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घर में मन्दिर
मन्दिर में हम भगवान की पूजा-अर्चना, आराधना करते हैं। भगवान मन में या मन्दिर में बसते हैं। आपकी भावना में भगवान बसते हैं। भगवान मुर्तियों में नही बसते हैं। घर में जगह-जगह मन्दिर बनाने से या मूर्तियाँ स्थापित करते हैं तो इसका मतलब यह नही है कि भगवान आपके घर में रहते हैं, आप भगवान के दर्शन अपने घर में हर पल या हर जगह करते हैं, यह एक भ्रान्ति है। भगवान का स्थान आपके मन-मन्दिर में है न कि आपके घर के मन्दिर में। यदि आप घर में मन्दिर बनाते हैं तो उसमें आप कम ही मूर्तियों की स्थापना कीजिए। यदि आप एक से ज्यादा मूर्तियाँ घर के मन्दिर में स्थापित करते हैं तो आप पूजा करते समय भगवान की आराधना में एकाग्रता नही कर सकते हैं। इसलिए घर के मन्दिर में केवल एक ही मूर्ति स्थापित कीजिएगा। कई घरों में देखने को मिलता की आप भगवान को जगह-जगह टांग देते हैं खासतौर पर भगवान गणेश जी को। भगवान गणेष जी को आप दरवाजे पर टांग लेते हैं, ऐसा करना भी गलत है। केवल शिव भगवान की मूर्ति ही मन्दिर में आप स्थापित करें तो बहुत अच्छा। आप जितनी ज्यादा मूर्तियाँ घर में लगाएंगें तो उतनी ही ज्यादा दिक्कत, उनके रख-रखाव व साफ-सफाई में, आती है। उन मूर्तियों की पूजा-अर्चना नही कर सकते हैं। इससे आप भगवान का अनादर ही करते हैं। यदि आप भगवान को स्थापित ही करना चाहते हैं तो आप भगवान का चिन्ह जैसे कि स्वास्तिक या ऊँ का चिन्ह लगा सकते हैं। गणेश भगवान की मूर्ति को दरवाजे पर स्थापित करना ही चाहते हैं तो भगवान गणेश जी का चेहरा घर के अन्दर की ओर हो न कि भगवान गणेश जी की पीठ, वही ठीक होता है। यदि आप भगवान गणेश जी का चेहरा घर के दरवाजे पर बाहर की ओर व पीठ घर की ओर होगी तो इससे घर में दद्रिता जैसी स्थिती रहेगी।
बहुत से घरों में मन्दिर को स्टोर में बनाते हैं जहाँ पर घर का अवाँछनीय सामान रखते हैं जिससे उसमें गन्दगीभरा माहौल हो जाता है। इसलिए घर के स्टोर में भी आप मन्दिर न बनाएं तो बहुत अच्छा रहेगा।
घर की रसोई में आप मन्दिर बना सकते हैं लेकिन यह भी आदर्श स्थिती नही है। रसोई में आप जूते-चप्पल लेकर जाते हैं, उसमें आप गैर शाकाहारी भोजन बनाएंगे। इसलिए घर की रसोई में भी आप मन्दिर न बनाएं तो बहुत अच्छा रहेगा।
1.उत्तर: उत्तर में मन्दिर की स्थिती बहुत अच्छी है।
2. उत्तर-पूर्व: उत्तर-पूर्व में मन्दिर की स्थिती बहुत-बहुत अच्छी है।
3. पूर्व: पूर्व में मन्दिर की बहुत अच्छा है।
4. दक्षिण-पूर्व: दक्षिण-पूर्व में भी आप मन्दिर बना सकते हैं।
5. दक्षिण: दक्षिण में मन्दिर अच्छा नही है।
6. दक्षिण-पश्चिम: इस दिशा में मन्दिर नही होना चाहिए।
7. पश्चिम: किसी हद तक आप यहाँ मन्दिर बना सकते हैं। यह लक्ष्मी जी की दिशा है।
8. उत्तर-पश्चिम: यहाँ पर भी आप मन्दिर बना सकते हैं। यह दोस्तों की दिशा है, मदद की दिशा है।
9. केन्द्र: केन्द्र में भी आप मन्दिर न बनाएं।