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ऊर्जा प्रदान करने वाले भोज्य तत्व - वसा तथा लिपिड; Energy giving Food Nutrients - Fats and Lipids
वसा तथा लिपिड; वसा की प्राप्ति के साधन; वसा की दैनिक आवश्यकता; वसा के कार्य; वसा की कमी से हानियाँ; वसा की अधिकता से हानियाँ; वसा की विशेषताएं
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प्रकृति से प्राप्त वे सभी भोज्य पदार्थ, जो वसामय देते हैं, उन्हें वसा (Fat) कहा जाता है। ये हमारे आहार का महत्वपूर्ण भाग हैं। इनसे भोजन की स्वादिष्टता बढ़ती है तथा ऊर्जा की प्राप्ति होती है। घी, मक्खन, तेल आदि वसा के उदाहरण हैं।
प्रकृति में कुछ कार्बनिक यौगिक (Organic Compounds) ऐस भी हैं जो वसा से बहुत मिलते-जुलते हैं, उन्हें लिपिड्स कहा जाता है। ये
1. हमारे शरीर की कोशिकाओं का भाग बनते हैं,
2. विटामिन ‘डी’ के पूर्वगामी (Precursor) बनकर उसके निर्माण में सहायक होते हैं,
3. हार्मोन्स की संरचना में भाग लेते हैं,
4. रक्त तथा त्वचा में उपस्थित रहते हैं।
ये सभी पदार्थ स्टीरॉल (Sterol) कहलाते हैं। वसा में स्वाभाविक रूप से बनने वाले ग्लिसराइड्स (ग्लिसरोल तथा वसा अम्लों के संयोग से) आदि शरीर में चयापचय के दौरान बनने वाले ट्रार्इ-ग्लिसराइड्स (वसा तथा कार्बोज के संयोग से) आदि इसी श्रेणी में आते हैं। इन सभी वसामय तथा वसा से मिलते-जुलते पदार्थों को सम्मिलित रूप से लिपिड्स (Lipids) कहा जाता है। (Sterols + glyceroids)
कार्बोज की तरह लिपिड्स भी तीन तत्वों कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन के यौगिक होते हैं किन्तुं इनमें कार्बन और हाइड्रोजन की मात्रा ऑक्सीजन की मात्रा से अधिक होती है। यही कारण है कि वसा का एक ग्राम 9 कैलोरी ऊर्जा देता है जो कि कार्बोज तथा प्रोटीन के एक-एक ग्राम से प्राप्त होने वाली ऊर्जा से क्रमश: 2.1 व 4.0 गुणा अधिक है।
वास्तव में वसा ग्लिसरोल तथा वसीय अम्लों (Fatty acids) के संयोग से बना ऐस्टर (Ester) है। इसमें एक अणु ग्लिसरोस तथा तीन अणु वसीय अम्ल के होने के कारण ही इसे ट्रार्इ ग्लिसराइड (Triglyceride) कहते हैं।
वसा तथा लिपिड पानी में अघुलनशील, किन्तु विभिन्न कार्बनिक द्रवों जैसे र्इथर, एल्कोहल, पैट्रोल, बैन्जीन, कार्बनटैटराक्लोराइड आदि में घुलनशील होते हैं।
आहार में ली जाने वाली वसा ठोस तथा तरल, दोनों रूपों में पार्इ जाती है। जन्तु-जगत से प्राप्त वसा जैसे मक्खन, घी, अण्डे की जर्दी, माँस के साथ लगी चर्बी आदि कम तापमान पर (20°C तापक्रम पर ) ठोस होती है। वनस्पति-जगत से प्राप्त वसा (20°C तापक्रम पर तरल होती है तथा तेल या असंतृप्त्त वसा कहलाती है, अपवाद नारियल का तेल) जमने वाली वसा संतृप्त वसा कहलाती है। इसमें कार्बन अणु पूर्ण रूप से हाइड्रोजन के साथ एक बन्ध (Single Bond) से जुड़े होते हैं तथा इनके साथ अतिरिक्त हाइड्रोजन संलग्न नहीं हो सकते। स्टीऐरिक अम्ल इसका उदाहरण है।
कुछ ऐसे फैटी अम्ल भी हैं जिनमें कार्बन अणु पूरी तरह से हाइड्रोजन के साथ संलग्न होने के स्थान पर आपस में ही-बंध (Double Bond) से बन्ध जाते हैं। उनमें इस द्वि-बन्ध को तोड़ने और अतिरिक्त हाइड्रोजन अणु के साथ योग करने की क्षमता होती है। इन फैटी अम्लों को असंतृप्त फैटी अम्ल (Unsaturated fatty acids) कहते हैं। यदि इन अम्लों में एक दोहरा बन्धक हो तो इन्हें मोनो असंतृप्त वसीय अम्ल (Mono-unsaturated Fatty Acid) कहा जाता है उदाहरण के लिए ओलीक अम्ल (Oliec Acid)। जिन अम्लो में एक से अधिक दोहरे बन्धक होते हैं उन्हें पोली असंतृप्त वसीय अम्ल (Poly unsaturated faddy acid) कहा जाता है। उदाहरण के लिए लिनोलिक वसीय अम्ल में दो द्वि-बन्धक (Double Bonds) होते है, लिनोलिक अम्ल में तीन द्वि-बन्धक तथा एरेकिडोनिक अम्ल में चार द्वि-बन्धक होते हैं।
आवश्यक वसीय अम्ल (Essential Fatty Acids or E.F.A.)
कुछ वसा अम्ल हमारे शरीर में संशलेषित हो जाते हैं तथा कुछ नहीं होते। जो वसीय अम्ल हमारे शरीर में संशलेशित नहीं होते उन्हें हम आवश्यक वसीय अम्ल (Essential Fatty Acids) कहते हैं। अच्छे स्वास्थ्य के लिए भोजन में आवश्यक वसा अम्लों को सम्मिलित करना अनिवार्य है। तीन वसा अम्लों को मुख्य रूप से आवश्यक वसा अम्ल माना जाता था। लिनोलिक अम्ल (Linoleic acid), लिनोलेनिक अम्ल (Linoleic Acid) तथा एराकिडोनिक अम्ल (Arachidonic acid)। ये तीनों असंतृप्त वसा अम्ल हैं।
वैज्ञानिक अनुसंधानों से यह सिद्ध हो चुका है कि एराकिडोनिक अम्ल का निर्माण हमारे शरीर द्वारा लिनोलिक अम्ल से किया जाता है। इसलिए इसे आंशिक रूप से आवश्यक वसा अम्ल माना जाने लगा है। किन्तु आहार में Arachidonic Fatty Acid सम्मिलित न किए जाने की स्थिति में लिनोलिक Fatty Acid से अधिक मात्रा में लेना आवश्यक होना। असंतृप्त वसा अम्ल वनस्पति साधनों से अधिक मात्रा में प्राप्त किए जा सकते हैं।
ब्यूटायरिक अम्ल (Butyric acid), पामिटिक अम्ल (Palmitic acid), कैपराइलिक अम्ल (Caprylic acid) तथा स्टीएरिक अम्ल (Stearic acid) आदि संतृप्त वसीय अम्ल हैं तथा अनावश्यक वसा अम्ल कहलाती हैं।
खाद्ध वसा या तेल |
संतृप्त |
वसा-अम्ल |
असंतृप्त |
वसा-अम्ल |
||
कुल मात्रा |
पामिटिक |
स्टिएरिक |
कुल मात्रा |
ओलीक |
लिनोलिक |
|
भैंस का दूध |
62 |
29 |
15 |
33 |
26 |
1 |
गाय का दूध |
55 |
25 |
12 |
39 |
33 |
3 |
बकरी का दूध |
62 |
27 |
8 |
33 |
25 |
5 |
मानव का दूध |
46 |
22 |
7 |
48 |
34 |
7 |
मुर्गी का दूध |
32 |
25 |
7 |
61 |
44 |
7 |
मक्खन |
55 |
25 |
12 |
39 |
33 |
3 |
चावल |
17 |
12 |
2 |
74 |
39 |
35 |
गेहूँ का आटा |
14 |
10 |
4 |
76 |
31 |
42 |
गेहूँ का अंकूर |
15 |
11 |
4 |
77 |
23 |
48 |
मूंगफली का तेल |
18 |
8 |
6 |
76 |
47 |
29 |
सोयाबीन का तेल |
15 |
9 |
6 |
80 |
20 |
52 |
सूरजमुखी का तेल |
12 |
6 |
5 |
83 |
20 |
63 |
कपास के बीज का तेल |
25 |
22 |
2 |
71 |
21 |
50 |
चिकनार्इ (वनस्पति) |
23 |
14 |
6 |
72 |
65 |
7 |
हाइड्रोजनीकरण (Hydrogenation)
हाइड्रोजनीकरण वह रासायनिक प्रक्रिया है जिससे असंतृप्त वसाओं में हाइड्रोजन का समावेश कराके उन्हें संतृप्त बनाया जाता है। इससे वे सामान्य तापमान पर ठोस रूप धारण कर लेती है। वनस्पति तेलों से वनस्पति घी की इसी प्रक्रिया के द्वारा ही की जाती है। हाइड्रोजनीकरण की प्रक्रिया निम्नलिखित प्रकार से होती है।
लिनोलेनिक अम्ल –(Hydrogenation)à लिनोलेनिक अम्ल –(Hydrogenation)à
ओलीक अम्ल –(Hydrogenation)à स्टीएरिक अम्ल
वर्गीकरण - प्रकृति में पाए जाने वाले लिपिड्स को उनकी रासायनिक रचना के अनुसार निम्नलिखित तीन वर्गों में विभाजित जा सकता है - (i) साधारण लिपिड (ii) यौगिक लिपिड (iii) व्युत्पन्न लिपिड
(i) साधरण लिपिड (Simple Lipids) - इन लिपिड्स को ट्राइग्लिसराइड्स व उदासीन वसा भी कहते हैं क्योंकि पाचन के पशचात् इनका एक अणु तीन अणु वसा अम्ल तथा एक अणु ग्लिसरोल का निर्माण करता है। ये तीनों वसा अम्ल समान भी हो सकते हैं तथा भिन्न भी हो सकते हैं उदाहरण के लिए गोमांस में पार्इ जाने वाली चर्बी जिसे ट्राइस्टिऐरिन कहते हैं, में तीन स्टीएरिक अम्ल मूलक होते हैं। ऑलियोडायपामिटिक (Oleodiapalmitic) में एक ओलीक अम्ल का अणु तथा दो अणु पामिटिक अम्ल के होते हैं।
स्टीयरो -ऑलियो- पामिटिक ((Steareo – Oleo -- palmitic) में एक-एक अणु स्टिएरिक अम्ल, ओलीक अम्ल तथा पामिटिक अम्ल का होता है। भोजन द्वारा ली गर्इ वसा का लगभग 98-99 प्रतिशत भाग साधारण लिपिड का होता है। शुद्ध तेल तथा घी इसी वर्ग के अन्तर्गत आते हैं।
(ii) यौगिक लिपिड (Compound Lipids) - इस प्रकार की वसा में ग्लिसरोल तथा तीन वसा अम्लों के अतिरिक्त कुछ अन्य प्रकार के रासायनिक तत्व भी होते हैं जैसे कि
(1) फास्फो लिपिड (Phospho Lipid)- इस वसा में ग्लिसरोल तथा फैटी एसिड के अतिरिक्त फास्फोरिक अम्ल उपस्थित होता है, उदाहरण के लिए लेसिथिन (Lecithin) सेफालिन (Cephalins) तथा स्फिन्गोमाइलिन (Sphingomyeline) आदि वसाएँ । फास्फोलिपिड शरीर में वसा अम्लों के स्थानान्तरण में तथा पाचन क्रिया में सहायता करते हैं। ये जटिल वसाएँ शरीर की प्रत्येक कोशिका के प्रोटोत्लाज्म में पार्इ जाती हैं तथा हृदय, यकृत, मस्तिश्क, नाड़ी - ऊतकों, गंर्दों, मांसपेशियों में इनकी मात्रा अधिक होती है।
(2) सल्फो लिपिड (Sulpho lipid) - इससे वसा के साथ, कार्बोज के अतिरिक्त, सल्फ्यूरिक अम्ल की उपस्थिति होती है।
(3) ग्लायको लिपिड (Glyco Lipid) - ये लिपिड ग्लिसरोल, फैटी अम्ल तथा कार्बोज के संयोग से बनते हैं। उदाहरएा के लिए सेरेब्रोसाइड (Cerdrosides), साइटालिपिन (Cytolipin) तथा गैन्गलियो साइड (Gangliosides) वसाएं। लिपिड मुख्यता मस्तिष्क तथा तंत्रिका ऊतकों में पाए जाते हैं।
(4) लाइपो प्रोटीन (Lipo protein) - इनमें वसीय अम्ल ग्लिसरोल तथा प्रोटीन की उपस्थिति होती है। वसा का शरीर में स्थानान्तर इसी रूप में होता है क्योंकि रक्त में वसा मुख्यता होती है।
(iii) व्युत्पन लिपिड्स (Derived Lipids) - साधारण तथा यौगिक वसायों के जलीय अपघटन (Hydrolysis) तथा एन्ज़ाइम के द्वारा की जाने वाली क्रिया के फलस्वरूप प्राप्त होने वाली वसायों को प्राप्त की हुर्इ वसा या व्युत्पन्न लिपिड्स (Derived lipids) कहते हैं। वसा अम्ल तथा ग्लिसरोल इसी वर्ग की वसाएं हैं। इसके अतिरिक्त इस समूह में कुछ ऐसी वस्तुएं भी आती हैं जो वसा नहीं होती किन्तु वसा से मिलती-जुलती होती हैं जैसे एल्कोहल, मोम, स्टीरोल आदि।
स्टीरोल के अन्तर्गत तीन प्रमुख यौगिक आते हैं:
(1) अर्गोस्टीरोल (Ergosterrol) (2) 7-D हाइड्रोकोलेस्टीरोल (7-D-Hydrcholesterol) (3) कोलेस्टोरोल (Cholesterol)।
अर्गोस्टोरोल, वनस्पति जन्य स्टीरोल है तथा दोनों जन्तु जन्य स्टीरोल हैं। अर्गोस्टीरोल एवं 7-D हाइड्रोकोलेस्टीरोल अवटामिन ‘डी’ के पूर्वगामी हैं। कोलेस्टीरोल केवल जन्तु-जगत से प्राप्त होता है। वनस्पति साधनों से प्राप्त वसा में इसकी मात्रा शून्य है। शरीर में कोलेस्टीरोल, भोजन द्वारा तथा यकृत के ऊतकों में संशलेशण क्रिया द्वारा उत्पन्न होता है। वैज्ञानिकों के मतानुसार रक्त में कोलेस्टीरोल का उच्च स्तर एथिरोस्क्लिरोशिश (Atherosclerosis) नामक रोग पैदा कर देता है। इस रोग में कोलेस्टीरोल धमनियों की दीवारों पर जमकर उन्हें संकुचित कर देता है। इससे रक्त का दबाव बढ़ जाता है।
वसा की प्राप्ति के साधन (Sources of Fats)
वसा की दैनिक आवश्यकता (Recommended Daily allowance of fats)
वसा के कार्य (Functions of Fats)
वसा की कमी से हानियाँ (Effects of deficiency of fats)
वसा की अधिकता से हानियां (Effects of excessive intake of fats)