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त्रिकोणासन
त्रिकाणासन शब्द का अर्थ है ‘त्रि‘ अर्थात तीन कोणों वाला असान। चूँकि आसन के अभ्यास के समय शरीर एवं पैरों से बनी आकृति तीन भुजाओं के सदृश्य दिखार्इ देती है, इसलिए इस अभ्यास को त्रिकाणासन कहते हैं।
शारीरिक यथास्थिती: खड़े होकर किये जाने वाला आसन
अभ्यास विधि:
* त्रिकोणासन के अभ्यास के समय दोनों पैरों को फैलाकर आराम से खड़ा होना चाहिए।
* दोनों हाथों को आकाश के समानांतर होने तक धीरे-धीरे उठाना चाहिए।
* श्वास को शरीर से बाहर छोड़ते हुए धीरे-धीरे दांर्इ तरफ झुकना चाहिए।
* झुकने के बाद दायां हाथ पैर के ठीक पीछे की ओर रखना चाहिए।
* बायें हाथ को सीधे ऊपर की ओर रखते हुए दायें हाथ की सीध में लाना चाहिए।
* तत् पश्चात् बार्इं हथेली को आगे की ओर लाना चाहिए।
* सिर को घुमाते हुए बाएं हाथ की बीच वाली अंगुली को देखना चाहिए।
* सामान्य श्वास लेते हुए इस आसन में 10 से 30 सेकंड तक रूकना चाहिए।
* श्वास को शरीर के अन्दर लेते हुए प्रारम्भिक अवस्था में वापस आना चाहिए।
* इस आसन को दूसरी ओर से भी करना चाहिए।
लाभ:
पैर के तलवों से संबंधित विसंगतियों से बचाता है।
जंघा पिण्डिका, जांघों और कटि भाग की माँसपेशियों को मजबूत बनाता है।
मेरूदण्ड को लचीला बनाता है व फेफड़ों की कार्य क्षमता को बढ़ाता है।
सावधानियां:
स्लिप्ड डिस्क, साइटिका एवं उदर की कोर्इ सर्जरी होने के बाद इस आसन का अभ्यास नही करना चाहिए।
शरीर की कार्य क्षमता व सीमा से परे जाकर न करें और शरीर को अधिक
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