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भोजन के शारीरिक कार्य (Physiological Functions of Food)
भोजन; भोजन किसे कहते हैं?; पोषण तत्त्व; पोषण विज्ञान; भोजन का वर्गीकरण; भोजन का महत्त्व तथा कार्य; भोजन के शारीरिक कार्य; भोजन के मनोवैज्ञानिक कार्य; भोजन के सामाजिक - सांस्कृतिक कार्य
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हमारे भोजन तथा शारीरिक संरचना में समानता है क्योंकि जो रासायनिक तत्त्व हमें भोजन से प्राप्त होते हैं वही संयोजित होकर हमारे शरीर का निर्माण करते हैं। हमारे शरीर में पौष्टिक तत्त्वों का अनुपात निम्न प्रकार से है
जल (Water) |
65% |
प्रोटिन (Protein) |
17% |
कार्बोज (Carbohydrates) |
1% |
वसा (Fats) |
13% |
खनिज लवण (Minerals) |
4% |
विटामिन (Vitamins) |
थोड़ी मात्रा में (Traces) |
शरीर को बनाने वाले इन रासायनिक तत्त्वों का हमारे में ठीक अनुपात तभी रह सकता है जब इनको आहार द्वारा नियमित रूप से तथा ठीक मात्रा में ग्रहण किया जाए। इन तत्त्वों से, शरीर को क्रियाशील रखने के लिए ऊर्जा प्राप्ति होती है। शरीर में वृद्धि एवं विकास के लिए, नर्इ कोशिकाओं तथा तन्तुओं के निर्माण एवं टूट-फूट की मुरम्मत के लिए भी भोज्य तत्त्वों की आवश्यकता होती है। इन कर्इ प्रकार के कार्यों को देखते हुए भोजन के शारीरिक कार्यों को भी निम्नलिखित तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है -
1. ऊर्जा देना, 2. नए तन्तुओं का निर्माण करना तथा टूटे - फूटे तन्तुओं की मुरम्मत और 3. रोगों से बचाव तथा शारीरिक क्रियाओं का नियन्त्रण
1. ऊर्जा देना (To give energy): - मनुष्य शरीर की तुलना किसी गाड़ी के इंजन से की जा सकती है। जिस प्रकार ईंजन को गति करने के लिए र्इंधन की आवश्यकता होती है उसी प्रकार शरीर को गति करने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। शरीर में दो प्रकार की क्रियाएँ होती हैं –
i. ऐच्छिक (Voluntary) - ये वो क्रियाएँ हैं जिन्हें मनुष्य अपनी इच्छा से करता है तथा जिन पर उसका नियन्त्र होता है जैसे खेलना, कूदना, उठना, बैठना, पढ़ना, लिखना, सीढ़ियाँ चढ़ना, खना पकाना, घर की सफार्इ करना इत्यादि। इन कार्यों को करने के लिए जो ऊर्जा को चाहिए उसे अतिरिक्त ऊर्जा (Extra Energy) कहते हैं।
ii. ऐनैच्छिक (Involuntary) - ये वो क्रियाएँ हैं जिन मनुष्य का नियन्त्रण नहीं होता तथा ये क्रियाएँ शरीर में अपने आप होती है जैसे कि दिल का धड़कना, साँस लेना, रक्त परिवहन, पाचन क्रिया तथा शरीर के तापमान को सामान्य रखना। इन सब क्रियाओं के लिए आवश्यक ऊर्जा को आधरीय चयावचयिक ऊर्जा (Basal Matabolic Energy or B.M.E) कहते हैं।
जो व्यक्ति ऐच्छिक क्रियाएँ अधिक करते हैं, उनके शरीर से ऊर्जा का उपयोग अधिक होने के कारण उन्हें अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि अत्याधिक क्रियाशील व्यक्तियों की ऊर्जा आवश्यकता, कम क्रियाशील व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक होती है। बुढ़ापे में भी शारीरिक कार्य करने की क्षमता कम हो जाने के कारण ऊर्जा की आवश्यकता कम हो जाती है।
ऊर्जा प्राप्ति के मुख्य साधन कार्बोज तथा वसायुक्त पदार्थ हैं। जब शरीर में इन तत्त्वों की कमी होती है तो प्रोटीन अपना शरीर निर्माण का मुख्य कार्य छोड़ कर ऊर्जा देने का कार्य करती है।
ऊर्जा देने वाले कार्बोज़ युक्त खाद्य पदार्थ दो प्रकार के हाते हैं -
(a) शर्करा देने वाले खाद्य पदार्थ - शक्कर, गुड़, चीनी, शहद आादि।
(b) स्टार्च देने वाले खाद्य पदार्थ - विभिन्न अनाज, जड़ वाली सब्जियाँ जैसे आलू, कचालू, शकरकन्दी, केला आदि।
ऊर्जा देने वाले वसायुक्त खाद्य पदार्थों में घी, तेल, मक्खन, क्रीम, बीज तथा सूखे मेवे आदि आते हैं।
आवश्यक ऊर्जा का मुख्य भाग कार्बोज युक्त पदार्थों से लिया जाता है क्योंकि कार्बाज़ आसानी से पचने योग्य होने के साथ - साथ अधिकतर भोज्य पदार्थों में पाया जाता है। निमार्ण कार्यों को सुचारू रूप से चलाने के लिए भी आवश्यक ऊर्जा की मात्रा कार्बोज तथा वसा से भी लेनी चाहिए।
विभिन्न पौष्टिक तत्त्व हमें कैलरी की मात्रा निम्न प्रकार से देते हैं –
1 ग्राम कार्बोज़ |
= 4.1 कैलरी (सुविद्या की दृश्टि से हम 4.0 कैलरी कहते है) |
1 ग्राम प्रोटीन |
= 4 कैलरी |
1 ग्राम वसा |
= 9 कैलरी |
कैलरी - ऊर्जा मापने की इकार्इ को कैलरी (Calorie) कहते हैं। पोषण विज्ञान के अनुसार, एक किलोग्राम पानी को एक डिग्री सैल्सियस (Celsium) तक तक गर्म करने में जितने तापमान की आवश्यकता होती है उसे कैलरी कहते हैं।
2. नए तन्तुओं का निर्माण करना तथा टूटे-फूटे तन्तुओं की मुरम्मत करना (Body Building and Repair of Tissues): - जो तत्त्व शरीर में निर्माण कार्य करते हैं, उन्हें निर्माण भोज्य तत्त्व कहा जाता है। जिस प्रकार किसी इमारत के निर्माण के लिए र्इंट, गारा, सीमेन्ट, पत्थर आदि पदार्थों की आवश्यकता होती है उसी प्रकार शरीर रूपी भवन का निर्माण कोशिकाओं तथा विभिन्न द्रवों से होता है। इन कोशिकाओं का निर्माण मुख्य रूप से प्रोटीन के द्वारा होता है। शरीर की दैनिक क्रियाओं को करने में तन्तु टूटते-फूटते रहते हैं तथा नये तन्तुओं का निर्माण होता रहता है। नए ऊतकों के निर्माण तथा पुराने घिसे हुए टूटे-फूटे तन्तुओं के स्थानापत्र (Replacement) के लिए प्रोटीन, खनिज लवन तथा जल अनिर्वाय तत्त्व हैं। ये सभी तत्त्व, शरीर के कोषों के संगठन में सहायक हैं।
वृद्धि की अवस्था, गर्भावस्था तथा स्तनपान अवस्था में तन्तुओं का निर्माण तीव्र गति से होता है। इन अवस्थाओं में प्रोटिन की आवश्यकता बढ़ जाती है। जिन अचस्थाओं में वृद्धि नहीं होती उन अवस्थाओं में प्रोटीन की आवश्यकता, शारीरिक कार्यों के फलस्वरूप् हो रही निरन्तर टूट-फूट की मुरम्मत के लिए होती है। शरीर के विभिन्न अंगों जैसे माँसपेशिया, दाँत, अस्थियाँ, बाल, त्वचा आदि के निर्माण में प्रोटीन का विशेष महत्त्व है।
खनिज पदार्थों में कैल्शियम तथा फास्फोरस दांतों तथा अस्थियों के निर्माण में सहायता करते हैं, लोहा, प्रोटीन तथा पानी रक्त निर्माण में सहायता करते हैं, आयोडीन के द्वारा शरीर की एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थि, थाइराइड का निर्माण होता है जो मानसिक एंव शारीरिक विकास में सहायक है।
(i) प्रोटीन की प्राप्ति हमें दूध, दही, पनीर, दालों (विशेषकर सोयाबीन), मूंगफली, बादाम, अण्डा, माँस, मछली, फलियों आदि से होती है।
(ii) खनिज लवणों में कैल्शियम की प्राप्ति दूध से निर्मित पदार्थों, हरी पत्तेदार सब्जियों तथा अण्डों आदि से होती है।
(iii) फास्फोरस प्राप्ति के लिए कैल्शियम प्राप्ति के साधनों के अतिरिक्त विभिन्न साबुत अनाजों पर निर्भर करना पड़ता है।
(iv) आयोडीन के मुख्य साधन आयोडीन युक्त नमक, प्याज, समुद्र के आस-पास उगार्इ जाने वाली सब्जियां हैं।
(v) लोहा हमें हरी पत्तेदार सब्जियों, गाढ़े मीठे पदार्थों, अण्डा, माँस, यकृत आदि से हसेता है।
(vi) जल की प्राप्ति शुद्ध जल, पेय पदार्थों, रसभरे फलों, रसे वाली सब्जियों,सुप तथा दूध आदि से होती है।
3. रोगों से बचाव तथा शारीरिक क्रियाओं का नियन्त्रण (To protect against diseases and to regulate body processes): - विटामिन, खनिज लवन, जल तथा प्रोटीन सुरक्षात्मक तत्त्व कहे जाते हैं क्योंकि ये शरीर का रोगों से बचाव करते हैं तथा शारीरिक क्रियाओं को नियन्त्रित करते हैं। शरीर में इनकी उपस्थिति (प्रोटीन को छोड़कर) बहुत कम मात्रा में होता है किन्तु फिर भी पोषण विज्ञान में इनका विशेष महत्त्व है। शरीर में इनकी कमी तथा अधिकता दोनों का कुप्रभाव होता है। विटामिन ‘ए’ आँखों तथा त्वचा की सुरक्षा करता है। शरीर में विटामिन ‘बी’ बेरी-बेरी तथा पैलाग्रा से बचाव करता है, जबकि विटामिन ‘सी’ ‘डी’ ‘र्इ’ तथा ‘के’ क्रमश: स्कर्वी, रिकेट, बाँपनझ तथा रक्तस्त्रव विरोधी विटामिन माने जाते हैं। ये तत्त्व हमें ताजे़ फलों तथा सब्जियों, दूध, दूध से बने पदार्थों, खमीर, अण्डा, माँस, मछली, यकृत आदि से प्राप्त होते हैं।
ये तत्त्व शरीरिक क्रियाओं के नियन्त्रण का कार्य भी करते हैं। खनिज-लवण शरीर में अम्ल-क्षार का सन्तुलन बनाये रखते हैं तथा पाचन क्रिया, रक्त परिवहन, हृदय की धड़कन, शवसन क्रिया, रक्त का थक्का जमना आदि क्रियाओं को नियन्त्रित करते हैं। पानी शरीर के द्रवों को नियन्त्रित करता है तथा शरीर से हानिकारक पदार्थों के उत्सर्जन में सहायता करता है। प्रोटीन रोग निरोधक क्षमता बढ़ा कर रोगों से सुरक्षा प्रदान करती है।
सरोज बाला, कुरूक्षेत्र (हरियाणा)