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हाईपोथायरायडिज्म में लापरवाही न बरतें
Hypothyroidism
थायरायड ग्रन्थि गर्दन में सांस नली के ऊपर और स्वर यंत्र के नीचे, तितली के आकार की एक एण्डसेक्राईन ग्रन्थि है। यह ग्रन्थि टी-3 व टी-4 नामक हॉरमोन बनाती है, जो शरीर में मेटाबोलिज्म को नियन्त्रित करते हैं। यह ग्रन्थि शारीरिक तापमान, दिल की धड़कन व पाचन क्रिया आदि क्रियाओं को नियन्त्रित करती है। थायरायड ग्रन्थि की क्रियाओं को पिटूटरी ग्रन्थि नियन्त्रित करती है। पिटूटरी ग्रन्थि थायरायड स्टीम्यूलेटींग हॉरमोन बनाती है, जिसके कारण थायरायड ग्रन्थि से टी-3 व टी-4 हॉरमोन बनते हैं। थायरायड ग्रन्थि में किसी कारण से हॉरमोन के अपर्याप्त निर्माण होने की स्थिती को हाईपोथायरायडिज्म कहा जाता है। यह थायरायड ग्रन्थि की समस्या परूषों की तुलना में महिलाओं में ज्यादा देखने को मिलती है।
हाईपोथायरायडिज्म एक आटोइम्यून रोग है। इस रोग में शरीर में ऐसी एन्टीबॉडीज बनती हैं, जो थायरायड ग्रन्थि को नुकसान पहंचाती हैं। नवजात शिशु में थायरायड ग्रन्थि के विकसित न होने के कारण भी यह रोग हो सकता है। इसलिए हर नवजात शिशु के थायरायड हॉरमोन की जाँच पहले सप्ताह में हो जानी चाहिए।
गर्भावस्था के दौरान थायरायड हॉरमाने में बदलाव आ सकते हैं। हाईपोथयरायडिज्म का ईलाज गर्भावस्था में काफी महत्त्वपूर्ण होता है।
हाईपोथयराडिज्म के लक्षण
हाईपोथायरायडिज्म के अने लक्षण हो सकते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं: -
थकान महसूस होना।
शुष्क त्वचा।
वजन बढ़ना।
ठंड सहन न होना।
उदास महसूस करना।
चेहरे पर सूजन होना।
गले पर सूजन होना।
बालों का झड़ना।
महिलाओं में अनियमित मासिक चक्र होना।
रोग की जाँच: - इस रोग में एफ.टी.-3 व एफ.टी.-4 एवं टी.एस.एच. की जाँच की जाती है।
रोग का ईलाज: - यदि टी-4 की मात्रा कम व टी.एस.एच. की मात्रा सामान्य से अधिक है तो ईलाज की आवश्यकता होती है। टी-4 की गोली चिकित्सक की सलाहानुसार सुबह खाली पेट लेनी चाहिए। समय-समय पर थायरायड हॉरमोन प्रोफाईल करवाते रहना चाहिए। रिपोर्ट के अनुसार टी-4 की मात्रा कम या ज्यादा की जा सकती है। लम्बे समय तक इस रोग का उपचार न करवाना सेहत के लिए कई गम्भीर समस्याएं उत्पन्न कर सकता है।