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पराली का पशु आहार में उपयोग - भाग - 1
के.एल. दहिया*
* स्नातक, पशुचिकित्सा एवं पशु विज्ञान; ग्लोबल सीटी, कुरूक्षेत्र, हरियाणा। email: drkldahiya@hotmail.com
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धान की फसल से थ्रैसर, कम्बाईन या हाथों द्वारा धान को अलग करने के बाद बचे हुए अवशेष को पराली कहते हैं। एक किलो चावल की पैदावार से लगभग 1.3-1.5 किलोग्राम पराली का उत्पादन होता है। एक एकड़ धान के खेत से लगभग 20 क्विंटल सूखी पराली व अन्य अवशेष होते हैं जिनको पशुओं के चारे के रूप में एपयोग किया जा सकता है। रबी फसलों की बुवाई में देरी न हो सामान्यतय: पराली को अधिकांश क्षेत्रों में इसे जला दिया जाता है। जिससे कि जलाने से उत्पन्न हुए धुंए के कारण सांस लेने में परेशानी व आँखों में जलन आदि समस्याओं से सामना होता है। सड़क के आसपास के खेतों में अवशेषों के जलाने से उत्पन्न हुए धुंए से सड़क पर चलने वाले वाहनों को आगे दिखायी देना कम हो जाता है जिससे दुर्घटना होने की सम्भावना भी रहती है। इस समस्या से बचने के लिए पराली के वैकल्पिक उपयोगों पर विचार करने की आवश्यकता है।
पराली को जलाया जाना एक वैश्विक समस्या है जिससे वातावरण को लगातार खतरा बढ़ता जा रहा है। इसके जलाने से वातावरण में ग्रीम हाउस गैसें (Green house gases) जैसे कि कार्बन-डाईऑक्साइड, कार्बन-मानो-ऑक्साइड, मिथेन, नाईट्रस ऑक्साइड, फ्लोरीनेट्ड गैसें (हाइड्रोफ्लोराकार्बन, परफ्लोरोकार्बन, सल्फर हेक्जाफ्लोराइड एवं नाइट्रोजन ट्राइफ्लोराइड आदि) उत्पन्न होती हैं। इनके लगातार बढ़ते उत्पादन से सूर्य की विकिरणों से हमें बचाने वाली ऑजोन परत को लगातार खतरा बढ़ता जा रहा है। ऑजोन परत को नुकसान होने से वैश्विक तापमान वृद्धि हो रही है जिस कारण वातावरण में बदलाव के कारण असमय ही मौसम में परिवर्तन से प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं।
पराली तथा गेहूँ की तुड़ी का पौषक मान लगभग समान होते हुए भी पशुपालक पराली के स्थान पर तुड़ी को हरे चारे के साथ मिलाकर पशुओं को खिलाते हैं। इसका मुख्य कारण (1) इन क्षेत्रों में पशुओं में पाई जाने वाली डेगनेला बीमारी व (2) पराली की कुट्टी करना मंहगा पड़ता है, जबकि तुड़ी सहज ही उपलबध हो जाती है।
पराली को पशु चारे के रूप में खिलाने के साथ-साथ इसे निम्नलिखित प्रकार से भी उपयोग किया जा सकता है।
1. इससे बने खाद को खेतों में डालने से कृषि भूमि के उर्वरा शक्ति को बढ़ाया जा सकता है।
2. खरपतवार को नियन्त्रित करने के लिए पराली को फसलों में आच्छादन (Mulching) के रूप में उपयोग किया जाता है।
3. इसका उपयोग पशुओं के बांधने के लिए बनाए जाने वाले छप्पर में भी उपयोग किया जाता है।
4. इसको एल्कोहॉल बनाने में भी उपयोग किया जा सकता है।
5. इससे कागज भी बनाया जाता है।
6. इसको मशरूम की खेती में भी की जाती है।
पराली के रासायानिक संघटक
एक क्विंटल पराली में लगभग 120 ग्राम फास्फोरस, 2 किलोग्राम पोटाशियम, 4 किलोग्राम सिलिका व 40 किलोग्राम कार्बन होता है।इसके अतिरिक्त दी गई तालिका में पराली साथ-साथ अन्य सूखे चारों में निम्नलिखित संघटक पाए जाते हैं।
पोषक तत्व |
पराली |
तुड़ी |
जई |
जौ |
प्रोटीन (%) |
2.20 |
2.33 |
5.34 |
3.62 |
वसा (%) |
1.40 |
1.59 |
1.65 |
1.91 |
हेमिसैल्यूलोज (%) |
43.49 |
34.20 |
37.60 |
33.25 |
सेल्यूलोज (%) |
23.28 |
23.68 |
23.34 |
20.36 |
लिग्निन (%) |
4.80 |
13.88 |
12.85 |
17.13 |
राख (%) |
18.10 |
2.36 |
2.19 |
2.18 |
सिलिका (%) |
9.14 |
2.50 |
2.80 |
2.45 |
पराली जलाने से हाँनिया
1. 400 किलोग्राम कार्बन वापस हवा में चला जाता है।
2. 90 प्रतिशत नाईट्रोजन वायुमण्डल में चली जाती है।
3. 25 प्रतिशत फास्फोरस और 21 प्रतिशत पोटाशियम का नुकसान होता है।
4. जलने के बाद केवल सिलिका ही बचता है जो आग में तपने के बाद अघुलनशील हो जाता है।
5. पराली या अन्य सूखे अवशेष जलाने से वातावरण, मानव और भूमि पर बुरा असर पड़ता है।
खेत में परली जलाने के नुकसान
1. भूमि के मित्र कीट नष्ट हो जाते है।
2. वातावरण की नमी में कमी आ जाती है।
3. वातावरण का तापमान बढ़ जाता है।
4. अत्याधिक धुंए से मनुष्यों में दमा, अस्थमा जैसे श्वास रोग हो जाते हैं।
5. पराली के धुंए से आँखों में जलन, मार्गों पर अस्पष्टता में बढ़ौत्तरी होने से दुर्घटनाए बढ़ जाने का खतरा हो जाता है।
6. भूमि की आर्द्रता में कमी आ जाती है।
पराली प्रबन्धन व उसका सही उपयोग
अब यह भली-भान्ति विधित है कि पराली जलाने से बहुत सारे नुकसान होते हैं। इसलिए इन नुकसानों बचने के लिए ऐसी मशीनों जैसे कि सुपरस्ट्रा मैनेजमैंट कम्बाईन, से ही फसल को कटवाना चाहिए ताकि पराली खेत में बचे ही नहीं। यदि ऐसी मशीनें उपलब्ध नहीं होती हैं तो फसल के अवशेषों को इक्कट्ठा करने के लिए मशीने उपलब्ध हैं जो खेत में पड़े फसल अवशेषों को इक्ट्ठा करके एक गठड़ी में बांध देती है जिनकोंआसानी से उठाकर खेत बाहर किया जा सकता है व उसको खाद बनाने या पशुओं के चारे के लिए अथवा किसी फैक्ट्री में सही उपयोग के लिए भेजा जा सकता है। पराली को निम्नलिखित तरीकों से उपयोग किया जा सकता है।
1. खाद बनाना
2. ईंधन के लिए
3. पशु आहार बनाने के लिए
खाद के रूप में पराली की उपयोग
पराली के खाद के रूप में उपयोग करने से भूमि में जैविक कार्बन का स्तर बढ़ने से उसकी उर्वरा शक्ति में बढ़ोत्तरी होने होती है जिससे अच्छी फसल पैदा होती है। पराली को खेतों में खाद के रूप में निम्नलिखित तरीकों से उपयोग किया जा सकता है।
1. फसल की कटाई के बाद पराली व अन्या अवशेषों को जलाने के बजाय उनको खेत में ही मिलाया जाता है जिससे कि व भूमि में गलकर मिट्टी में आस्मसात हो जाए और भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाए।
2. पराली को गोबर के साथ मिलाकर इक्ट्इा रखने से कुछ ही महीनों में कम्पोस्ट खाद में रूपान्तरित हो जाती है। इस कम्पोस्ट खाद को खेतों में उपयोग कर भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाया जाता है।
3. आच्छादन: फसल में पराली व अन्य फसलीय अवशेषों आच्छादन के रूप में उपयोग करने से न सिर्फ भूमि उर्वरा शक्ति बढ़ती है बल्कि अन्य अवाँनीय पौधे भी नहीं पनपते हैं। आच्छादित की पराली सड़कर भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाती है। आच्छादन खेतों से पानी को वाष्पित होने से भी बचाता पानी को भी बचाता है। इस प्रकार आच्छादन खरपतवार नाशक दवाईयों के उपयोग को रोकता है व पानी की बचत करता है जिससे उपज की उत्पादन लागत कम होती है।
फोटो सभार: डा. वजीर सिंह, जीरो बजट प्राकृतिक खेती में कार्यरत
ईंधन के रूप में पराली का उपयोग
पराली का उपयोग धुंआ-मुक्त ईंधन की इष्टिका (briquette) तैयार करने में किया जाता है जिससे लोगों को रोजगार भी मिलता है और ईंधन के रूप में लकड़ी, कोयले तथा गोबर के कन्डों की खपत भी की जा सकती है।
पशु आहार में पराली का उपयोग
पराली में गेंहूँ तैयार की गई तुड़ी से कम पोषक तत्त्व होते हैं फिर भी आमतौर पर पराली को साबुत या इसकी कुट्टी बनाकर पशुओं को खिलाया जाती है। पराली को पशुओं को खिलाने में निम्नलिखित चुनौतियाँ हैं:
1. पराली की स्वादिष्टता कम होन के कारण इसको पशु क खाना पसन्द करते हैं। फसल कटाई के 10 दिन के अन्दर-अन्दर यदि पराली के गठर बनाकर रखे जाएं तो पशु अधिक मात्रा में खाते हैं। पराली की पत्तियों ऊपर होने वाले बारीक रोए पशु को को प्रारम्भ में खाने में परेशानी करते हैं।
2. पराली में अन्य चारे की तुलना में लिग्निन की मात्रा कम व सिलिका की मात्रा ज्यादा होती है। तने की अपेक्षा पत्तियों में सिकलका की मात्रा ज्यादा होती है। सिलिका की अत्याधिक मात्रा होने के कारण पराली कम पाचक होती है।
3. पशुओं के लिए पराली ऊर्जा का अच्छा स्त्रोत है परन्तु इसमें प्रोटीन की मात्रा कम (2-7%) ही होती है।
4. पराली में आक्जेलेट्स की मात्रा (1-2) अधिक होती है जो शरीर में कैल्शियम की मात्रा को कम कर देते हैं।
5. पराली में फास्फोरस, कॉपर, जिंक, कैल्शियम एवं सोडियम जैसे खनिज-तत्त्व कम मात्रा में होते हैं।
6. पराली में अन्य सूखे चारे की अपेक्ष कम पोषक तत्त्व होते हैं। अत: इसे सम्पूर्ण आहार के रूप में पशुओं को नहीं खिलाया जा सकता है।
7. पराली में निष्पक्ष रूप से घुलनशील रेशों (N.D.F. - Neutral Detergent Fiber) की अत्याधिक मात्रा होने के कारण शुष्क पदार्थ अर्न्तग्रहण (Dry matter intake) जिस कारण पशु द्वारा दुग्ध उत्पादन भी कम होता है तथा दूध कम वसा वाला होता है।
ऊपर वर्णित चुनौतियां होने के बावजूद भी पराली को कुट्टी काटकर या बारीक करके यदि पशुओं का खिलाया जाता है तो इसकी पाचकता बढ़ जाती है जिससे निम्नलिखित लाभ होते हैं:
1. पशु अधिक मात्रा में चारा खाता है।
2. पशु के मुँह में पाचक रस ज्यादा मात्रा में निकलते हैं।
3. पशु के पेट में चिकनाई करने वाले वाष्पशील एसीड अधिक मात्रा में उत्पन्न होते हैं।
4. पशु 20-25% तक पराली को भी खा जाता है।
उपचारित पराली
सामान्य पराली में पचने योग्य कच्चे प्रोटीन (Digestible crude protein) लगभग 4% व ऊर्जा (Energy) 40% ही उपलब्ध होती है, इसके विपरीत उपचारित चारे में यह मात्रा क्रमश: 4 व 56% तक हो जाती है। बीते वर्षों में धान की पराली पर हुए वैज्ञानिक शोधों से पता चलता है कि विभिन्न प्रकार से उपचारित करके इसकी स्वादिष्टता (Palatability) एवं पौष्टिकता (Nutritive value) बढ़ायी जा सकती है। औसतन 1 किलोग्राम प्रति 100 किलोग्राम पशु भार तक ही बिना उपचारित पराली पशु खाता है। बिना उपचारित पराली में पौष्टिक तत्त्व बहुत कम मात्रा में पशु को उपलब्ध हो पाते हैं। इसलिए इसकी पौष्टिकता को बढ़ाने के लिए कई प्रकार से उपचारित किया जा सकता है। पराली को उपचारित करने के लिए ज्यादातर क्षारीय रासायनों का ही उपयोग किया गया है। इस क्षारीय रासायनों से पराली में उपलब्ध अघलनशील शर्करा तत्त्व जैसे कि लिग्निन, हेमीसेल्यूलोज, सेल्यूलोज इत्यादि को घुलनशील शर्करा में बदल देते हैं ताकि पशु के रूमेन मौजूद सूक्ष्म जीव इन शर्करा तत्त्वों को आसानी से तोड़ सकते हैं जिससे पराली में स्वादिष्टता बढ़ती है और पशु ज्यादा मात्रा में इसका सेवन करते हैं। यूरीया, सोडियम हाइड्रोक्साइड एवं अमोनिया सबसे ज्यादा उपयोग होने वाले क्षारीय तत्त्व हैं जिनको पराली के उपचार के लिए उपयोग किया जाता है। इन क्षारीय तत्त्वों के अलावा पानी, गुड़ या शीरा, खनिज लवण, बुझा बिना बुझा हुआ चूना व नमक का उपयोग भी पराली को उपचारित करने में किया जाता है। इनके अतिरिक्त पराली की पौष्टिकता बढ़ानें के लिए कवकों (Fungi) और एंजाइमों (Enzymes) का उपयोग भी किया सकता है। गुणकारी मूत्र में यूरीया होता है। अत: मूत्र को भी यूरीया और अमोनिया स्त्रोत के रूप में उपयोग किया जा सकता है। पराली की कुट्टी के ऊपर मूत्र का छिड़काव किया जा सकता है।
यूरीया, गुड़ (शीरा) एवं खनिज लवण मिश्रित पराली
इसके लिए 100 किलोग्राम कुट्टी बनाई हुई पराली में 2 किलोग्राम यूरीया, 10 किलोग्राम गुड़ या शीरा, 1 किलोग्राम नमक, 2 किलोग्राम खनिज लवण और 15-20 लीटर पानी को अच्छी प्रकार मिश्रित किया जाता है। पानी को थोड़ा-थोड़ा करके इस चारे के ऊपर आवश्यकतानुसार छिड़काव करना चाहिए। अच्छी तरह से मिश्रित चारा गाय व भैंस को 8-10 किलोग्राम, भेड़ व बकरी को 0.5 किलोग्राम व ऊँट को 10-15 किलोग्राम प्रति पशु प्रति दिन के हिसाब से खिलाया जा सकता है। यह चारा खिलाने के साथ-साथ पशुओं को विटामीन प्रीमिक्स व हरा चारा भी देना चाहिए।
विशेष: यूरीया उपचारित चारा पशुओं के लिए घातक हो सकता है। कृप्या वैज्ञानिकों की देखरेख में इसका उपयोग करें।
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