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कार्बोज़ के कार्य, Functions of Carbohydrates

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कार्बोहाइे्रटकार्बोहाइे्रट्स का वर्गीकरणमोनोसैक्राइडडाइसैक्राइडपोलीसैक्राइडकार्बोज की प्राप्ति के साधनकार्बोज़ के कार्य; कार्बोज़ की कमी का प्रभावकार्बोज की अधिकता का प्रभावकार्बोज की दैनिक ‌‌‌आवश्यकता

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कार्बोज़ के शरीर में निम्नलिखित कार्य हैं-

1. ऊर्जा देना (To give energy): - कार्बोंज़ का मुख्य कार्य शरीर की ऐच्छिक (Voluntary) तथा अनैच्छिक (Involuntary) क्रियाओं के लिए ऊर्जा प्रदान करना है। काबोंहाइड्रेट का एक ग्राम 4 कैलोरी ऊर्जा देता है। यधपि वसा का एक ग्राम 9 कैलोरी ऊर्जा देता है किन्तु एक औसत भारतीय आहार में कार्बोज़ की मात्रा वसा से कहीं अधिक होती है। तुरन्त ऊर्जा की प्राप्ति हमें ग्लूकोज़ से ही होती है। ‌‌‌आवश्यकता से अधिक ऊर्जा का संचय हमारे यकृत तथा ‌‌‌माँसपेशियों में ग्लायकोजन के रूप में होता है।

‌‌‌आवश्यकता होने पर ग्लायकोजन फिर से ग्लूकोज़ में परिवर्तित होकर शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है। अगर ग्लॅकोज़ की मात्रा शरीर में बहुत अधिक हो जाती है तो ग्लूकोज़ वसा में परिवर्तित होकर, एडिपोज़ ऊतको में इकट्ठा होकर ऊर्जा के सान्द्रित रूप में कार्य करता है।

नाडी कोशिकाएं तथा ‌‌‌मष्तिस्क, ऊर्जा के लिए केवल ग्लूकोज़ का ही प्रयोग करते हैं। जब रक्त शर्करा की मात्रा में कमी होने लगती है तो ‌‌‌मष्तिस्क में ग्लूकोज़ रूपी ऊर्जा की कमी हो जाती है तथा ‌‌‌मष्तिस्क अपना काम ठीक रोगी व्यक्ति को दौरै पड़ने शुरू हो जाते हैं।

अन्य प्रकार की शारीरिक क्रियाओं का सुचारू रूप से संचालन करने के लिए जिन सहायक एन्जाइम्ज़ की ‌‌‌आवश्यकता होती है उन्हें भी कार्बोज़ शक्ति देते हैं।

2. प्रोटीन की बचत करना (To Spare protein or Protein sparing effect): - जीवित रहने के लिए मानव शरीर की मूलभूत ‌‌‌आवश्यकता ऊर्जा है। वसा तथा कार्बोज़ मुख्य रूप से शरीर को ऊर्जा देने का कार्य करते हैं किन्तु कार्बोज़ की अनुपस्थिति में वसा का ऑक्सीकरण नहीं हो पाता। अगर भोजन में कार्बोज़ की कमी हा जाए तो प्रोटीन अपना निर्मान कार्य छोड़कर ऊर्जा देने का कार्य करने लग जाती है। प्रोटीन का एक ग्राम भी 4 कैलारी ऊर्जा प्रदान करता है। इस प्रकार आहार में प्रोटीन की पूरी मात्रा हाते हुए भी प्रोटीन की कमी के लक्ष्ण दिखार्इ देने लगते हैं। जब कार्बोज़ की ‌‌‌आवश्यक मात्रा शरीर को मिलती है तो प्रोटीन से ऊर्जा की ‌‌‌आवश्यकता नहीं रहती तथा प्रोटीन की अपना मुख्य कार्य करने के लिए बचत हो जाती है। इसे ‘Protein Sparing Effect’ कहते हैं।

3. पाचन में सहायता करना (To help in digestion): - सैल्युलोज़, हैमिसैल्युलोज़ तथा पैक्टिन जैसे अपचनशील कार्बोज़ युक्त पदार्थ का कार्इ ‌‌‌पोषण मुल्य न हाते हुए भी ये पाचन की ‌‌‌दृष्टि से महत्तवपूर्ण हैं। ये छोटी आंत की क्रमाकुंचन क्रिया (To help in digestion) को उत्तेजित करके भोजन के ‌‌‌अवशोषण को बढ़ाते हैं तथा बड़ी आंत को उत्तेजित करके निरर्थक पदार्थों को ‌‌‌बाहर निकालने में सहायता करते हैं। इससे मल त्याग में आसानी होती है तथा कब्ज से बचाव रहता है। पानी सोखने के गुण के कारण ये आंत्र पदार्थों का भार बढ़ाते हैं।

आंत्र नली में विटामिन ‘बी’ तथा ‘के’ का संशलेशण करने वाले जीवाणुआोंको भी शक्ति कार्बोज़ से ही प्राप्त होती है।

लैक्टोज़ अन्य शर्कराओं की अपेक्षाकम घुलनशील होने के कारण आंत्र नली में अपेक्षाकृत अधिक समय तक रहता है। आंत्र नली में लेक्टोज़ की उपस्थिति से कैल्शियम अभिशोशण में सहायता मिलती है।

4. वसा के ऑक्सीकरण में सहायता करना (To help in the oxidation of fats): - वसा के सामान्य ऑक्सीकरण के लिए, आहार में कार्बोज़ की कुछ मात्रा में ‌‌‌उपस्थित ‌‌‌आवश्यक है। वसा के ऑक्सीकरण के लिए पाइरूविक एसिड (Pyruvic acid) की भी ‌‌‌आवश्यकता होती है। इस एसिड का निर्माण कार्बोहाइड्रेट के चयापचय के समय होता है। अगर शरीर में कार्बोज़ की कमी होगी तो पाइरूविक एसिड का निर्माण नहीं होगा जिसके फलस्वरूप वसा की टूट-फूट (Break down) तो हो जाएगी किन्तु ऑक्सीकरण पूरी तरह से नहीं हो पाएगा । वसा की टूट-फूट में कार्बन-डार्इ-ऑक्सादड तथा पानी जगह कीटोन बॉडीज़ (Ketone bodies) बनने शुरू हो जाते हैं। कीटोन बॉडीज़ के द्वारा रक्त में वसा के चयापचय से उत्पन्न व्यर्थ पदार्थ जमा होने लग जाते हैं तथा रक्त की अम्लीयता बढ़ा देते हैं। इस रोग को कीटोसिस (Ketosis) कहते हैं। इसमें रोगी को थकान, पानी की कमी तथा बेहोशी अनुभव होने लगती है।

शर्करा के रोगी (Diabetic patient) के साथ ऐसी स्थिति पैदा होने की सम्भावना अधिक होती है क्योंकि उसके शरीर में कार्बोज़ का उपयोग पूरी तरह नहीं हो सकता। अीधक दिन तक लगातार भूखा रहने की स्थिति में भी ऐसा ही होता है।

5. भोजन में स्वाद तथा विभिन्नता लाना (To develop taste and variety in food):- कुछ कार्बोज़ मीठे होने के कारण हमारे भोजन तथा पेय पदार्थों को मीठा करने में ‌‌‌सहायक होते हैं। कार्बोज़ युक्त फीके पदार्थ जैसे अनाज, दालें, सब्जियां आदि अपने स्वाद के अनुसार भिन्न-भिन्ऩ ढ़ंगों से पकाए जा सकते हैं। कार्बोज़ युक्त खाना ‌‌‌स्वाष्दिट तथा सुपाच्य भी होता है। रेशे भोजन भोजन को भार प्रदान करते हैं जिससे खाना खाकर ‌‌‌सन्तुष्टि प्राप्त होती है और पेट भर जाता है। एक ही प्रकार के भोजन से कर्इ व्यंजन बनाए जा सकते हैं जैसे आलू से टिकिया, परांठे, सब्जी, कचौरी, पकौड़े आदि। गेहूँ, काले चने आदि अन्य अदाहरण हैं।

6. कार्बोज़ तथा स्वास्थ्य (Carbohydrates and health): - रेशे वाले ‌‌‌खाद्य पदार्थ भोजन में शामिल करने से कब्ज़ से बचाव रहता है। कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि क्रमांकुचन गति बढने से आंतें स्वस्थ रहती हैं तथा उनमें कैंसर की संभावना कम हो जाती है। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि पैक्टिन रक्त परिसंचरन संस्थान को स्वस्थ रखने में कुछ सीमा तक सहायक है। किन्तु इसके बारे में अभी वैज्ञानिक और खोज कर रहे हैं।

ऐसा माना जाता है कि पैक्टिन कोलेस्ट्रॉल के साथ मिलकर आंत नली में इसके अवशोषण की दर को कम कर देना है। इससे उच्च रक्त-चाप (High blood Pressure) तथा हृदय रोगों से कुछ सुरक्षा मिलती है। कार्बोज़ के रेशे जीवाणुओं की वृद्धि में सहायक हैं जो पित अम्लों (bile acids) के विघटन की दर बढ़ाते हैं। इससे भी हृदय रोगों से बचाव होता है। हृदय के अस्वस्थ होने की दशा में अगर संग्रहित ग्लायकोजन के भण्डार में कमी हो जाए तो एंजाइना का दर्द (Angina pain) प्रारम्भ हो जाता है। ग्लायकोजन लिवर (Liver) को जीवाणुओं के विशैले प्रभाव से बचाता है। कार्बोज़ युक्त पदार्थों से यकृत में ग्लायक्यूरोनिक अम्ल (Glycuronin Acid) का निर्माण होता है। यह अम्ल एल्कोहल युक्त हानिकारक पदार्थों को हानि रहित पदार्थों में परिवर्तित कर देता है। शरीर द्वारा ये पदार्थ उत्सर्जित कर दिये जाते हैं।

‌‌‌सरोज बाला, ‌‌‌कुरूक्षेत्र (‌‌‌हरियाणा

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