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गुणकारी मशरूम
आदित्य*, जे.एन. भाटिया** एवं सरोज बाला दहिया***
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* B.Sc. (Hons.) Agri. (pursuing), Sher-e-Kashmir University of Agriculture and Technology, Jammu & Kashmir (India)
** Professor (Plant Pathology), CCS HAU KVK Kurukshetra, Haryana
*** Kurukshetra Global City, Kurukshetra, Haryana - 136118
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मशरूम को खुम्ब, खुम्बी, पहाड़ी फूल, च्यू व कुकुरमुत्ता भी कहते हैं जो जो बरसात के दिनों में गले-सड़े कार्बनिक पदार्थ पर अनायास ही दिखने लगता है। यह एक मृतोपजीवी जीव है जो हरित लवक के अभाव के कारण अपना भोजन स्वयं संश्लेषित नहीं कर सकता है। इसका शरीर थैलसनुमा होता है जिसको जड़, तना और पत्ती में नहीं बाँटा जा सकता है।
श्वेत बटन मशरूम (White button mushroom)
मशरूम वैज्ञानिक रूप से पादपवर्गीय हरितपर्णरहित अर्थात क्लोरोफिलरहित फफूँद श्रेणी का वह पौधा जो स्वयं भोजन नहीं बना सकता जिस कारण पोषण तत्वों की आवश्यकता पूर्ति के लिए ये कई प्रकार के कार्बनिक पदार्थों पर प्राकृतिक रूप में उगते दिखायी देते हैं। खुम्ब की सरंचना मशरूम प्रदत्त बीजाणुओं (Mushroom spawn) से धागे के समान कवक जाल (Fungus mycelium) से होती है ।
मशरूम एक पौष्टिक, स्वादिष्ट, स्वास्थ्यवर्धक एवं औषधीय गुणों से भरपूर रोगरोधक सुपाच्य खाद्य पदार्थ है। इसमें प्रोटीन, खनिज-लवण, विटामिन जैसे पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में होने के साथ-साथ लाभकारी रेशे (Fibers) भी खूब मात्रा में विद्यमान होते हैं। चीन के लोग इसे महा-औषधी एवं रसायन सदृश्य मानते हैं जो जीवन में अदभुत शक्ति का संचार करने में सक्षम है। इसके विविध गुणों के कारण रोम निवासी मशरूम को र्इश्वर का आहार मानते हैं (Chang and Buswell 1996, Gupta 2014)। इसमें विशेष प्रकार की आकर्षक खुशबू होने के कारण लोगों द्वारा आहार के रूप में ज्यादा पसन्द किया जाता है। शुरूआती दौर में मशरूम को केवल इनकी स्वादिष्टता के कारण ही सेवन किया जाता था लेकिन औषधीय गुणों के कारण अब यह गुणकारी आहार के रूप में स्थापित हो चुकी है (राणा 2007)। दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में इस्तेमाल होने वाली पारंपरिक दवाइयों में इसे एक प्रशंसनीय स्थान भी मिला है (Chang and Miles 2004, Ajith and Janardhanan 2007)।
आजकल परम्परागत कृषि में सब्जियों को उगाने से लेकर आकर्षक रंग-रूप तक देने में रासायानिक खाद, कीटनाशक, फफूँदनाशक या कृषि उत्पाद को जल्दी बढ़ाने वाले हार्मोन इत्यादि का प्रयोग किया जाता है जोकि मानव स्वास्थ्य के लिये हानिकारक सिद्ध होता जा रहा है। इन कृषि उत्पादों के साथ रासायानिक तत्व हमारी आहार-श्रृंखला में प्रवेश कर शरीर में पहुँचकर धीरे-धीरे रोगरोधी तन्त्र को कमजोर बनाते हैं। मशरूम उत्पादन में किसी भी प्रकार के घातक रासायनों का उपयोग नहीं किया जाता है वरन् मशरूम-आधारित आहार अन्य प्रकार की सब्जियों के अधिक गुणकारी होने के साथ-साथ यह मानवीय शरीर में बीमारियों के प्रति रोगप्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है। अत: इस सन्दर्भ में मशरूम की उपयोगिता लगातार बढ़ती जा रही है। यह पोषक गुणों से भरपूर शाकाहारी जनसंख्या के लिये महत्वपूर्ण विकल्प है।
संदर्भ
Ajith T.A. and Janardhanan K.K., 2007, “Indian medicinal mushrooms as a source of antioxidant and antitumor agents,” Journal of Clinical Biochemistry and Nutrition; 40(3): 157-162. [Web Reference]
Chang S.T. and Buswell J.A., 1996, “Mushroom nutriceuticals,” World Journal of Microbiology and Biotechnology; 12(5): 473-476. [Web Reference]
Chang S.T. and Miles P.G., 2004, “Mushrooms: Cultivation, nutritional value, medicinal effect, and environmental impact,” CRC Press: London, UK; pp. 11-24. [Web Reference]
Gupta A.K., 2014, Nutritious and medicinal properties of mushrooms, Krishisewa, assessed on February 11, 2018. [Web Reference]
आर.एस. राणा, जयनारायण भाटिया, आर. एल. मदान, एस.पी. गोयल एवं एम.एस. पंवार, 2007, “खुम्ब उत्पादन: लाभकारी व्यवसाय,” बुलेटिन संख्या (23), विस्तार शिक्षा निदेशालय, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषिविश्वविद्यालय, हिसार।