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ऋतुचर्या, Seasons of the Year

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ऋतुचर्या; शीत ऋतुबसन्त ऋतुग्रीष्म ऋतुवर्षा ऋतुशरद ऋतु; हेमन्त ऋतु

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ऋतु विभाग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष को छः भागों में विभाजित किया गया है, जिन्हें छः ऋतुएँ कहा जाता है। इन छः ऋतुओं को दो प्रमुख कालों (आदानकाल और विसर्गकाल) में समाहित किया गया है।

1. आदान काल: इस में पृथ्वी सूर्य के निकट होती है अतः यह काल रूखा, सूखा और गर्म रहता है। “आदान दुर्बले देहे पक्ता भवति दुर्बले:’ (चरक संहिता) के अनुसार आदानकाल के प्रभाव से जीवों का शरीर अत्यन्त दुर्बल हो जाता है क्योंकि “मयूखैर्जगतः स्नेहं ग्रीष्मे पेपीयते रविः’ के अनुसार ग्रीष्म ऋतु में सूर्य अपनी प्रखर किरणों से संसार का स्नेह सोख लेता है जिससे सिर्फ मनुष्यों का शरीर ही नहीं बल्कि पेड़ पौधों, वनस्पति, नदी तालाब, कुओं का जलीयांश भी सूख जाता है। यह ग्रीष्म ऋतु का गुण-धर्म है और हमें इस गुणधर्म ‌‌‌कालों को ध्यान में रख कर ऋतु के अनुकूल तथा हितकारी आहार-विहार का ही पालन करना चाहिए ताकि हम मौसमी बीमारियों के जाल में फसने से बच सकें।

आदानकाल में शीतबसन्तग्रीष्म ऋतुएं होती हैं।

2. विसर्ग काल: इस काल में श्रावण-भाद्रपद, आश्विन-कार्तिक, मार्गशीर्ष-पौष मास होते हैं। वर्षा, शरद और ग्रीष्म ऋतुएँ होती हैं। सूर्य दक्षिणायन होता है। यह काल सौम्य अर्थात्‌ शीत गुणप्रधान होता है और वायु में रुक्षता की अधिकता नहीं होती है। चन्द्रमा का बल अधिक रहता है एवं सूर्य का बल क्षीण रहता है। चन्द्रमा सांसारिक वस्तुओं को अपनी शीतल चॉंदनी से तृप्त करता रहता है। इस काल में स्निग्ध, अम्ल, मधुर तथा लवण रसों की वृद्धि होती है एवं क्रमशः बल की प्राप्ति होती रहती है। तात्पर्य यह है कि आदान काल उष्ण होता है, क्योंकि इस समय सूर्य की उष्ण एवं तीक्ष्ण किरणें सीधी भूमण्डल पर पड़ती हैं। उनके सम्पर्क से वायु भी रुक्ष एवं उष्ण हो जाता है और वह भूमण्डल के स्थावर-जांगम प्राणियों को सुखाने लगता है अर्थात्‌ चन्द्रमा जितना उनको आर्द्र करता है, उससे अधिक वायु सुखा डालता है। फलस्वरूप औषधियों में तिक्त आदि रस प्रबल हो जाते हैं और उनका उपभोग करने वाले प्राणी भी दुर्बल हो जाते हैं या होते जाते हैं।

इसी प्रकार विसर्ग काल आदान काल की अपेक्षा शीतल होता है और उनमें बादल छाये हुए तथा वर्षा हो जाने के कारण वायु शीतल, आदर्‌र और नमीयुक्त हो जाता है तथा भूमण्डल का सन्ताप शान्त हो जाता है। चन्द्रमा की ओर से ओस के रूप में बरसने वाला अमृत पाकर विश्व के प्राणी पुष्ट एवं सबल होने लगते हैं।

विसर्गकाल में वर्षाशरदहेमन्त ऋतुएं होती हैं।

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