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विटामिन ई, Vitamin E
वसा में घुलनशील इस विटामिन की खोज सन् 1920 में मैटिल (Matill), ईवान्स (Evans) तथा सूर (Sure) ने की। उन्होने उस समय तक ज्ञात सभी भोज्य तत्वों से युक्त शुद्ध आहार कुछ प्रायोगिक चूहों को खिलाया। कुछ समय प्श्चात् उन्होने पाया कि वे चूहे वैसे तो स्वस्थ थे किन्तु उनकी प्रजनन क्षमता समाप्त हो चुकी थी। विटामिन ई युक्त आहार देने से मादा जाति के चूहों की प्रजनन शक्ति वापिस आ गई। बन्ध्यता रोकने वाले इस अज्ञात पदार्थ को बांझपन विरोधी विटामिन (Anti-sterility vitamin) या विटामिन ई का नाम दिया गया।
विटामिन ई की रचना व गुण (Composition and properties of Vitamin E)
इस विटामिन का रासायनिक नाम टोकोफेरॉल (Tocopherol) है। यह विटामिन छ: प्रकार के टोकोफेरॉल का सम्मिलित रूप है, किन्तु पोषण की दृष्टि से इनमें केवल एक ही तत्व अल्फा-टोकोफेरॉल (a-tocopherol) महत्वपूर्ण माना जाता है।
i. विटामिन ई पीले रंग का तेल जैसा गाढ़ा पदार्थ है।
ii. यह ताप तथा अम्ल प्रति स्थिर होता है।
iii. भोजन पकाने की सामान्य क्रियाओं से इसको कोई हानि नहीं होती, किन्तु पिसने की क्रिया में इसका कुछ भाग नष्ट हो जाता है।
iv. सिक्के (Lead), लोहे, प्रकाश, क्षारीय माध्यम तथा वायु की उपस्थिती में यह विटामिन जल्दी ही आक्सीकृत हो जाता है।
v. सूर्य की पैराबैंगनी किरणे (ultraviolet rays) इसे विघिटत (decompse) कर देती हैं।
विटामिन ई के कार्य (Functions of Vitamin E)
1. आक्सीकरण प्रतिरोधक (Antioxidant): विटामिन ई आक्सीजन के सम्पर्क में आकर स्वयं तो नष्ट हो जाती है, किन्तु अन्य पदार्थों को आक्सीकृत होने से बचा लेता है। विटामिन ई स्वयं आक्सीकृत होकर आन्तों में विटामिन ‘ए’ तथा कैरोटिन का आक्सीकरण कम करता है। असंतृप्त वसा अम्लों का ऊत्तको में आक्सीकरण रोकता है। पाचन प्रणाली तथा शरीर के कोषों में विटामिन ‘सी’ को आक्सीकृत होने से बचाता है। इस प्रकार विटामिन ई शरीर में विटामिन ‘ए’ तथा ‘सी’ की बचत करके उन्हे हमारे लिए अधिक उपयोगी बनाता है।
2. सन्तानोत्पत्ति में सहायक (Helps in reproduction): विटामिन ई सैक्स हार्मोन की उत्पति में सहायक है तथा भूण विकास के लिए भी आवश्यक है। बार-बार होने वाले स्वभाविक गर्भपात (Habitual abortion) की स्थिती में इसका उपयोग दवाई के रूप में किया जाता है।
3. रक्त कणिकाओं के निमार्ण में सहायता करता है व उन्हे ऑक्सीकारक पदार्थों से बचा कर शीघ्र नष्ट नहीं होने देता। लोहे के अवशोषण में भी सहायता करता है।
4. विटामिन ई कॉलेस्टीरॉल तथा विटामिन ‘डी’ के उपयोग में सहायता करता है।
5. वसा के अवशोषण में कमी तथा शरीर में प्रोटीन की अत्यधिक कमी की स्थिती में विटामिन ई का प्रयोग दवाई के रूप में किया जाता है।
6. विटामिन ई कई नलिका विहिन ग्रन्थियों को सुचारू रूप से कार्य करने में सहायता करता है इससे हमारी शारीरिक क्रियाएं ठीक प्रकार से चलती रहती हैं।
7. मांसपेशियों की वृद्धि तथा स्वस्थ त्वचा के लिए यह एक आवश्यक विटामिन है।
विटामिन ई की कमी के प्रभाव (Effects of Vitamin E deficiency)
1. विटामिन ई की कमी से लाल रक्त कणिकाएं अधिक मात्रा में तथा जल्दी-जल्दी टूटती-फूटती हैं। इसके परिणामस्वरूप रक्त अल्पतता हो जाती है।
2. विटामिन ई की कमी से प्रजनन अंगों की कार्यक्षमता में कमी आ जाती है। प्रथम तो गर्भ धारण ही नही होता। अगर हो भी जाए तो भू्रण गर्भावस्था में ही मर जाता है, बार-बार गर्भपात हो जाता है या अपूर्ण रूप से विकसित शिशु पैदा होते हैं।
3. कई पशुओं में नर पशु नपुंसक तथा मादा बांझ हो जाते हैं। मनुष्यों में इस प्रकार के प्रभावों के बारे में वैज्ञानिकों में अभी मतभेद है।
4. विटामिन ई की कमी से नलिका विहिन ग्रन्थियां सुचारू रूप से काम नहीं करती। इन ग्रन्थियों के सुचारू रूप से कार्य न करने से कई शारीरिक क्रियाओं में अवरोध पैदा हो जाता है।
5. विटामिन ई की कमी से वसा अम्लों का आक्सीकरण तेजी से होता है तथा चपापचय की गति बढ़ जाती है। इससे मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं तथा शरीर में शिथिलता आ जाती है।
6. इसकी कमी से केन्द्रिय नाड़ी मण्डल को आघात पंहुचता है तथा हृदय की गति अनियमित हो जाती है।
विटामिन ई की अधिकता से हानियाँ (Effects of excessive intake of vitamin E)
विटामिन ई की अधिकता से कोई हानिकारक प्रभाव नहीं होता।
विटामिन ई की प्राप्ति के स्त्रोत (Sources of Vitamin E)
विटामिन ई की प्राप्ति मुख्यता वनस्पति खाद्य पदार्थों से होती है जैसे कि गेहूँ के अंकुर का तेल (wheat germ oil), वनस्पति तेल, साबुत अनाज व दालें आदि। अण्डे की जर्दी, दूध तथा मांस में भी विटामिन ई की कुछ मात्रा पाई जाती है। फल तथा सब्जियों में यह विटामिन बहुत कम होता है।
विभिन्न भोज्य पदार्थों में विटामिन ई की मात्रा (प्रति 100 ग्राम)
खाद्य पदार्थ |
मात्रा (मि.ग्रा.) |
अनाज |
|
जौं |
3-2 |
चावल (बिना पालिस किये हुए) |
2-4 |
गेहूँ का आटा (चोकर सहित) |
2-2 |
तेल |
|
गेहूँ के अंकुर का तेल |
255 |
सोयाबीन का तेल |
118 |
मक्के का तेल |
91 |
सरसों का तेल |
32 |
मूंगफली का तेल |
22 |
सब्जियां |
|
हरे मटर |
1-2 |
गाजर |
0-5 |
पत्ता गोभी |
0-1 |
मेवे |
|
मूंगफली |
9-0 |
मांस, अण्डा व मछली |
|
अण्डा |
2-0 |
यकृत |
1-4 |
मांस |
0-5&0-7 |
मछली |
0-4 |
दूध व दूध से बनी वस्तुएं |
|
मक्खन |
2-7 |
दूध |
1-0 |
विटामिन ई की दैनिक आवश्यकता (Daily requirement of vitamin E)
एक साधारण मिले-जुले दैनिक आहार से विटामिन ई की आवश्यक मात्रा प्राप्त हो जाती है। आहार में असंतृप्त वसा अम्लों की मात्रा बढ़ने से विटामिन ई की मात्रा भी बढ़ा देनी चाहिए। इस मात्रा को बढ़ाने के लिए साबुत दालों, अनाज तथा हरी पत्तेदार सब्जियों को कुछ अधिक मात्रा में ग्रहण करना चाहिए।