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पोलीसैक्राइड्स, Polysaccharides

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कार्बोहाइे्रटकार्बोहाइे्रट्स का वर्गीकरणमोनोसैक्राइडडाइसैक्राइडपोलीसैक्राइडकार्बोज की प्राप्ति के साधनकार्बोज़ के कार्यकार्बोज़ की कमी का प्रभावकार्बोज की अधिकता का प्रभावकार्बोज की दैनिक ‌‌‌आवश्यकता

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हमारे भोजन में कार्बोज अधिकतर पोलीसैक्राइड्स के रूप में ही होते हैं जैसे कि स्टार्च, ग्लायकोजन, सैल्यूलोज आदि। ये वे शर्कराएं हैं जिनमें दो से अधिक मोनोसैक्राइड उपस्थित होते हैं। इस मोनोसैक्राइड्स की संख्या कभी-कभी 2000 से भी अधिक हो जाती है। इसी कारण इन्हे जटिल शर्करा भी कहा जाता है। ये पानी में अघुलनशील, विभिन्न आकारों वाले तथा स्वाद में फीके होते हैं। इनमें बहुत से पदार्थों के रवे नहीं बनते। इनका रासायनिक सूत्र (C6H10O5)n है। ‘n’ से अभिप्राय अणुओं की संख्या से है। जटिल शर्करा होने के कारण इनका पाचन स्तरों में होता है।

स्टार्च (Starch): - मनुष्य के भोजन में इस कार्बोज को सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि विभिन्न अनाजों जैसे चावल, गेहूँ, मक्का आदि में लगभग 70% स्टार्च पाया जाता है। शारीरिक श्रम करने वाले व्यक्तियों के लिए यह ऊर्जा प्राप्ति का एक सस्ता साधन है। स्टार्च पौधों के बीजों, जड़ों, कन्दो तथा मोटे भागों में संग्रहित रहता है। फलीदार पौधों के सूखे बीजों में स्टार्च 40% के लगभग होता है। सूक्ष्मदर्शी यन्त्र से देखने पर विभिन्न प्रकार के स्टार्च कणों के आकार में विभिन्नता दिखार्इ देती है। गेहूँ का कण अण्डाकार, मक्के का कण गोल तथा आकार में छोटा दिखार्इ देता है।

स्टार्च ठण्डे पानी में घुलनशील तथा फीका होता है। गर्म पानी में पकाने से इसकी कोशिका की बाहरी दीवार फट जाती है। स्टार्च के छोटे-छोटे कण इस दीवार से बाहर आकर पानी सोखकर फूल जाते हैं। इस प्रक्रिया को जिलेटनीकरण कहते हैं। कच्चे स्टार्च की अपेक्षा इस स्टार्च में मीठापन अधिक होता है तथा सुपाच्य भी होती है। स्टार्च का पाचन विभिन्न स्त्रों पर होता है। पहले स्टार्च एक कम जटिल पोलीसैक्राइड डैक्सट्रिन में परिवर्तित होती है। फिर डैक्सट्रिन एक डाइसैक्राइड माल्टोस में बदल जाता है तथा माल्टोस पाचन के बाद ग्लूकोज में परिवर्तित होकर रक्त द्वारा अभिशोषित हो जाता है।

लार (Saliva) या अग्नाशय रस (Pancreatic juice) में विद्यमान एमाइलेज एन्जाइम की से स्टार्च ग्लूकोज में बदल जाता है।

स्टार्च --(एमाइलेज एन्जाइम या हल्का खनिज अम्ल)à ग्लूकोज

कार्बोज का पाचन द्वारा तो एक शर्करा से दूसरी शर्करा में रूप परिवर्तन होता ही है प्राकृतिक रूप में भी ऐसा होता है। कच्चे केले, पीते आदि में कार्बोज पोलीसैक्राइड्ज के रूप में होते हैं। जैसे-जैसे ये फल पकने लगते हैं, इनकी स्टार्च, शर्करा में बदलने लग जाती है तथा इन फलों में मिठास पैदा हो जाती है। इसके विपरीत गेहूँ के दाने, मटर तथा मक्के के दाने जब कच्चे होते हैं तो इनमें कार्बोज के मोनो तथा डाइसैक्राइड रूप में होने के कारण मिठास होती है। पकने पर इनकी शर्करा स्टार्च में बदल जाती है तथा ये फीके हो जाते हैं।

ग्लायकोजन (Glycogen): इसे जन्तु स्टार्च भी कहते हैं क्योंकि जन्तु कार्बोज का संगह अपने यकृत तथा माँसपेशियों में ग्लायकोजन के रूप मे ही करते हैं। जब भोजन की मात्रा आवश्यकता से अधिक हो जाती है, तब कुछ मात्रा में ग्लूकोज, ग्लायकोजन में बदल जाता है। इसके विपरीत जब भोजन कम मात्रा में मिलता है तो शरीर में संचित ग्लायकोजन ग्लूकोज में परिवर्तित होकर शरीर को ऊर्जा देता है। शरीर में संग्रहित कुल ग्लायकोजन का लगभग एक-तिहार्इ भाग माँसपेशियों में पाया जाता है। जब किसी जन्तु को भोजन के लिए काटा जाता है तो उसका ग्लायकोजन इस प्रक्रिया के दौरान लेक्टिक अम्ल में बदल जाता है।

सैल्यूलोज तथा हैमिसैल्यूलोज (Cellulose and Hemicellulose): मनुष्य के लिए सैल्यूलोज तथा हैमिसैल्यूलोज भोजन के प्रत्यक्ष साधन नहीं माने जाते हैं क्योंकि मनुष्य के शरीर में इनका पाचन करने वाला एन्जाइम सैल्यूलेज (Cellulase) नही होता। अन्य जानवरों। जैसे गाय, भैंस, घोड़ा, बकरी आदि (Ruminant animals) के पाचन संस्थान में कुछ ऐसे जीवाणु होते हैं जो कि सैल्यूलोज तथा हैमिसैल्यूलोज का पाचन करके शरीर को कार्बोज प्रदान कराते हैं। मनुष्य के लिए इनका पोषण मूल्य न होते हुए भी भोजन में इनकी आवश्यकता है। यह भोजन को भार प्रदान करते हैं तथा आंतों की क्रमाकुंचन गति (Peristaltic movements) को बढ़ाते हैं। इससे आंतो में उपस्थित व्यर्थ पदार्थ आसानी से बाहर निकल जाते हैं तथा कब्ज नहीं होती है। सैल्यूलोज तथा हैमिसैल्यूलोज मुख्यतया हरी पत्तेदार सब्जियों, अंजीर, साबुत अनाजों, फलों के छिलके, गाजर, मूली, शलगत आदि में होता है। बिना डिलके वाले खाद्य पदार्थों जैसे धुली दालें, मैदा आदि में सैल्यूलोज तथा हैमिसैल्यूलोज नहीं होते। ये पानी में अघुलनशील होते हैं तथा स्टार्च के कणों को आपस में बांध कर रखते हैं। गीली अवस्था में या पकाने की क्रिया में सैल्यूलोज तथा हैमिसैल्यूलोज के रेशे टूट जाते हैं तथा भोजन मुलायम हो जाता है। वैसे तो सैल्यूलोज पौधों के तनों तथा बाहरी रेशों का निर्माण करता है किन्तु कभी-कभी कुछ सब्जियों में उपस्थित अन्य प्रकार का कार्बोज भी सैल्यूलोज में बदल जाता है जैसे भिण्डी, मूली, गाजर आदि के अधिक देर तक पौधों पर पकते रहने से।

इसबगोल (Isphgul or Isogul) नामक सैल्यूलोज अपने भार से 25% अधिक पानी सोखने की क्षमता के कारण कब्ज दूर करने में सहायता करता है। यह आंतों में पानी सोख कर आंतों की क्रमाकुंचन गति को बड़ा देता है तथा इसका स्वास्थ्य पर कोर्इ दुष्प्रभाव भी नहीं होता। इसके अतिरिक्त अगर (Agar-agar) नामक एक अन्य सैल्यूलोज समुद्री जड़ी-बूटी (Sea weed) से प्राप्त होता है। इसकी विशेषताएं भी इसबगोल के समान ही होती हैं।

डेक्सट्रिन (Dextrin): यह शर्करा प्रकृति में प्रत्यक्ष् रूप में में उत्पन्न होती है। इसे स्टार्च का उपापचयन पदार्थ (Metabolic product) भी कहा जाता है। क्योंकि स्टार्च युक्त पदार्थों को पकाने से उनका कुछ भाग डेक्सट्रिन में बदल जाता है। अनाजों के अंकुरण की प्रक्रिया में भी स्टार्च पहले डेक्सट्रिन में बदलता है तथा डेक्सट्रिन फिर माल्टोज में। डेक्सट्रिन स्टार्च की अपेक्षा हल्का तथा मीठा होता है। यही कारण है कि अनाज पकाने में डेक्सट्रिन ऊपरी सतह को अपेक्षाकृत मीठा बना देता है, उदाहरण के लिए केक, बिस्कुट, ब्रैड आदि।

पेक्टिन (Pectin): सैल्यूलोज की भांति पेक्टिन का भी शरीर में कोर्इ पोषक मूल्य नहीं है। इसकी विशेषता यह है कि यह चीनी की उपस्थिती में, हल्के अम्लीय माध्यम में पकाये जाने पर जैली का रूप ले लेता है। इसीलिए पेक्टिन का प्रयोग जैली बनाने के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग अतिसार के रोगियों के लिए बनार्इ जाने वाली दवार्इयों में भी किया जाता है। कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि पेक्टिन रक्त परिसंचरण संस्थान को स्वस्थ बनाने में सहायक है।

‌‌‌सरोज बाला, ‌‌‌कुरूक्षेत्र (‌‌‌हरियाणा)

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