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शाम्भवी मुद्रा में ध्यान
ध्यान लगातार चिंतन, मनन की एक क्रिया है।
शारीरिक यथास्थिती: कोर्इ भी ध्यानात्मक आसन।
अभ्यास विधि:
* सर्व प्रथम किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठना चाहिए।
* मेरूदण्ड को बिना कोर्इ कष्ट दिए सीधा रखना चाहिए।
निम्नानुसार ज्ञान मुद्रा में बैठे।
* अंगूठे और तर्जनी अंगुली के सिरों को आपस में स्पृश कराएं।
* अन्य तीन अंगुलियां सीधी और आराम की मुद्रा में होनी चाहिए।
* ऊपर की ओर खुली हुर्इ हथेली को घुटनों पर रखना चाहिए।
* हाथें एवं कंधों को ढीला और शिथिल कर देना चाहिए।
* आँखें बंद करके मुख को थोड़ा ऊपर की ओर उठाकर बैठना चाहिए।
* एकाग्र होने की आवश्यकता है। केवल भौंहों के बीच में हल्का सा ध्यान केन्द्रित करने की * कोशिश करनी चाहिए। श्वासों के प्रति सचेत रहना चाहिए।
* पूर्व विचारों को छोड़ने का प्रयास करना चाहिए। पवित्र व निर्मल विचार मन में लाने का प्रयास करना चाहिए।
* इस स्थिती में ध्यान लगाकर कुछ समय तक बैठना चाहिए।
ध्यातव्य:
ध्यान अभ्यास की प्रारम्भिक अवस्था में मन को प्रसन्नचितत्त करने वाला संगीत बजाया जा सकता है।
जितने अधिक समय तक सम्भव हो, इस स्थिती में रूकना चाहिए।
लाभ:
ध्यान योग अभ्यास का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक है।
यह अभ्यासकर्ता को नकारात्मक भावनाओं से दूर रखता है, भय, क्रोध, अवसाद, चिन्ता दूर करता है और सकारात्मक भावनाएं विकसित करने में सहायता करता है।
मस्तिष्क को शान्त व निश्चल रखता है।
एकाग्रता, स्मृति, विचारों की स्पष्टता व मनोबल को बढ़ाता है। पूरे शरीर और मस्तिष्क को पर्याप्त आराम देते हुए उनका कायाकल्प करता है।
ध्यान आत्म अनुभूति की ओर ले जाता है।