घटक एवं पर्यायवरण के मध्य अन्त:क्रिया
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पर्यायवरण का अर्थ उस उस परिवेश से होता है जो जीवमण्डल को चारों ओर से घेरे हुए है। इसके अर्न्तगत वायुमण्डल, स्थलमण्डल, जलमण्डल के भौतिक, रासायनिक एवं सभी तत्त्वों को सम्मिलित किया जाता है। प्रकृति के दो तत्त्व वंशानुक्रम एवं पर्यायवरणजीवों एवं उनकी क्रियाओं को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। इसलिए पर्यायवरण को समझने के लिए वायुमण्डल, स्थलमण्डल, जलमण्डल एवं जीवमण्डल को समझना आवश्यक हो जाता है।
भूमि की सतह पर दो पौधों के बीच जो हवा संचारित होती है उसका तापमान 24-27° C होना चाहिए, हवा में नमी 65-72% होनी चाहिए और भूमि के अन्दर ‘अंधेरा‘ और ‘वाफसा’ होना चाहिए। इस सूक्ष्म पर्यासवरण का निर्माण करने के लिए केवल एक ही कार्य करना है, भूमि की सतह पर पेड़-पौधों की दो कतारों के बीच फसलों के अवशेषों का आच्छादन/बिछावन करना। आच्छादन/बिछावन करते ही सूक्ष्म पर्यायवरण स्वयं तैयार हो जाता है और केंचुए कार्य में लग जाते हैं।
जब हम पेड़-पौधों की जड़ को खोदते हैं तो वहाँ पर पानी नहीं होता है। वहाँ कुछ सूखी और नम मिट्टी सम्मिश्रित होती है। इस सम्मिश्रित मिट्टी को वाफसा कहते हैं। वाफसा का अर्थ है भूमि में मिटटी के कणों के बीच खाली जगह जिसमें 50% हवा और 50% वाष्प कणों का सम्मिश्रण निर्माण होता है। वास्तव में भूमि में पानी नहीं, वाफसा चाहिए। क्योंकि कोई भी पौधा या पेड़ अपने जड़ों से भूमि में से जल नहीं लेता, बल्कि, वाष्प के कण और प्राणवायु अर्थात हवा के कण लेता है। भूमि को केवल इतना पानी चाहिए, जिसके फलस्वरूप भूमि के अंतर्गत उष्णता से पानी वाष्पित हो जाए और यह तभी होता है, जब पेड़-पौधों को उनको, उनकी छतरी (Canopy) के बाहर पानी देते हैं । किसी भी पेड़-पौधे की खाद्य पानी लेने वाली जड़ें छतरी के बाहरी सीमा पर होती हैं। इसलिए पानी और अन्य खाद्य पदार्थ पेड़ की छतरी की आखिरी सीमा के बाहर 1-1.5 फिट अंतर पर नाली निकालकर उस नाली में देना चाहिए।
पर्यायवरण अजैविक एवं जैविक परिवेश के बीच अन्तर्क्रिया में केवल परिवेश या सूक्ष्म पर्यायवरण को ही नहीं वन्यजीवों के क्रियाकलापों को भी प्रस्तुत करता है। पर्यायवरण में ही दोनों तत्त्व जैविक और अजैविक पाए जाते हैं। जैविक तत्त्वों में पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, जीव-जन्तु और मानव आते हैं, जबकि अजैविक तत्त्वों में वायु, जल, भूमि, मिट्टी आदि तत्त्व आते हैं। जैविक तथा अजैविक तत्त्व, दोनों साथ-साथ क्रियाशील रहते हैं। ये आपस में एक-दूसरे पर निर्भर रहकर जीवन का संचार करते हैं। पर्यायवरण के अर्न्तगत सभी प्राणी, मानव के साथ एक ही भौगोलिक परिवेश में बराबर का हिस्सा बाँटते हैं, परन्तु इसमें मानव अपनी सर्वोपरि व महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।