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वास्तु - एक परिचय
वास्तु लगभग 4000 साल पुरानी एक प्राचीन विज्ञान है। वास्तु एक विज्ञान है, भ्रम नही। अग्नि पुराण, मत्स्य पुराण, नारद पुराण, गरूड़ पुराण, स्कन्द पुराण, लिंग पुराण भविष्य पुराणों एवं शुग्र नीतिशार, समरांगण सूत्रहार व वास्तु मुण्डन में नगर एवं भवन निर्माण का उल्लेख मिलता है। इनके के अनुसार वास्तु का मतलब है कि आप प्राकृति के साथ अपना सामजस्य बैठाएं, यही वास्तु है।
किसी भी भूखण्ड की दिशाओं का सही उपयोग कर आप उस भूखण्ड की दशा बदल सकते हैं। अकसर हम कह देते हैं कि वास्तु कुछ नही है। लेकिन आप देखते हैं कि जब आप किसी नवनिर्मित भवन में प्रवेश करते हैं व उसके कुछ दिनों बाद अचानक ही कुछ घटनायें घटनी शुरू हो जाती हैं। तब हम दिशाओं के सही उपयोग के बारे में सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं। घटना के घट जाने के बाद हम भवन की दिशाओं का सही उपयोग करने के लिए भवन में कुछ बदलाव करते हैं। लेकिन तब तक ऐसी घटनायें घट जाती हैं जिनकी भरपाई नही हो सकती।
भवन बनाते समय बहुत कुछ हमारे हाथ में होता है लेकिन उसके बाद बहुत कम रह जाता है। भवन का निर्माण पूर्ण होने उप्रान्त हम तोड़फोड़ करते हैं तो उससे पूर्ण लाभ नही होता है। इसलिए भवन निर्माण शुरू करने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि किस दिशा का किस तरह उपयोग करना है। इसी से आप सही दिशा का उपभोग कर दशा का आन्नद ले सकते हैं।