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भारत में चक्रवात एवं वर्षा, Cyclones and Rains in India

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प्रकृति का पोषणशास्त्रमृदा और इसका निर्माणभूमि का गिरता स्वास्थ्यभूमि अन्नपूर्णा हैखाद्य चक्र; केशाकर्षक शक्तिचक्रवात; केंचुए - किसान के हलधरसूक्ष्म पर्यावरणजैविक व अजैविक घटक एवं पर्यायवरण के मध्य अन्त:क्रिया

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भारतवर्ष में वातावरण बहुत उतार-चढ़ाव वाला रहता है। हर मौसम में देश का किसान वर्षा की राह देखता है कि कब वर्षा होगी और खेत में लगे पौधे बढ़ेंगे। कई बार वर्षा न होने से खेत-खलिहान सूख जाते हैं तो कई बार अत्याधिक वर्षा के कारण फसल जल-मगन हो जाती है। इन सभी हालातों में किसान का ही सबसे ज्यादा नुकसान होता है। भारत में अच्छी पैदावार होना, समय पर वर्षा होने पर निर्भर करता है। भारत में वर्षा का होना चक्रवात पर निर्भर करता है।

कर्क और मकर उष्णकटिबंधीय रेखाओं के बीच में उत्पन्न होने वाले चक्रवातों को उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के रूप में जाना जाता है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन द्वारा अपनाए गये मानदंडों के अनुसार, भारत मौसम विज्ञान विभाग बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में कम दबाव वाली प्रणालियों के अन्तर्गत चक्रवातों को सात वर्गों में वर्गीकृत करता है। कम दबाव वाले क्षेत्र जिनमें 31 से 61 कि.मी. प्रति घण्टा की गति से निरंतर हवा चलती है, को उष्णकटिबंधीय दबाव (Tropical depressions) कहा जाता है। जब हवाएं 62 कि.मी. प्रति घण्टा की गति से चलने लगती हैं तो उसे उष्णकटिबंधीय चक्रवात (Tropical cyclone) कहते हैं और उसको एक नाम दिया जाता है। जब हवाएं इन क्षेत्रों में 89 से 118 कि.मी प्रति घटा की गति से चलती हैं तो इसको गंभीर चक्रवाती तूफान (Severe cyclonic storm) कहा जाता है। 119 से 221 कि.मी. प्रति घटा की गति से चलने हवाओं को अधिक गंभीर चक्रवाती तूफान (Very severe cyclonic storm) कहते हैं। 221 कि.मी प्रति घटा की गति से भी अधिक चलने वाली हवाओं को से अत्याधिक चक्रवाती तूफान (Super cyclonic storm) कहा जाता है (IMD 2017)।

यदि बंगाल की खाड़ी में वर्षाकाल में चक्रवात का निर्माण नहीं होता तो शायद हमें पीने के लिए एवं सिंचाई के लिए पानी नहीं मिलता। यह चक्रवात जब उडीसा का किनारा लांघकर कर छत्तीसगढ़ होते हुए विदर्भ, मध्य प्रदेश, उत्तर-भारत में पहुँचता है, तब उत्तर-भारत में बारिश होती है, लेकिन उस समय दक्षिण-भारत में बारिश नहीं होती। जब चक्रवात आन्ध्र प्रदेश को पार करके आता है तो दक्षिण-भारत में बारिश होती है, उस समय उत्तर-भारत में बारिश नहीं होती।

मानसून जब कृतिका नक्षत्र (मई) में हिन्द महासागर में प्रवेश करता है तो हिन्द महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से पानी वाष्प के रूप में उठता है, जिससे बादल बनते हैं। यही बादल जब हमारे क्षेत्र में आते हैं तो बारिश होती है। मई महीने के अन्त में मानसून के प्रवेश काल के समय बंगाल की खाड़ी में कम दबाव के क्षेत्र का निर्माण होता है, उसी समय मध्य-भारत (छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थन) में भी कम दबाव के क्षेत्र का निर्माण होता है। इसके प्रभाव से मई के अन्त में या जून के शुरूआत में अचानक बादल एक-दूसरे से टकराते हैं, जिससे बिजली चमकती/कड़कड़ाती है, जिससे बहुत तेज गति से आवाज आती है और फिर बारिश शुरू होती है। बिजली चमकने/कड़कड़ाने के कारण बारिश की बूंदों से हवा में नाइट्रोजन घुल जाती है। ये सूक्ष्म बूंदें धूल-कणों के इर्द-गिर्द इक्कट्ठा होती हैं और बारिश के रूप में भूमि पर गिरती है तो अपने साथ नाइट्रोजन भी लाती है और ऊपर उड़ते हुए धूल कणों के रूप में फॉस्फोरस, पोटाशियम और अन्य पोषक तत्व भी लाती है। जिनका लाभ पेड़-पौधों व फसलों को मिलता है। इस प्रकार कुल आवश्यकता का 15% नाइट्रोजन पौधों/फसलों को चक्रवात के कारण मिल जाता है। साथ ही यह चक्रवात पेड़-पौधों व फसलों की परीक्षा भी लेता है। प्रकृति का कानून है, बलवान को जीने का अधिकार है, दुर्बलों को नहीं। क्योंकि अगर दुर्बल पेड़-पौधे या फसल पनपेंगे तो उनकी आगे की नस्ल और भी दुर्बल होगी और सम्भव है कि उनका वंश ही समाप्त हो जाए। लेकिन बलवान की अगली पीढ़ी भी बलवान ही बनती है, जिससे वंश चलता रहता है।

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