Sections
- प्राकृतिक खेती
- Transformations
- श्रीमद्भगवद्गीता
- योग
- हिन्दी भाग
- पशु पालन
- आयुर्वेद संग्रह
- स्वास्थ्य
- आहार विज्ञान
- कटाई, सिलाई और कढ़ाई (Cutting, Tailoring & Embroidery)
- News
- General
- Quotes
- CAREER TIPS
- The Days
- Festivals
- Herbal Plants
- The Plants
- Livestock
- Health
- Namology
- The Marriage
- Improve Your G.K.
- General Knowledge
- TERMINOLOGY
- Downloads
- Recipes
- World Transforming Personalities
- Geography
- Minerals
- World at a Glance
बरियारी, Country mallow, Sida cordifolia
व्यवहारिक नाम:
अंग्रेजी: कन्ट्री मल्लो (Country mallow)।
लैटिन: सिडा कॉर्डीफोलिया (Sida cordifolia)।
हिन्दी: बरियारी।
स्वाद: इसका स्वाद तीखा और तेज होता है।
पौधे का स्वरूप: बरियारी का रंग हरा, सफेद और पीला होता है। बरियारी कई प्रकार ही होती है। लेकिन खासतौर पर चार तरह की होती है।
1. बला खिरैटी यानी बरियारी: यह दो प्रकार की होती है। पहली बरियारी का पौधा लगभग 2-3 फुट का होता है। इसके पत्ते तुलसी के पत्ते के जैसे होते हैं। बरियारी के पत्तों का साग भी बनाया जाता है। इसके पीले रंग के फूल होते हैं। इसके बीज काले रंग के होते हैं। दूसरी प्रकार की बरियारी 5-7 फुट की ऊंचाई की होती है। इसके फूल सफेद होते हैं। बरियारी के फल बारीक और गोल होते हैं, इसमें काले रंग के छोटे-छोटे बीज निकलते हैं, जिनको बीजबंद कहते हैं।
2. हावला-सहदेई: यह भी दो प्रकार की होती है, इसके पत्ते पतले और खरखरे होते हैं। इसका फल-फूल पीले रंग का होता है।
3. अतिबला-कंघई: अतिबला यानी कंघी के पेड़ 2-3 फीट ऊंचे होते हैं, फूल पीला, फल चक्र के समान गोल खानेदार होते हैं जिनका अक्सर बच्चे छापा बनाते हैं। इसके बीज भी बरियारी के बीजों के समान होते हैं।
4. नागवला-गंगरेन: गंगेरन का पेड़ सहदेई के पेड़ के समान ही होता है। इसके पत्ते सहदेई से कुछ ज्यादा मोटे होते हैं और दो अनीवाले होते हैं, इसका फूल गुलाबी रंग का होता है। इसके फल भी सहदेई से कुछ बड़े होते हैं। बरियारी के फल सूख जाने पर अपने आप ही भागों में बंट जाता है।
स्वभाव: बरियारी का स्वभाव गर्म होता है।
औषधीय गुण: विभिन्न प्रकार की बरियारी के निम्नलिखित गुण होते हैं।
खिरैटी यानी बरियारी: खिरैटीपानी बरियारी चिकनी होती है, यह रुचि को बढ़ाती है, वीर्य को बनाती है और शरीर को मजबूत़ बनाती है। यह ग्राही है, वात, पित्त नाशक है। पित्तासिर को खत्म करता है। कफ (बलगम) दोषों का शोधक है, बरियारी की जड़ की छाल का चूर्ण दूध में मिलाकर पीने से मूत्रातिसार यानी पेशाब का ज्यादा आना रुक जाता है। बरियारी का फल स्वादिष्ट है, कषैला है। यह वात को रोकता है और पित्त और कफ (बलगम) को खत्म करता है।
सहदेई: सहदेई पेशाब करने में परेशानी को रोकता है। इसका स्वाद मधुर है, धातु (वीर्य) को बढ़ाता है और गाढ़ा भी करता है। वात, कफ, पित्त तीनों दोषों को खत्म करता है। बुखार दिल के रोग और जल जाने पर, वादी बवासीर सूजन और विषम ज्वर (बुखार) को दूर करता है। सभी तरह के प्रमेह को दूर करता है।
अतिबला कंघई: अतिबला कंघई कड़वी, तीखी, वात, कीड़े और जलन को दूर करती है। यह प्यास, जहर और उल्टी को शांत करती है, यह दोषनाशक और युक्ति पूर्वक व्यवहार करने से बुखार को खत्म करने वाली है। कंघई का चूर्ण दूध और मिश्री के साथ खाने से प्रमेह दूर होता है। कंघी, सहदेई और बरियारी वीर्य और बल को बढ़ाता है। यह उम्र को बढ़ाता है, वात, पित्त को खत्म करता है मल को रोकता है। पेशाब की बीमारी से आराम मिलता है। इससे गृह पीड़ा दूर होती है।
नागबला गंगरेन: नागबला गंगरेन मधुर, अम्ल, कषैला, गर्म, भारी, तीखा, कफ (बलगम) और वात को खत्म करता है, यह घाव को भरती है, और पित्त का नाश करती है। गंगरेन के गुण भी बरियारी के समान ही हैं। विशेषकर पेशाब की परेशानी और घावों, कुष्ठ और खुजली का नाश करता है। गंगरेन के फल रूखे, कषैले, स्वाद वादी लेखन और स्तम्भन है। यह शीतल है तथा कब्ज और पेट की गैस को रोकता है। गंगरेन बरियारी सहदेई और कंघई से ज्यादा फायदेमंद है। बरियारी के सफेद पत्ते पानी में मल और छानकर पीने से सूजाक, पथरी और प्रमेह का नाश करता है। पत्तों को बिना पानी के कूट के निकाला हुआ रस सांप के कांटे हुए के जहर को दूर करता है। पीले पत्ते सूजनों को पचाते और दर्दों को मिटाते हैं। अगर किसी को तलवार या शस्त्र लगा हो तो गंगरेन की पत्ती को कूटकर बांधने से खून और दर्द जल्दी बंद हो जाते हैं और भारी से भारी घाव रात ही भर में भर जाता है।
अवबाहुक: बरियारी की 14 से 28 मिलीलीटर जड़ का काढ़ा दिन में 2 बार सेवन करने से अवबाहुक रोग में लाभ होता है।
आन्त्र के बढ़ने पर: 14 से 28 मिलीलीटर बरियारी की जड़ का काढ़ा 5 मिलीलीटर एरण्ड के तेल के साथ दिन में दो बार सेवन करने से आन्त्र बढ़ने के रोग में लाभ होता है।
उदरशूल: 30 ग्राम पंचांग के काढ़े में 1 ग्राम सोंठ और 1 ग्राम कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से पेट का दर्द ठीक हो जाता है।
घाव: बरियारी की जड़ के काढ़े को लगाने से घाव कुछ ही समय में भर जाता है।
पक्षाघात: बरियारी की जड़ का काढ़ा तथा तिल के 7-14 मिलीलीटर तेल को दिन में 2 बार गर्म पानी के साथ सेवन करने से पक्षाघात (लकवा) के रोग में आराम आता है।
पक्षाघात-लकवा-फालिस फेसियल, परालिसिस: लगभग 6 ग्राम बरियारी की जड़, 10 ग्राम हींग और थोड़ा सा सेंधानमक लेकर एक साथ मिलाकर देने से अथवा बरियारी की जड़ का चूर्ण सुबह और शाम सेवन करने से मुंह का पक्षाघात (लकवा), जोड़ों का दर्द (गठिया) में लाभकारी होता है। इसके साथ-साथ इसकी जड़ से निकाले हुए तेल की दूध के साथ मिलाकर मालिश करने से भी लकवे में लाभ मिलता है।
बच्चों के लकवा: बरियारी की 24 मिलीलीटर जड़ का रस दूध के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से बच्चों का लकवा रोग ठीक हो जाता है।
बांझपन: बरियारी, गंगेरन, मुलहठी, काकड़ासिंगी, नागकेसर मिश्री इन सभी को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर और छानकर चूर्ण बना लेते हैं। इस चूर्ण को लगभग 10 ग्राम की मात्रा में घी, दूध तथा शहद में मिलाकर पीने से बांझ स्त्री भी मां बन सकती है।
रक्तप्रदर: 3 से 6 ग्राम बरियारी की जड़ को दूध के साथ दिन में दो बार सेवन करने से रक्तप्रदर में आराम मिलता है।
हृदय दुर्बलता: 6 ग्राम बरियारी की जड़ को 10 ग्राम मकरध्वज एवं कस्तूरी के साथ प्रयोग करने से दिल की कमजोरी दूर हो जाती है।
हृदयाघात: हृदयाघात होने पर रोगी को 5 ग्राम से 10 ग्राम बरियारी (बला, खिरैठी) की जड़ में कस्तूरी एवं मकरध्वज को मिलाकर तुरंत ही देने से आराम आता है। बाद में इसे सुबह और शाम को दे सकते हैं।
विशेष: यह पेट में गैस पैदा करती है ।
मात्रा: इसका 3 ग्राम की मात्रा में सेवन किया जाता है।