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हानिकारक बनाम लाभदायक खेती – जहरीला होता दूध, Poisonous Milk

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दूध दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले खाद्यान्नों में एक है। अमीर-गरीब के हर घर में दूध या इससे बने उत्पादों का उपयोग सदियों से होता आया है। सदियों से बहुतायत में उपयोग होने के कारण हरियाणा राज्य के बारे में एक कहावत प्रचलित है:

देशां में देश हरियाणा।

जित दूध-दही का खाणा।।

सदियों से कही जाने वाली यह कहावत हरियाणा राज्य में दूध, दही, घी व दूध से बनने वाले उत्पादों का बहुतायत में उपयोग होता आया है। आज भी दूध, दही व घी, हरियाणा राज्य की आबादी का अभिन्न भोज्य पदार्थ है। बिना देशी घी से चुपड़ी रोटी न तो खायी जाती है और न ही इसके बिना मेहमानवाजी पूरी होती है।

दूध के सही दाम न मिलने के कारण पशुओं की संख्या लगातार कम होती जा रही है जिससे बढ़ते दूध की माँग को पूरा करना बहुत मुश्किल हो रहा है। इस माँग को पूरा करने के लिए अब बाजार में रासायनों से बना नकली दूध आने लगा है जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक होता है।

कृषि में उपयोग किये जाने वाले रासायन जैसे कि कीटनाशक, जीवाणुनाशक, फफूंदनाशक व अन्य रासायन हमेशा ही विवादित रहे हैं। ऐसे बहुत से शोधकार्य समय-समय पर प्रकाशित होते रहे हैं जो लगातार इन रासायनों के कुप्रभाव के बारे में सचेत करते रहे हैं। लेकिन इन शोधों को हमेशा ही नजर-अन्दाज किया गया है और ये रासायन दुग्ध सेवन के माध्यम से हमारी भोजन श्रृंखला में प्रवेश कर चुके हैं। दूषित होती भोजन श्रृंखला से मानवीय शरीर लगातार रूग्ण होता जा रहा है।

सदियों से कहा जाता रहा है कि नवजात के लिए उसकी माँ का दूध सबसे ज्यादा सेहतमन्द होता है। इससे बच्चे का समुचित विकास होता है, लेकिन शोधों से चौकाने वाले तथ्य लगातार सामने आते रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार तयशुदा मात्रा से 100 गुणा अधिक कीटनाशक होने की बात सामने आई है (Faroon et al. 2003)।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के संक्षिप्त अंतरराष्ट्रीय रासायनिक आकलन दस्तावेज़ के अनुसार, पोलीक्लोरीनयुक्त बाइफेनाइल्ज खाद्य-श्रृंखला में संचित होते हैं। ये गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रेक्ट (Gastrointestinal tract) से तेजी से अवशोषित हो जाते हैं जो यकृत एवं वसा ऊतकों में एकत्रित होते हैं। ये कीटनाशक प्लेसेंटा (Placenta) को भी पार कर जाते हैं व दूध में भी उत्सर्जित होते हैं और इस प्रकार ये भ्रूण या शिशु में संचित होते हैं (Faroon et al. 2003)। इस प्रकार देखा जाए तो बच्चे बाहर तो क्या कवच रूपी माँ के गर्भ में भी सुरक्षित नहीं हैं।

माँ के दूध में प्रवेश होने के साथ-साथ हमारे पशु भी इससे अछूते नहीं हैं। चारे के माध्यम से ये जहर रूपी रासायन पशुओं में प्रवेश कर रहे हैं जो दूध के माध्यम से मानवीय खाद्य श्रृंखला में पहुंचकर हमें बीमार कर रहे हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पंजाब में लुधियाना जिला, जिसने हरित क्रान्ति के प्रचार-प्रसार में अग्रणी स्थान के कारण नाम अर्जित किया है, वहाँ महिलाओं का दूध विश्वभर में सबसे ज्यादा रासायनयुक्त है (धर्मबीर यादव एवं जयनारायण भाटिया, 2003)।

कुछ शोधपत्र जो दर्शाते हैं कि दूध भी प्रदूषित हो चुका है।

1980 में प्रकाशित शोधपत्र में 75 स्तनपान कराने वाली माताओं के दूध में डी.डी.टी. (Dichlorodiphenyltrichloroethane) व बी.एच.सी. (benzenehexachloride) की उपस्थिति पाई गयी थी (Kalra and Chawla 1980)।

1990 में छपे के शोधपत्र के अनुसार तमिलनाडु (भारत) से एकत्रित किये गये स्तनपान कराने वाली माताओं के दूध में ऑर्गेनोक्लोराइड नामक कीटनाशक पाया गया (Tanabe et al., 1990)। इस शोध में पाया कि विकसित देशों के विपरीत, डी.डी.टी. यौगिकों की तुलना में एच.सी.एच. समावयवों (H.C.H. isomers) की सान्द्रता ने शरीर में अपनी प्राथमिक संचय की ओर एक बदलाव दर्शाया, जो पहले के वर्षों में एच.सी.एच. समावयवों की तुलना में उच्च स्तर था।

इसी प्रकार 2017 में प्रकाशित शोधपत्र 95 नर्सिंग शिशुओं में से 48 में कीटनाशकों (डाइक्लोरो-डाइफेनाईल-ट्राक्लोरोइथेन – D.D.T., डाइएल्डेरिन और नॉनडाइऑक्सीन-जैसी पॉलिक्लोरीनयुक्त बाईफेनाईल) के अनुमत स्तरों से अधिक की सूचना दी गई (Müller et al. 2017)। इसी प्रकार सन 2017 में पानीपत से छपे समाचार पत्र ने लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशुविज्ञान विश्वविद्यालय, हिसार में हुये शोध को प्रकाशित किया जिसमें 104 में से 84 दूध के नमूनों में ट्राइजोफॉस, मोनाक्रोटोफॉस, इडिफनफॉसक्लोरपायरीफॉस, प्राइमिफॉस मिथाइल, मेलाथियॉन, फैनट्रोथियान, डाइक्लोरवॉस एचं क्यूनलफॉस आदि कीटनाशक होने की पुष्टि की है।

केवल इतने ही शोधपत्र नहीं हैं जो यह बताते हैं कि माँ का दूध प्रदूषित हो गया है, अनेकों शोधपत्र आपका ध्यान आकर्षित करते हुए आपको मिल जाएगें जिनको पढ़ने से आप ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। अर्थात किसान को यह सब जानने के लिए पढ़ना व पढ़ाना होगा तभी उसके साथ-साथ देश उन्नति की राह पर आगे बढ़ेगा।

यह हम सभी को विद्धित है कि हमारी आहार श्रृंखला कृषि जन्य उत्पादों पर निर्भर करती है। अब सवाल यह पैदा होता है कि मानव रोगी न हो तो क्या वह दूध का सेवन बन्द कर दे या ऐसे कृषि उत्पादों का उपभोग करे जो जहर मुक्त हों। इस समय हम रासायानकि खेती पर ही आश्रित हैं और वैज्ञानिक व सरकार जैविक खेती के अपनाने पर जोर दे रहे हैं। इनके अतिरिक्त एक अन्य सदियों से प्रचलित प्राकृतिक खेती भी दोबारा से ऊबरकर सामने आ रही है जिसको यह कहा जा सकता है कि पद्धति तो पुरानी है लेकिन इसके आयाम नये हैं। तो इस समय किसान इनमें कौन सी पद्धति अपनाए जो उसके व देशवासियों के हित में हो इसका आंकलन कर लेना चाहिए। एक जहर को छोड़कर दूसरे जहर की ओर अग्रसर होने से पहले इन पद्धतियों को जान लेना आवश्यक हो जाता है कि हमें जहर-युक्त दूध चाहिए या जहर-मुक्त।

रासायानिक खेती: आज रासायानिक खेती परम्परागत खेती का पर्यायवाची बन चुकी है। यह खेती रासायनों के बिना सम्भव ही नहीं है। अत: सब कुछ जानते हुए भी यदि इस पद्धति को जारी रखा जाता है तो किसान के साथ-साथ हर प्राणीमात्र की सेहत व जिन्दगी के साथ खिलवाड़ होगा। अत: इस जहर-युक्त रासायानिक खेती का विकल्प अवश्य ही होना चाहिए।

जैविक खेती: वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि जैविक खेती मंहगी होने के साथ-साथ (Mäder et al. 2002, Ponisio et al. 2015, Reganold and Wachter 2016), बिल्कुल जहर-मुक्त भी नहीं है (Brandt and Molgaard 2001)। अत: कहा जा सकता है कि ‘सिर मुंडाते ही ओले पड़ना’ अर्थात एक तो मंहगी होने के कारण आम जनता इसके उत्पाद खर्च को वहन नहीं कर सकती है दूसरे रासायानिक खेती की तरह यह भी स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है।

जीरो बजट प्राकृतिक खेती: जीरो बजट प्राकृतिक खेती में किसी भी प्रकार के जहरीले पदार्थ या रासायन का उपयोग नहीं किया जाता है, इसलिए खाद्य-पदार्थों में जहरीले अवशेषों का सवाल ही पैदा नहीं होता है। अत: कहा जा सकता है कि जीरो बजट प्राकृतिक खेती प्राणी जगत के स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छी है।

साभार: डा. जगवीर रावत, (सह-प्राध्यापक - पशु चिकित्सा माइक्रोबायोलॉजी विभाग, लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, हिसार - 125004, हरियाणा, भारत) के मार्गदर्शन के लिए लेखक आभारी हैं।

डा. जे.एन. भाटिया, प्रधान कृषि वैज्ञानिक, चौ.च.सिं. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार का लेखन शोधन एवं संशोधन के लिए लेखक आभारी हैं।

References

Brandt K. and Molgaard J.P., 2001, “Organic agriculture: does it enhance or reduce the nutritional value of plant foods?,” Journal of the Science of Food and Agriculture; 81(9): 924-931.[Web Reference]

Faroon O.M., et al., 2003, “Polychlorinated biphenyls: human health aspects,” World Health Organization, Geneva. [Web Reference]

Kalra R.L. and Chawla R.P., 1980, “Occurrence of DDT and BHC residues in human milk in India,” Experientia 37: 404-405. [Web Reference]

Mäder P., et al., 2002, “Soil fertility and biodiversity in organic farming,” Science; 296(5573): 1694-1697. [Web Reference]

Mishra K.K., 2008, “Determination of genotoxic and systemic effects of pesticide combination In vitro and in vivo screening of endosulfan,” Ph.D. Thesis Submitted to THE MAHARAJA SAYAJIRAO UNIVERSITY OF BARODA, VADODARA - 390 002, INDIA. [Web Reference]

Müller M.H.B., et al., 2017, “Organochlorine pesticides (OCPs) and polychlorinated biphenyls (PCBs) in human breast milk and associated health risks to nursing infants in Northern Tanzania,” Environmental research; 154: 425-434. [Web Reference]

Ponisio L.C., et al., 2014, “Diversification practices reduce organic to conventional yield gap,” Proceedings of the Royal Society B; 282(1799). [Web Reference]

Reganold J.P. and Wachter J.M., 2016, “Organic agriculture in the twenty-first century,” Nature Plants; 2: 1-18. [Web Reference]

Tanabe S., et al., 1990, “Specific pattern of persistent organochlorine residues in human breast milk from South India,” Journal of Agricultural and Food Chemistry; 38(3): 899-903. [Web Reference]

‌‌‌भास्कर, 2017, “7 जिलों से लिए दूध के 104 में से 84 सैंपल फेल, मिला कीटनाशक,” हरियाणा, दैनिक भास्कर, पानीपत, गुरूवार 11 मई 2017, पेज सं. 2. [Web Reference]

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