Home | ‌‌‌योग | भ्रामरी प्राणायाम

Sections

Newsletter
Email:
Poll: Like Our New Look?
Do you like our new look & feel?

भ्रामरी प्राणायाम

Font size: Decrease font Enlarge font

भ्रामरी शब्द भंवरे से लिया गया है, जिसका मुख्य अर्थ भंवरे है। इस प्राणायाम के अभ्यास के समय निकलने वाला स्वर भंवरे के भिनभिनाने के स्वर की तरह होता है। इसलिए इसका नाम भ्रामरी प्राणायाम है।

शारीरिक यथास्थिती: कोर्इ भी ध्यानात्मक आसन।

अभ्यास विधि - 1:

* सर्व प्रथम किसी भी ध्यानात्मक आसन में आँखें बंद करके बैठना चाहिए।

* नासिका के द्वारा लम्बा गहरा श्वास लेना चाहिए।

* नियन्त्रित ढंग से श्वास को धीरे-धीरे बाहर छोड़ना चाहिए। श्वास छोड़ते हुए भंवरे जैसी आवाज निकालनी चाहिए। इस प्रकार भ्रामरी प्राणायाम का एक चक्र पूर्ण होता है।

* इस भ्रामरी प्राणायाम को एक समय में 5 बार दोहराना चाहिए।

 

अभ्यास विधि - 2:

* सर्व प्रथम किसी ध्यानात्मक आसन में आँखें बंद कर के बैठना चाहिए।

* नासिका के द्वारा लंबा गहरा श्वास लेना चाहिए।

* चित्र में दिखाए अनुसार अंगूठों से कर्णछिद्र बंद करने चाहिए। तर्जनी अंगुली से आँखों को बंद करना चाहिए और नासिका रंध्रों को मध्यमा अंगुली से बंद करना चाहिए। इसे षणमुखी मुद्रा कहते हैं।

* धीरे-धीरे नियन्त्रित रूप से श्वास बाहर छोड़ते समय भंवरे जैसी आवाज निकालनी चाहिए। यह भ्रामरी का एक चक्र बनता है।

* इसे पाँच बार दोहराएं।

लाभ:

भ्रामरी प्राणायाम का अभ्यास तनाव से मुक्त करता है और चिन्ता, क्रोध एवं अतिसक्रियता को घटाता है।

भंवरे जैसी आवाज का प्रतिध्वनिक प्रभाव ‌‌‌ मस्तिष्क एवं तन्त्रिका तन्त्र पर लाभकारी प्रभाव डालता है।

यह महत्वपूर्ण शान्तिकारक अभ्यास है, जिसे तनाव संबंधी विकारों के प्रबंधन में लाभकारी पाया गया है।

यह एकाग्रता और ध्यान की आरंभिक अवस्था में उपयोगी है।

सावधानियां:

नासिका एवं कर्ण के संक्रमण की स्थिती में इस आसन को नही करना चाहिए।

Rate this article
5.00