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अपने प्रति सत्यनिष्ठ बने

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आमतौर पर हम अपने आप में सच्ची वास्तविकताओं से बचने के लिये कोई न कोई बहाना खोजते रहते हैं। जब हम अपने अन्त: के डर का सामना कर रहे होते हैं तो व्यवहारिकतौर पर हमारे अन्त: में इस डर को हराने का दुष्चक्र शुरू हो जाता है। और हम अपने अन्त: में देखते हुए, बाहरी दुनिया की ओर अपना ध्यान केन्द्रित करने लगते हैं। इन बाहरी घटनाओं को हम दोषी मानने लग जाते हैं।

यदि हम अपने अन्त: में छिपी चुनौतियों और त्रुटियों को खोजने से बचते हैं तो इससे हमारे अन्दर बहुत तनाव उत्पन्न होता है जिससे समस्याएं और ज्यादा जटिल हो जाती हैं। अन्त: में उत्पन्न हुई इन समस्याओं पर भविष्य में विजय पाना कठिन ही नही अपितु बड़ा कठोर हो जाता है।  ‘स्वयं अपने प्रति सत्यनिष्ठ रहें‘ ही जीवन में अन्त: व बाहरी दुनिया के अन्तर को जान सकता है और पाएगें कि यह सब आपके साथ-साथ अकेले ही गतिशील है और आप यह भी पाएगें कि यह बहुत संतोषजनक है व आपके नियन्त्रण में भी है।

वस्तु-पदार्थ के माध्यम से सोचने के लिए समय को पहचानो

जब सब कुछ गलत होने लगता है और आप, यह सब करने में असमर्थ महसूस करते हैं, यही एक समय कि आपको रूकने व चिन्तन करने की आवश्यकता है। भागदौड़ की नित्यचर्या को तोड़ें जिसे हम प्राय: परिहार के रूप में प्रयोग किया जाने वाला यन्त्र समझते हैं जिससे हम किसी भी दर्दभरे या कठिन मुद्दों से बचने की कोशिश करते है।

अपने आपको क्षमायाचना लिखो

जैसा कि प्रतिध्वनित होता है, अपने आपको क्षमायाचना पत्र लिखो। यह आपके अन्त: में छिपी चुनौतियों का सामना करने में आपकी सहायता करेगा और आपके सम्बन्धों को मजबूती देगा। अन्त: की जरूरतों को ध्यान या करने से पहले, आपको यह भी स्वीकार करने में मदद मिलेगी कि आप इन्सान हैं कि आप केवल प्रबन्धन या अनुमान ही लगा सकते हैं।

समस्या या समस्याग्रस्त व्यवहार के प्रतिमान को समझें

स्वयं के प्रति सत्यनिष्ठ बनें। किसी अन्य के माध्यम से सोचने की अपेक्षा, अपने अन्त: व आप, अपने आपको को समझने की कोशिश करें। आप अपने आपको अपने अन्त: से बाहर निकाले तो आप पाएगें कि आप वर्तमान स्थिती में एक समस्या का सामना कर रहे हैं जिसके लिए आप एक यथार्थ विषय-वस्तु हैं।

साहसी बनो

अपने व्यक्तित्त्व के दुर्बल पक्ष का आत्मनिरीक्षण के लिए महान शक्ति की आवश्यकता होती है क्योंकि आपको अपने अन्त: में ऐसी समस्याओं जिनको आप पसन्द नही करते हो या उनको समझ नही पाते हो, इस प्रकार आपका अपने अन्त: व अपने-आप से सामना करना होता है। तथापि, आपको अपने चरित्र निर्माण के लिए अपनी कमजोरीयों को खोजना ही होता है, जिससे आपका अच्छा चरित्र निर्माण हो और आपका जीवन अच्छा व चिर-स्थायी हो।

अपने सिद्धातों व मूल्यों का अवलोकन करें

क्या आपके सिद्धांत व मूल्य आपके अपने बनाये हुये हैं या ये किसी अन्य से ग्रहण किये हुये हैं? इसके बारे में केवल आप ही जानते हैं। जिन सिद्धांतों व मूल्यों से आप आत्मसात हुये हैं, क्या यह उनके साथ चलने का समय है? यह आवश्यक है कि आत्मसात हुये सिद्धांतों व मूल्यों में आप बहना सीखें ताकि जीवन जीने का मकसद सार्थक रूप से साकार हो।

अपने-आपको धोखा न दें

इस सृष्टि में आप चेहरे को ढककर, जिसे अन्य नही देखना चाहते व झूठे वादों से दूसरों को मूर्ख बना सकते हैं लेकिन ज्यादा समय तक नही। हालाँकि आपका दिल इस सच्चाई को जानता है जिसके कारण आपके अन्त: में विरोधाभास उत्पन्न होगा और आपको यह सब केवल धोखा ही लगेगा जिस कारण आपको बार-बार अन्त: पश्चाताप ही करना पड़ेगा जिसे आप किसी अन्य के साथ सांझा भी नही कर सकते हैं।

इस बात की सराहना करें कि आप मानव हैं न कि यन्त्र या महामानव

आप सब कुछ बनने की कोशिश करें, जो अन्य भी करते हैं। लेकिन आपके अन्त: का महामानव आपको अपरिहार्य थकावट व निराशा की ओर ले जाएगा। जब आपको मनानुसार आपको सफलता नही मिलती है तो आप अपनी भावनाओं में बह जाना चाहेंगे और इनको आप सदा के लिए ठण्डे बस्ते में डाल देना चाहेंगें। जीवन उतार-चढ़ाव का दूसरा नाम है और कभी-कभी आपको लगेगा कि आप कही नहीं जा रहे हैं, कुछ भी परिवर्तित नही हो रहा है और फिर आप दोबारा से शुरूआत करते हैं, यह सब मानव जीवन के सामान्य अंश हैं। यदि आप इसे मानव मूल्यों के रूप में नापते हैं कि मैनें जीवन में क्या पाया है या क्या नही। इस स्थिती में जब-जब भी आपको हानि होगी या आपकी उपलब्धियों में कमी आएगी, तब-तब आपको जिन्दगी में नई दस्तक मिलेगी।

आवश्यकतानुसार चिकित्सक से मार्गदर्शन लेना न भूलें

आप हैरान हो सकते हैं कि आपके अन्त: में किस प्रकार के विरोधाभास चल रहा होता है और एक बार यह हल हो जाये तो आप आराम के स्वभाव को महसूस करते हैं। कई लोग इस विरोधाभास में अकेले नही चल सकते हैं तो उनको किसी योग्य चिकित्सक के मार्गदर्शन की आवश्यकता पड़ती है। तथापि, चिकित्सक से मार्गदर्शन स्वरूप सहायता लेना गलत लगता है। वास्तव में जब आप किसी योग्य व्यक्ति का मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं तो आपको हैरानी होगी कि मुझे मार्गदर्शन प्राप्त करने में इतना समय क्यों लगा? इसलिए आवश्यकतानुसार समय पर मार्गदर्षन अवश्य लेना चाहिए। यह भी अपने प्रति एक प्रकार की ही सत्यनिष्ठा होती है।

अनुकरणीय सुझाव

ü  झूठ के सहारे जीवन मत जीयो, अपने प्रति सत्यनिष्ठ होना जीवन का अच्छा मार्ग है।

ü  आप अपनी समस्या किसी भरोसेमन्द के साथ सांझा करें, न कि ऐसे व्यक्ति से जो आपकी समस्या को और ज्यादा बदतर न कर दे।

ü  जब आप अपनी आदत या लक्ष्यों को बदलते हैं तो एक ही बार में ज्यादा कोशिश न करें। छोटे व साहसी कदम हमेषा स्थायी व प्रभावशाली होते हैं। पहली आदत या लक्ष्य पूरा होने के बाद ही दूसरा लक्ष्य निर्धारित करें व अपने आपको पुरस्कारित करें।

ü  अपने आप गुजारने से अच्छा है कि आप स्वयं सेवक बन जाएं। अपने आप को दूसरों की मदद के लिए मजबूर करने से आपको महसूस होगा कि आपका जीवन मन्द हो गया है लेकिन आपको पता चलेगा कि अन्य लोग किस तरह रहते हैं और स्वयं की समस्याओं से कैसे सामना करते हैं। इससे आपको अपने अन्त: में सराहना स्वरूप अनुस्मारक मिलेगा। इससे भी बढ़कर, सहायता प्राप्त लोगों व घटनाक्रमों से आपको सीखने का अवसर मिलेगा।

ü  संवेदनषील मुद्दे जैसे कि लैंगिक पहचान, तलाक, मानसिक प्रवृत्तियाँ आदि से सीखना मुस्किल है, अत: इनसे सामना करने की अपेक्षा बचना चाहिए ताकि आपके जीवन में ऐसी घटना न घटे और आप अपने जीवन के प्रति सत्यनिष्ठ बने रहें।

चेतावनीयाँ

Ø  अपने आप में कभी हार मत मानों। विफलताएं आएंगी, गल्तियाँ होंगी और गड़बड़ीयाँ होंगी, ये सब समय के मापदण्ड हैं। जैसे कि अच्छे मौसम का पीछा खराब मौसम करता है उसी प्रकार अच्छा समय भी बुरे समय से घिरा रहता है। यह जीवन चक्र है जिसमें आपकी कोमलता बहुत महत्त्वपूर्ण है।

 Ø  आप अपने प्रति जवाबदेही बनें। यदि आप कोई वादा करते हैं तो आप उससे इनकार न करें या फिर आप में स्वीकार करने का साहस हो कि मैनें अपनी प्रबन्धकता से ज्यादा वादा कर लिया है तो इसे आप समय रहते ही स्वीकार कर लें ताकि सहायतार्थ को समय रहते अन्य सहायता प्राप्त हो सके।

 

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