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वसा की विशेषताएं, Properties of fats
वसा तथा लिपिड; वसा की प्राप्ति के साधन; वसा की दैनिक आवश्यकता; वसा के कार्य; वसा की कमी से हानियाँ; वसा की अधिकता से हानियाँ; वसा की विशेषताएं
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1. वसा पानी में अघुलनशील किन्तु कार्बनिक घोलकों (solvents) जैसे पेट्रोल, र्इथर, कार्बन-टेट्राक्लोइड, एल्कोहॉल आदि में घुलनशील होती है।
2. वसा की क्षार के साथ क्रिया होने पर साबुन का निर्माण होता है। इस क्रिया को साबुनीकरण (Saponification) कहते हैं। शरीर में यह क्रिया तब होती है जब क्षारीय आन्त्र रस वसा का संयोग हो जाए। सामान्य रूप से ऐसा नहीं होता। किन्तु अगर किसी असामान्य परिस्थिति में ऐसा हो भी जाए तो निर्मित साबुन मल के रूप में शरीर से बाहर निकल जाता है।
3. वसा को अधिक समय तथा अधिक ताप पर गर्म करने से वह अपने यौगिकों अर्थात् ग्लिसरोल एवं वसा अम्लों में विभक्त हो जाती है। ग्लिसरोल पुन: एक्रोलिन नामक तीखी गन्ध वाले पदार्थ् में अपघटित होकर स्वास्थ्य पर कुप्रभाव डालता है। इसलिए घी या तेल को इतना गर्म नहीं करना चाहिए जिससे उसमें से घुआं निकलने लगे।
4. जब वसा अधिक समय तक खुले या बन्द किसी भी रूप में पड़ी रहती तो उसकी जलीय अपघटन या ऑक्सीकरण हो जाता है। इससे वसा में कीटोन्स तथा एल्डिहाइड्स उत्पन्न हो कर एक विशेष प्रकार की गन्ध पैदा कर देते हैं। यह गन्ध स्वाद ण्वं स्वास्थ्य दोनों को खराब करती है। इस क्रिया को रेनसिडिटी (Rancidity) कहते हैं।
5. वसा को जब पानी के साथ फेंटा जाता है तो पानी में अघुलनशील होने के कारण वसा के कण उसमें घुलते नहीं हैं। वसा बहुत छोटे-छोटे कणों में बिभक्त होकर पानी में तैरने लग जाती है। वसा के छोटे कण पाचन संस्थन द्वारा आसानी से अवशोशित कर लिए जाते हैं। इस क्रिया को पायसीकरण (Emulsifcation) कहते हैं। दूध, दहा, अण्डा आदि की वसा (Emulsified fat) के अन्तर्गत आती है।