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पौधों का प्राकृतिक खाद्य चक्र, Nutrient Cycle in Plants
प्रकृति का पोषणशास्त्र; मृदा और इसका निर्माण; भूमि का गिरता स्वास्थ्य; भूमि अन्नपूर्णा है; खाद्य चक्र; केशाकर्षक शक्ति; चक्रवात; केंचुए - किसान के हलधर; सूक्ष्म पर्यावरण; जैविक व अजैविक घटक एवं पर्यायवरण के मध्य अन्त:क्रिया
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पृथ्वी का वायुमण्डल बहुत से यौगिकों से बना है जिनमें पाँच प्रकार की गैसों नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, जल वाष्प, कार्बन और कार्बन डाइऑक्साइड मुख्य हैं। दी गई तालिका के अनुसार वायु में 5% जल वाष्प के रूप में अधिक हो सकता है, जो सामान्यत: 1-3 प्रतिशत होता है (Helmenstine 2017)। 15° सेल्सियस पर समुद्र के स्तर पर, वायु के निम्लिखित घटक इस प्रकार हैं (Lide 1997, Helmenstine 2017)।
तत्त्व |
प्रतिकात्मक चिन्ह |
प्रतिशत |
नाइट्रोजन |
N2 |
78.084% |
ऑक्सीजन |
O2 |
20.9476% |
आरगॉन |
Ar |
0.934% |
कार्बन डाइऑक्साइड |
CO2 |
0.0314% |
नियॉन |
Ne |
0.001818% |
मीथेन |
CH4 |
0.0002% |
हीलियम |
He |
0.000524% |
क्रिप्टॉन |
Kr |
0.000114% |
हाइड्रोजन |
H2 |
0.00005% |
जिनॉन |
Xe |
0.0000087% |
ओज़ोन |
O3 |
0.000007% |
नाइट्रोजन डाइऑक्साइड |
NO2 |
0.000002% |
आयोडिन |
I2 |
0.000001% |
कार्बन मोनोऑक्साइड |
CO |
अंश मात्र (Traces) |
अमोनिया |
NH3 |
अंश मात्र (Traces) |
जड़ें भूमि से जितने भी पोषक खाद्य तत्त्व प्राप्त करती हैं, वह पौधों के शरीर में संग्रहित होते हैं। पेड़-पौधों की आयु समाप्ति के बाद वर्षा ऋतु में उनके शरीर का विघटन होता है और शरीर में संग्रहित पोषक तत्त्व जड़ों को मिल जाते हैं। भूमि की जितनी ज्यादा उर्वरा शक्ति होगी, उतनी ही ज्यादा भूमि उपजाऊ होती है। इसलिए यदि भूमि की ऊपज बढ़ानी है तो इसकी उर्वरा शक्ति बढ़ानी होगी। भूमि की उर्वरा बढ़ाने का कार्य भूमि की सतह के 4.5 ईंच क्षेत्र में एक जैव-रासायनिक पदार्थ करता है, जिसको ह्यूमस (जीवन द्रव्य) कहते हैं। ह्यूमस का अर्थ है उर्वरा शक्ति। ह्यूमस का निर्माण फसलों के अवशेषों के विघटन के उपरान्त होता है। ये विघटन करने वाले अनन्त कोटि सूक्ष्म जीवाणु होते हैं। देशी गाय का गोबर इन जीवाणुओं का बहुत ही अच्छा जामण/जोरण (जीवाणु समूह - culture) है। इसका मतलब है कि यदि हमें ह्यूमस का निर्माण करना है तो फसलों के दो कतारों के बीच आच्छादन/बिछावन बनाना होगा।
ह्यूमस का शरीर अनेक पोषक तत्वों द्वारा निर्मित होता है, लेकिन उनमें से दो तत्व प्रमुख होते हैं।
1. जैविक कार्बन (कर्बाम्लवायु – Carbon dioxide)
2. जैविक नाइट्रोजन (नत्र - Nitrogen)
1. जैविक कार्बन: किसी भी पेड़-पौधे के हरे पत्ते दिन में खाना बनाने का कार्य करते हैं, जिसे प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) क्रिया कहते हैं। इस क्रिया के दौरान हरे पत्ते हवा से जो कार्बन लेते हैं (Berry and Downton 1982) उसे जैविक कार्बन कहते हैं। हवा में जैविक कार्बन की मात्रा 280-300 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (280-300 ppm) होती है। कोयला जैविक कार्बन नहीं है। हवा से लिया हुआ कार्बन ही जैविक कार्बन है।
2. जैविक नाईट्रोजन: वायु में 78.08% नाइट्रोजन है, इसका अर्थ है कि वायु नाइट्रोजन का महासागर है। वायु में से नाइट्रोजन जड़ों को उपलब्द्ध कराने में कुछ जीवाणु सहायक होते हैं, जिनको नत्रजन-स्थिरीकरण जीवाणु (Nitrogen fixation bacteria) कहते हैं। ये जीवाणु हवा से नाईट्रोजन लेकर जड़ों को उपलब्ध करवाते हैं। इसे ही नाइट्रोजन कहते हैं।
भूमि में जैविक कार्बन और जैविक नाइट्रोजन का अनुपात कार्बनिक पदार्थों के विघटन की मात्रा और गुणवत्ता का अच्छा संकेतक है। भिन्न-भिन्न परिवेश में भूमि में जैविक कार्बन और जैविक नाइट्रोजन का अनुपात 9.9 से 29.8 तक होता है (Batjes 1996)। सबसे ज्यादा जैविक कार्बन भूमि की ऊपरी सतह में होता है, जो भूमि की नीचे की परतों में कम होता जाता है।
ह्यूमस (Humus) का निर्माण भूमि की ऊपरी सतह में होता है, जिसमें 60% जैविक कार्बन एवं 6% जैविक नाइट्रोजन होता है। इसका अर्थ है कि जैविक कार्बन एवं जैविक नाइट्रोजन 10:1 (Carbon: Nitrogen Ratio = C : N Ratio) के अनुपात में वायु में मौजूद होते हैं। इसका अर्थ है कि ह्यूमस को 1.0 किलो नाइट्रोजन निर्माण के लिए 10 किलोग्राम कार्बन चाहिए। गन्ने के सूखे पत्ते, धान की पराली, गेहूँ का भूसा या सूखी हुई घास में कार्बन 80% है जबकि नाइट्रोजन 1% होता है। यदि इनका आच्छादन/बिछावन करेंगे तो इनका बिछावन विघटित होने के बाद 80 किलोग्राम कार्बन मुक्त करेगा लेकिन नाइट्रोजन केवल 1 किलोग्राम मुक्त होगा। प्रति 1 किलोग्राम नाइट्रोजन 10 किलोग्राम कार्बन को ह्यूमस निर्माण के लिए उपयोग करता है, बचे हुए 70 किलोग्राम कार्बन के लिए 7 किलोग्राम नाइट्रोजन की आवश्यकता फिर भी रहती है। बचे हुए कार्बन के लिए समय पर नाइट्रोजन उपलब्ध नहीं होने के कारण सम्पूर्ण कार्बन वायुमण्डल में जाकर प्रदूषण फैलाता है। इस बचे हुए कार्बन के लिए आवश्यक नाइट्रोजन की पूर्ति को दलहनी फसलों से पूरा किया जा सकता है। अत: मुख्य फसल के साथ अन्त:वर्ती/सह-फसल के रूप में दलहनी फसलें जैसे कि सहजन, अरहर, लोबिया, मूँग, उड़द, कुल्थी, चना, मटर, मसूर (दलहन की फसलें) इत्यादि होना चाहिए।