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जीरो बजट प्राकृतिक खेती के पोषक सूत्र - नाइट्रोजन, Nitrogen
आमतौर पर नाइट्रोजन को पौधे के विकास में प्रमुख सीमित पोषक तत्वों में से एक माना जाता है (Franche et al., 2009)। लेकिन प्रयोगशालाओं में हुए शोधों में पाया गया कि जंगल के पेड़-पौधों के पत्तों में नाइट्रोजन की कमी नहीं मिलती है। किसी मनुष्य द्वारा उनको नाइट्रोजन नहीं दिया गया। इसका अर्थ है कि पेड़-पौधों को नाइट्रोजन प्रकृति से मिल जाता है। हवा में 78.6% नाइट्रोजन होता है, अर्थात हवा नाइट्रोजन का महासागर है। हवा से कोई पत्ता सीधे नाइट्रोजन नहीं ले सकता है।
पौधे की जड़ों के निकटतम भूमि/मिट्टी (जिसमें स्थिरीकरण जीवाणु होते हैं) को राईजास्फीयर (Rhizosphere) कहते हैं। आणविक नाट्रोजन को अमोनिया में परिवर्तन करने में सहायक जैविक प्रक्रिया को नाइट्रोजन स्थिरीकरण के रूप में जाना जाता है (Franche et al., 2009)। नत्राणु अर्थात् ‘नाइट्रोजन-स्थिरीकरण जीवाणु’ (Nitrogen Fixing Bacteria) जड़ों के माध्यम से पेड़-पौधों को नाइट्रोजन उपलब्द्ध कराते हैं। ये नत्राणु दो प्रकार के हैं: 1. सहजीवी व 2. असहजीवी
1. सहजीवी नत्राणु (Symbiotic Nitrogen Fixing Bacteria): ये नत्राणु पौधे की जड़ों से शर्करा के रूप में ऊर्जा लेते हैं और बदले में पौधे को नाइट्रोजन प्रदान करते हैं। इसीलिए इनको सहजीवी नत्राणु कहा जाता है। ये सहजीवी नत्राणु (जैसे कि राइजोबियम कीटाणु, माइकोरायजा फंफूद, नील हरित शैवाल) हवा से नाइट्रोजन लेकर पौधे की आवश्यकतानुसार जड़ों के माध्यम से उपलब्द्ध करवाते हैं और बदले में पौधों से ऊर्जा प्राप्त करते हैं।
ये जीवाणु द्वि-बीजपत्री-फलीदार दलहनी फसलों की जड़ों की गाँठों में निवास करते हैं। इसलिए भूमि में नाइट्रोजन की उपलब्द्धता बढ़ाने के लिए दलहनी फसलों का उगाया जाना अनिवार्य है। ये सहजीवी नत्राणु प्रयोगशालाओं में नहीं बनाए जा सकते हैं, क्योंकि प्रयोगशाला में सिर्फ कोशिका विभाजन सम्भव है, निर्माण नहीं। लेकिन, देशी गाय की आंत में इन जीवाणुओं का निर्माण होता है।
2. स्वतन्त्रजीवी नत्राणु /असहजीवी (Free living nitrogen fixing bacteria): इनकी प्रकृति असहजीवी होती है। इसीलिए इनको ‘असहजीवी नत्राणु’ भी कहते हैं। ये जीवाणु बिना नत्राणु ग्रन्थियों वाले पौधों की जड़ों के पास निवास करते हैं। इन पौधों में घास वर्गीय के एकबीजपत्री पौधे जैसे कि धान, गेहूँ, मक्का, ज्वार, बाजरा, रागी और द्विबीजपत्री पौधे जैसे कि सरसों, तिल, कपास, अलसी, सूरजमूखी, अरन्ड इत्यादि शामिल हैं।
सभी स्वतन्त्रजीवी/असहजीवी नत्राणु नाइट्रोजन स्थिरीकरण का कार्य करते हैं। ये कम वायुवीय परिस्थितियों में तथा हाइड्रोजन की अधिकता में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करते हैं। एजोटोबैक्टर जब किसी फसल में सम्वर्धित किया जाता है तो इसकी उपस्थिती उत्पादन में वृद्धि होने के साथ-साथ यह नाइट्रोजन की आपूर्ति को 4-10 किलोग्राम प्रति एकड़ कम कर देता है। ये नत्राणु तीन प्रकार के होते हैं:
वायुवीय जीवाणु: एजोटोबैक्टर (Azotobacter) एवं बीजेरिन्किया (Beijerinkia)।
अवायुवीय जीवाणु: क्लोस्ट्रीडियम (Clostridium)।
प्रकाशसंशलेशी: रोडोस्पाइरिलम (Rhodospirilium) एवं क्रोमटियम (Chromatium)।
ये स्वतन्त्रजीवी नत्राणु जड़ों के माध्यम से सन्देश प्राप्त करते ही हवा से नाइट्रोजन लेकर जड़ों को दे देते हैं। ये नत्राणु भी प्रयोगशालाओं में तैयार नही किये जाते हैं, इनका निर्माण भी देशी गाय के आंत में ही होता है। देशी गाय के गोबर से जीवामृत/घन-जीवामृत बनाकर जब कृषि भूमि में डाला जाता है तो ये नत्राणु भूमि में प्रवेश करते ही अपना कार्य शुरू कर देते हैं।
सहजीवी एवं स्वतन्त्रजीवी नत्राणु तभी सक्रिय होते हैं, जब ये साथ-साथ होते हैं। अत: इन नत्राणुओं से सही लाभ लेने के लिए एकबीजपत्रीय एवं द्विबीजपत्रीय फसलों में एक मुख्य फसल एवं एक सह-फसल को उगाना चाहिए। धान की फसल में जब पानी भरा जाता है तो ऐसी अवस्था में स्वतन्त्रजीवी नत्राणु कार्य नहीं करते हैं। ऐसे में यह कार्य सहजीवात्मक ‘ग्लोमस फंफूदों’ (Glomus sp. – the fungi) के द्वारा किया जाता है। ग्लोमस फंफूद पानी में पौधों की जड़ों के साथ सहजीवी (Symbiotic) कार्य करते हैं। लेकिन जब बीज-बुआई पद्धति से वर्षा आधारित धान की खेती करते हैं तो ऐसे में दलहन की सह-फसल लगाना आवश्यक है।
प्रति एकड़ नाट्रोजन की उपलब्द्धता (किलोग्राम / एकड़/प्रति वर्ष)
नाइट्रोजन स्थिरीकरण दर |
Reference |
|
राइजोबियम (Rhizobium) |
40-120 |
Nghia and Gyurján 1987 |
एजॉटोबैकट्र (Azotobacter) |
8-16 |
Jnawali, Ojha and Marahatta 2015 |
एजोस्पिरिलम (Azospirillum) |
8-16 |
El-Lattief 2016 |
एसीटोबैक्ट्र डायजोट्रोफीकस (Acetobacter diazotrophicus) हर्बास्पिरिलम (Herbaspirillum) |
80 |
Boddey et al., 2001 Lima, Boddey and Döbereiner 1987 |
एजॉला एनाबाएना (Azolla anabaena) |
20 |
|
फ्रांकिया (Frankia) |
11-60 |
Bothe, Yates and Cannon 1983 |
क्लॉस्ट्रीडियम पास्चुरीनम (Clostridium pasteurianum) |
10.5-26 |
सुभाष पालेकर |
एक्रोमोबैक्ट्र (Achromobacter) |
13 |
Troeh and Thompson 2005 |
सूडोमोनास (Pseudomonas), एरोबैक्ट्र (Aerobacter), रेडियोबैक्ट्र (Radiobacter) |
7.2- 18 |
Troeh and Thompson 2005 |
बायोजेरिंकिया जीवाणु |
42 |
सुभाष पालेकर |
एक्टीनोमायसीटीज जीवाणु |
26 |
सुभाष पालेकर |
असहजीवी जीवाणु |
34 |
सुभाष पालेकर |
हरी खाद (Green manuring) |
80-120 |
National Research Council 1979 Peoples, Herridge and Ladha 1995 |
नीली हरी शैवाल (Blue green algae) |
4-40 |
Troeh and Thompson 2005 |
मुक्त जीवित बैक्टीरिया (Free living bacteria) |
4.4 |
Troeh and Thompson 2005 |
दालों के साथ अन्तरवर्तीय फसलें (Intercrop with pulses) |
7.2-50 |
Gan et al. 2015, सुभाष पालेकर |
दलहनी फसलों के अवशिष्ट प्रभाव (Residual effect of pulses crops) |
12-41 |
Gan et al. 2015, सुभाष पालेकर |
खेत की मेढ़ पर स्थित पेड़-पौधे, घास और फसलीय खरपतवार के विघटन से |
75 |
सुभाष पालेकर |
विघटित केंचुए (By decomposed Earthworm) |
18.4-91 |
Sinha et al. 2010, सुभाष पालेकर |
केंचुओं का मलमूत्र (By excreata of Earthworm) |
40-126 |
Whalen et al. 1999 |
वर्षापूर्व बिजली चमकने, वर्षा के पानी से व अतिनील किरणों से |
34 |
सुभाष पालेकर |
केशाकर्षण शक्ति द्वारा पानी में घुला नाइट्रोजन |
18 |
सुभाष पालेकर |
कुल उपलब्द्धता |
1070.4 |
किलोग्राम प्रति वर्ष |