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वर्ष में दो बार क्यों मनाये जाते नवरात्रे
किसी भी धर्म में कोई भी त्योहार यूं ही नहीं मनाया जाता। हर त्योहार के पीछे कोई न कोई ऐतिहासिक महत्व होता ही है, पर उससे ज्यादा महत्तवपूर्ण उसके पीछे छुपा वैज्ञानिक भी कारण होता है। प्राचीन भारत में लोग प्रकृति से कहीं अधिक बेहतर ढंग से जुड़े हुए थे। इसलिए हर एक व्रत-त्योहार को मनाने के तौर-तरीकों में बदलते मौसम, शरीर विज्ञान आदि का विशेष ध्यान रखा गया है। यह विधित है कि अन्य सभी त्योहार जैसे होली, दिवाली आदि साल में एक बार ही मनाई जाती है। लेकिन नवरात्रे हर साल दो बार मनाये जाते हैं। दोनों नवरात्र तब मनाये जाते हैं जब मौसम बदल रहा होता है। साथ ही भारत में मार्च-अप्रैल तथा सितंबर-अक्टूबर में दिन और रात की अवधि लगभग समान होती है। वर्ष के इन दोनों समयों में मौसम में बदलाव और सूरज के प्रभाव में एक संतुलन बनता है। चाहे शरद नवरात्र हो या चैत्र इस समय मौसम न ज्यादा ठण्डा रहता है और न गरम। इस मौसम में पूजा करने से हमारे अन्दर संतुलित उर्जा का प्रवेश होता है। यह हमारे मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
आदि काल से ही मौसम के बदलने के साथ-साथ लोगों का खान-पान भी वदल जाया करता था। नवरात्र के दौरान लोग व्रत करते हैं और नौ दिनों तक के उपवास के दौरान शरीर को बदलते मौसम के हिसाब से खुद को ढ़ालने का प्रयाप्त समय मिल जाया करता है। इन नौ दिनों के उपवास के दौरान हमारे शरीर प्रणाली को व्यवस्थित होने का अवसर मिल जाता है। इस दौरान लोग ज्यादा नमक और चीनी से बचते हैं, ध्यान करते हैं और सकारात्मक उर्जा ग्रहण करते हैं। अब वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिखाया है कि ज्यादा मीठा खाने से विभिन्न प्रकार की शारीरिक व्याधियां उत्पन्न होती है। नवरात्रों में उपवास रखने से हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है साथ ही हमें और भी ज्यादा दृढ़ निश्चयी बनने में मदद मिलती है। वैज्ञानिक तौर यह बात भी अब सिद्ध हो चुकी है कि उपवास से हमारा आत्मविश्वास और स्व-नियंत्रण बढ़ता है। शाक्तं सम्प्रदाय की बात करें तो वे दो की बजाए साल में चार बार नवरात्री मनाते हैं। शरद और वसंत नवरात्री के अलावा इस संप्रदाय में अषाढ़ और पौष नवरात्री भी मनाई जाती है। आषाढ़ नवरात्री जहां जून-जुलाई में मनाई जाती है वहीं अषाढ़ नवरात्री दिसंबर-जनवरी के महीने में पड़ती है।