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गोखरू, Land Caltrops, Tribulus terrestris

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व्यवहारिक नाम:

अंग्रेजी: लेण्ड केलट्राप्स (Land Caltrops)

अरबी: हसक

कन्नड़: सन्नानेग्गुलु

गुजराती: गोखरू

तमिल: नेरूनाजि

तेलगू: पान्नेरुमुल्लू

पंजाबी: भखड़ा

फारसी: खोरखसक

बंगाली: गोखरी

मराठी: सराटे

लैटिन: ट्रिबुलस टेरेस्ट्रिस (Tribulus terrestris)

संस्कृत: गोक्षुर

हिन्दी: गोखरू

स्वाद: गोखरू स्वाद में तीखे होते हैं।

‌‌‌‌‌‌पौधे का स्वरूप: गोखरू भारत में सभी प्रदेशों में पाये जाने वाला पौधा है। यह जमीन पर फैलने वाला पौधा होता है, जो हर जगह पाया जाता है। वर्षा के आरम्भ में ही यह पौधा जंगलों, खेतों के आसपास के उग आता है। गोखरू छोटा और बड़ा दो प्रकार का होता है लेकिन इसके गुणों में समानता होती है। गोखरू की शाखाएं लगभग 90 सेंटीमीटर लंबी होती हैं। इसकी टहनियों पर रोयें और जगह-जगह पर गाठें होती हैं। इसके बीजों से सुगंधित तेल निकलता है। इसकी जड़ 10 से 15 सेंटीमीटर लम्बी होती है तथा यह मुलायम, रेशेदार, भूरे रंग की ईख की जड़ जैसी होती है।

बड़े एवं छोटे गोखरू: छोटे गोखरू के पत्ते चने के पत्तों के समान होते हैं। गोखरू के फूल पीले रंग के होते हैं तथा यह छत्ते की तरह जमीन पर फैल जाते हैं। बडे़ गोखरू के पौधे छोटे तथा उठे हुए रहते हैं।

गोखरू दो प्रकार का होता है। दोनों के फूल पीले और सफेद रंग के होते हैं। गोखरू के पत्ते भी सफेद होते हैं। गोखरू के फल के चारों कोनों पर एक-एक कांटा होता है। छोटे गोखरू का पेड़ छत्तेदार होता है। गोखरू के पत्ते चने के पत्तों के समान होते हैं। इसके फल में 6 कांटे पाये जाते हैं।

पत्ते: चने के समान होते हैं। हर पत्ती 4-7 जोड़ों में पाए जाते हैं।

फूल: गोखरू के फूल पीले रंग के होते है जो सर्दी के मौसम में उगते हैं। इसके कांटे छूरे की तरह तेज होते हैं इसलिए इसे गौक्षुर कहा जाता है।

स्वभाव: गोखरू की प्रकृति गर्म होती है।

‌‌‌औषधीय गुण: गोखरू शरीर में ताकत देने वाला, नाभि के नीचे के भाग की सूजन को कम करने वाला, वीर्य की वृद्धि करने वाला, रसायन, भूख को तेज करने वाला होता है। यह स्वादिष्ट होता है। यह पेशाब से सम्बंधित परेशानी तथा पेशाब करने पर होने वाले जलन को दूर करने वाला, पथरी को नष्ट करने वाला, जलन को शान्त करने वाला, प्रमेह (वीर्य विकार), श्वांस, खांसी, हृदय रोग, बवासीर तथा त्रिदोष (वात, कफ और पित्त) को नष्ट करने वाला होता है। इसके सेवन से पेशाब खुलकर आता है और यह पथरी को भी गला देता है। गोखरू स्वभाव को कोमल बनाता है तथा यह मासिकधर्म को चालू करता है।

गोखरू सभी प्रकार के गुर्दें के रोगों को ठीक करने में प्रभावशाली औषधि है। यह औषधि मूत्र की मात्रा को बढ़ाकर पथरी को कुछ ही हफ्तों में टुकड़े-टुकड़े करके बाहर निकाल देती है।

आयुर्वेदिक मतानुसार: गोखरू स्वाद में मीठा, चिकना, ठण्डा तथा भारी होता है। यह वात-पित्त को नष्ट करता है। यह पेट के कई रोगों को ठीक करने वाला होता है। इसके सेवन से लिंग में उत्तेजना पैदा होती है। यह दर्द को नष्ट करता है। सूजाक-प्रमेह, श्वास, खांसी, बवासीर आदि रोग भी इसके सेवन से ठीक हो सकते हैं। यह गर्भाशय को शुद्ध करने वाला, बांझपन को दूर करने वाला, प्रोस्टेट ग्रंथि की सूजन दूर करने वाला एवं हृदय रोग को ठीक करने वाला होता है।

यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार: गोखरू गर्म और खुश्क होता है। यह ब्लेडर और गुर्दे की पथरी को दूर करता है। गोखरू मूत्रावरोध को दूर कर सूजाक तथा प्रमेह (वीर्य विकार) रोग को ठीक करने में लाभकारी होता है। यह नपुंसकता को दूर करने में भी लाभकारी है।

वैज्ञानिक मतानुसार: गोखरू का रासायनिक विश्लेषण करने पर पता चलता है कि इसकी पत्तियों में लगभग 7 प्रतिशत प्रोटीन, 5 प्रतिशत राख और 78 प्रतिशत पानी पाया जाता है। इसके अलावा इसमें कुछ मात्रा में लोहा, कैल्शियम, फास्फोरस और विटामिन सी भी पाया जाता है। इसके फल में एल्कोलायड की मात्रा 1 प्रतिशत होती है। इसके फल में शर्करा, नाइट्रेट्स, राल, टैनिन, रिस्टरोल, ग्लाइकोसाइड, अवाष्पशील तेल तथा सुगंधित तेल भी होते हैं। पौधों में हरमन तथा बीजों में हरमिन नामक ऐल्कोलायड उपस्थित पाये जाते हैं। इसके बीजों में अधिक मात्रा में फास्फोरस और नाइट्रोजन पाये जाते हैं।

गोखरू की सब्जी: गोखरू की सब्जी हरे रंग की होती है। ‌‌‌इसकी सब्जी बहुत ही लोकप्रिय है ‌‌‌जिस का स्वाद फीका ‌‌‌व प्रकृति रूखी होती है। गोखरू की सब्जी का अधिक मात्रा में सेवन प्लीहा (तिल्ली) के लिए हानिकारक हो सकता है। नमक, गोखरू की सब्जी के दोषों को दूर करता है। गोखरू की सब्जी की तुलना कुलफा के साग से की जा सकती है।

गुण: गोखरू की सब्जी तबियत को नर्म करती है, शरीर में खून की वृद्धि करती है और उसके दोषों को दूर करती है। यह पेशाब की रुकावट को दूर करती है तथा मासिकधर्म को शुरू करती है। सूजाक और पेशाब की जलन को दूर करने के लिए यह लाभकारी है।

‌‌‌विशेष: गोखरू का अधिक मात्रा में सेवन ठण्डे स्वभाव के व्यक्तियों के लिए हानिकारक हो सकता है। गोखरू का अधिक मात्रा का सेवन करने से प्लीहा और गुर्दों को हानि पहुंचती है और कफजन्य रोगों की वृद्धि होती है।

मात्रा: गोखरू के फल का चूर्ण 3-6 ग्राम की मात्रा में दिन में 2-3 बार सेवन कर सकते हैं। इसका काढ़ा 50-100 मिलीलीटर तक सेवन कर सकते हैं।

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