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कपालभाति

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शारीरिक यथास्थिती: कोर्इ भी ध्यानात्मक आसन जैसे सुखासन, पद्मासन या वज्रासन आदि।

अभ्यास विधि:

* सर्व प्रथम किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठना चाहिए।

* आँखें बंद करते पूरे शरीर को शिथिल करना चाहिए।

* दोनों नथुनों से गहरी श्वास अन्दर खींचते हुए छाती को फुलाना चाहिए।

* उदर की माँसपेशियें को दबावपूर्वक अन्दर बाहर करते हुए श्वास छोड़ना तथा ग्रहण करना चाहिए।

* सक्रियता पूर्वक श्वास बाहर छोड़ना एवं निष्क्रियता पूर्वक उच्छ्वास करना चाहिए।

* कम से कम तीव्र श्वास के 30 चक्र तक पूरा करना चाहिए।

* इसके बाद गहरी श्वास अन्दर लेते हुए धीरे-धीरे बाहर छोड़ना चाहिए।

* यह कपालभाति का एक चक्र पूरा हुआ।

* इसी प्रकार प्रत्येक चक्र पूरा करने के बाद गहरा श्वास लेना चाहिए।

* इस अभ्यास को कम से कम दो बार और दोहराना चाहिए।

श्वसनक्रिया:

* यह श्वसनक्रिया उदर की माँसपेशियों के अतिरिक्त दबाव के बिना होनी चाहिए।

* श्वास बाहर छोड़ने की क्रिया छाती और कंधे के क्षेत्र में कोर्इ अनुचित गतिधि के अतिरिक्त होनी चाहिए।

* पूरे अभ्यास के समय श्वास का उच्छ्वास सहज रूप से होना चाहिए।

* अभ्यास की चक्र संख्या: प्रारम्भिक अवस्था में 3 चक्र तक अभ्यास कर सकते हैं।

लाभ:

कपालभति कपाल को शुद्ध करता है। कफ विकरों को समाप्त करता है।

यह जृकाम, साइनोसाइटिस, अस्थमा एवं श्वास नल संबंधी संक्रमणों में लाभदायक है।

यह पूरे शरीर का कायाकल्प करता है और चेहरे को सुकोमल एवं दीप्तिमान बनाएं रखता है।

यह तन्त्रिका तन्त्र को संतुलित कर शक्तिशाली बनाता है साथ ही साथ पाचन तन्त्र को Share on: Post on Facebook Facebook Add to your del.icio.us del.icio.us Digg this story Digg StumbleUpon StumbleUpon Twitter Twitter

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