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भोजन के सामाजिक - सांस्कृतिक कार्य (Socio–cultural Functions of Food)
भोजन; भोजन किसे कहते हैं?; पोषण तत्त्व; पोषण विज्ञान; भोजन का वर्गीकरण; भोजन का महत्त्व तथा कार्य; भोजन के शारीरिक कार्य; भोजन के मनोवैज्ञानिक कार्य; भोजन के सामाजिक - सांस्कृतिक कार्य
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मनुष्य एक सामाजिक तथा समाज में रहते हुए वह कर्इ लोगों के साथ सम्बन्ध बनाता है। प्राचीन काल से ही भोजन को सामाजिक सम्पर्क बढ़ाने के माध्यम के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। बहुत से सामाजिक अवसरों पर प्राय: पार्टी दी जाती है जिसमें भोजन परोसा जाता है। सामाजिक अवसर निम्न प्रकार के हो सकते हैं -
(i) पारिवारिक अवसर (Family occassions): विभिन्न पारिवारिक अवसर जैसे कि परिवार के सदस्यों के जन्म दिन, शादी की वर्षगांठ, बच्चों के बाल उतरवाना, नामकरण संस्कार, बच्चों के पास होने की खुशी, परिवार के किसी सदस्य की नौकरी लगना या तरक्की होना, व्यापार में तरक्की आदि इसके अतिरिक्त विभिन्न त्योहारों जैसे होली, दीवाली, दशहरा, रक्षाबन्धन, टीका, क्रिसमस, र्इद आदि पर पकवान बनाए जाते हैं।
(ii) धार्मिक अवसर (Religious occassions): धार्मिक अवसर जैसे वृत के समस अलग प्रकार का खाना खाया जाता है। मन्दिर, गुरूद्वारों में लंगर लगते हैं। इसके अतिरिक्त ज़रूरत मंदों को भोजन खिलाना, मन्दिर में प्रसाद बाँटना, पित्तरों को सम्मान देने के लिए ब्राहम्ण को भोजन कराना आदि।
(iii) शैक्षणिक अवसर (Educational occassions): विधलयों, महाविद्यालयों तथा युनिवर्सिटी में समय-समय पर समारोह (Functions) होते रहते हैं जैसे कि स्वागत समारोह, सेमिनार, विभिन्न प्रतियोगिताएँ (Competitions), दीक्षान्त समारोह (Convocation), खेल-कूद दिवस (Sports day), विदार्इ समारोह, सेवा निवृति (Retirement) समारोह आदि।
(iv) राजनीतिक अवसर (Political Occassions): राजनीतिक सभाएँ, राजनीतिक सैयान, मीटिंग, प्रैस कॉनफैन्स आदि।
भोजन निम्न प्रकार से हमारी सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करता है-
1. किसी विशेष व्यक्ति को सम्मान तथा महत्त्व देने के लिए उसे खाने पर बुलाया जाता है जैसे नवविवाहित दम्पत्तियों को आमन्त्रित करना।
2. गुरूद्वारे, मन्दिर आदि में जब लंगर बर्ताया जाता है तो लोग बढ़-चढ़ कर सेवा करते हैं। इससे सामाजिकता तथा अपनेपन की भावना बढ़ती है, लोग अपने धर्म, वर्ग, जाति तथा राज्यों का भेद-भाव मिटा कर आपसी सहयोग, प्यार तथा शान्ति का वातावरण बनाते हैं
3. भोजन एक ऐसा वातावरण तैयार कर देता है जिसमें विभिन्न धर्मों, जाति तथा प्रान्त के लोग आपस में भेद-भाव मिटाकर एक दूसरे के रीति-रिवाज़ों तथा परम्परायों का ज्ञान प्राप्त करते हैं।
4. सामाजिक उप्सवों में हम भोजन का आयोजन मुख्यता सामाजिक सम्बन्ध बढ़ाने के उदेश्यसे करते हैं। उस समय हम नहीं सोचते कि परोसा जाने वाला भोजन कितना पौष्टिक है।
5. भोजन लोगों को एक दूसरे से मिलने का अवसर प्रदान करता है। इससे सामाजिक सम्बन्ध अधिक मज़बूत तथा गहरे होते हैं।
6. प्रत्येक व्यक्ति का अपना एक दायरा (Circle) होता है। उस दायरे में प्रत्येक व्यक्ति परिवार समेत मिलन समारोह (Get togethers) करता है। इससे जीवन में एक उत्साह तथा नवीनता बनी रहती है।
7. किसी भी होटल, ढ़ाबे तथा रैस्टारन में, किसी भी जाति का व्यक्ति, पैसे देकर, बिना किसी भेद-भाव के, सबके बराबर बैठ कर खना खा सकता है। इससे उसे मन की खुशी प्राप्त होती है।
8. शैक्षणिक संस्थानों में समारोह के पश्चात् भोजन परोसने का मुख्य उदेश्य होता है मुख्य अतिथि के साथ विचारों का आदान-प्रदान करना। इससे बच्चे भी मुख्य अतिथि से बात करके अपनी समस्याओं का समाधान (Solution) कर सकते हैं।
9. जब कोर्इ मेहमान दूसरे राज्य से या विदेश से आता है तो उसे हमारी तरफ़ के भोजन का पता चलता है। इसी प्रकार हमारे दूसरे राज्यों में जाने से हमें वहाँ के बारे में पता चलता है। इससे समरूपता तथा एकता की भावना विकसित होती है।
सरोज बाला, कुरूक्षेत्र (हरियाणा)