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बसन्त पंचमी, वसंत पंचमी, श्रीपंचमी
आभा* एवं अवदिशा*
* Student, Wisdom World School, Kurukshetra – Haryana
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सरसों महके खेत-खलिहानों में,
गेंदा गमके महक बिखेरे।
कलिया मुस्काती हंस-हंस गाती,
पुरवा पंख डोलाई है।
अलौकिक आनंद अनोखी छटा,
अब बसन्त ऋतु आई है।
बसन्त पंचमी एक हिन्दू त्योहार है। यह पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई देशों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन स्त्रि-पुरूष पीले वस्त्र धारण करते हैं। इस त्योहार के दिनों में सरसों की फसल पूरे यौवन में होती है जिसके फूलों से हर तरफ पीला-ही-पीला वातावरण दिखायी पड़ता है जैसे चारों ओर सोना-ही-सोना हो। जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं और हर तरफ़ फूलों के ऊपर रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं।
बसन्त पंचमी का त्योहार हर वर्ष हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ महीने में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। बसंत ऋतु में पेड़ों में नई-नई कोंपलें निकलनी शुरू हो जाती हैं। विभिन्न प्रकार के मनमोहक फूलों से भूमि प्राकृतिक रूप से सज जाती है।. आम में पेड़ों पर मंजरीयाँ फूटने लगती हैं। खेतों में सरसों के पीले फूल की चादर की बिछी होती है और कोयल की कूक से सभी दिशाएं गुंजायमान होने लगती हैं। यह त्योहार वसंत ऋतु आने का सूचक है। पारम्परिक रूप से यह त्यौहार शीत ऋतु के बीत के जाने और खुशनुमा मौसम आने के रूप में मनाने का महत्त्वपूर्ण दिन है, जिससे अनके रीति-रिवाज और धार्मिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं।
पौराणिक कथा: बसन्त पंचमी के दिन को ब्रह्मा द्वारा रचित सरस्वती देवी के जन्मोत्त्सव के रूप में भी मनाया जाता है। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है: -
प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी (ब्रह्मा की) बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं।
बसन्त पंचमी का ऐतिहासिक महत्त्व: विदेशी हमलावर मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज चौहान ने 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार पृथ्वीराज चौहान पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं। मोहम्मद गौरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर गौरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया।
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान॥
पृथ्वीराज के द्वारा चला बाण मोहम्मद गौरी को भेद ही देता, परन्तु उस से पूर्व देशविद्रोहियों ने गौरी की सहायता कर दी और गौरी की प्राणरक्षा हो गई। जिस दिन 1192 ईस्वी में पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु हुई उस दिन बसन्त पंचमी थी।
बसंत पंचमी का लाहौर निवासी लाहौर निवासी वीर हकीकत से भी गहरा संबंध है। जिस दिन उनको मृत्युदण्ड दिया गया उस दिन भी बसन्त पंचमी थी। इसका सम्बन्ध रणजीत सिंह की सेना में रहे व धार्मिक प्रवृति के खेतीहर गुरू राम सिंह कूका का भी गहरा सम्बन्ध है। मकर सक्रान्ति के दिन गाँव भैणी के मेले से वापिस आते समय उनके एक शिष्य को मुसलमानों ने घेर लिया। उन्होंने उसे पीटा और गोवध कर उसके मुंह में गोमांस ठूंस दिया। यह सुनकर गुरू रामसिंह के शिष्य भड़क गये। उन्होंने उस गांव पर हमला बोल दिया, पर दूसरी ओर से अंग्रेज सेना आ गयी। अत: युद्ध का पासा पलट गया। इस संघर्ष में अनेक कूका वीर शहीद हुए और 68 पकड़ लिये गये। इनमें से 50 को सत्रह जनवरी 1872 को मलेरकोटला में तोप के सामने खड़ाकर उड़ा दिया गया। शेष 18 को अगले दिन फांसी दी गयी। दो दिन बाद गुरू रामसिंह को भी पकड़कर बर्मा की मांडले जेल में भेज दिया गया। 14 साल तक वहां कठोर अत्याचार सहकर 1885 ईस्वी में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया।
बसन्त पंचमी त्योहार की कुछ खासियतें
कई समुदायों के बीच बसंत पंचमी को सरस्वती पूजा के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन को बच्चों के पढ़ने और लिखने की शुरूआत के रूप में बेहद ही शुभ माना जाता है। इस दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा कर प्रार्थना की जाती है।
लोग इस पर्व के अवसर पर पतंग उड़ाते हैं या अन्य खेल खेलते हैं। इस त्योहार पर पीले रंग का बहुत महत्व है, बसंत का रंग पीला होता है जिसे बसंती रंग के नाम से जाना जाता है। जोकि समृद्धि, ऊर्जा, प्रकाश और आशावाद का प्रतीक है। यही कारण है कि लोग इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनते हैं और पीले रंग के व्यंजन बनाते हैं।
इस त्योहार का मुख्य आकर्षण पीले रंग से रंगित व्यजंन होते हैं। घरों में इस दिन मीठे चावल बनाए जाते है जिनका रंग पीला होता है। पीले रंग के अलावा केसरीया रंग का भी व्यजंन बनाने में उपयोग किया जाता है।